सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 900 निजी स्कूलों में आरटीई के तहत एक लाख से अधिक सीटें मिलने की गुंजाइश, अगले साल 10000 प्रवेश का लक्ष्य
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 900 निजी स्कूलों में आरटीई के तहत एक लाख से अधिक सीटें मिलने की गुंजाइश
आरटीई के तहत एडमिशन देने से इनकार करते हुए सीएमएस प्रबंधन ने 18 अप्रैल को रिट दायर की थी। इस रिट पर सुनवाई के बाद सिंगल बेंच ने 6 अगस्त को सीएमएस प्रबंधन के खिलाफ फैसला सुनाया। डबल बेंच में भी सीएमएस के खिलाफ फैसला आया। सीएमएस ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी पुराने फैसले को ही
बरकरार रखा।
सिटी मॉन्टेसरी स्कूल में आर्थिक रूप से कमजोर घरों के बच्चों के दाखिले के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब शहर के निजी स्कूलों में हर साल लगभग एक लाख से अधिक निर्धन घरों के बच्चों को दाखिला मिल सकेगा। शहर में यूपी बोर्ड के साढ़े 700 से अधिक स्कूल हैं। वहीं, सीबीएसई के 103 और आईसीएसई के 84 स्कूल हैं। इनमें कुछ माईनॉरिटी इंस्टिट्यूशंस को हटा दिया जाए तब भी लगभग 900 ऐसे निजी स्कूल हैं, जो आरटीई (शिक्षा का अधिकार) के दायरे में आते हैं। ऐसे में इन स्कूलों हर साल एक लाख से अधिक गरीब बच्चों के एडमिशन की गुंजाइश बनती है।
आरटीई के तहत हर स्कूल को कक्षा एक से आठ तक की 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब बच्चों को मुफ्त एडमिशन देना है। ज्यादातर स्कूलों में नर्सरी, प्रेप और केजी की कक्षाएं भी चलती है। वहीं, हर कक्षा में दो से तीन सेक्शन चलते हैं और हर सेक्शन में कम से कम 40 बच्चे होते हैं। एक सेक्शन के हिसाब से भी दाखिले दिये जाएं तो हर स्कूल में 11 कक्षाओं में दस प्रतिशत के हिसाब से 110 बच्चों की गुंजाइश वर्तमान में बनती है।
अब तक लखनऊ में आरटीई के तहत 564 बच्चों के ही एडमिशन हुए हैं। इसमें सत्र 2014-15 में मात्र चार एडमिशन हुए थे। वहीं, इस बार सत्र 2015-16 में जागरूकता और कई लोगों के प्रयास के कारण 560 एडमिशन हो चुके हैं। ये एडमिशन शहर के सिर्फ 50 स्कूलों में किए गए हैं। अन्य स्कूलों के लिए आवेदन ही नहीं आए। सबसे अधिक 31 आवेदन सीएमएस इंदिरानगर के लिए आए थे।
मुफ्त दाखिले की उम्मीद बढ़ी
अगर एडमिशन के समय बच्चे आरटीई के मानक पूरे करते हैं तो हम उन्हें एडमिशन जरूर देंगे। समस्या तब आती है, जब सीटें भर जाती हैं और उसके बाद आरटीई के तहत आवेदन आते हैं। ~ जावेद आलम खान, प्रबंधक, लखनऊ पब्लिक कॉलिजिएट
आरटीई के तहत एडमिशन प्रक्रिया चैनलाइज करने की जरूरत है। हमें कोई दिक्कत नहीं। हम कभी आरटीई के खिलाफ नहीं रहे, लेकिन जब बच्चे नहीं आते हैं तो खाली सीट रह जाने से स्कूल का नुकसान होता है। ~ जावेद हाशमी, मैनेजर, डीपीएस
नियमों के विरुद्ध हमारा स्कूल कभी नहीं रहा। कोई बच्चा एडमिशन की योग्यता रखता है तो हम उसे एडमिशन देंगे। सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद तो इसमें कोई शक रह ही नहीं गया है। ~ एसपी सिंह, एलपीएस प्रबंधक
आरटीई के तहत प्रशासन समय से लिस्ट भेजे तो एडमिशन में कोई मुश्किल नहीं है। मुश्किल तब आती है कि जब आधा सत्र गुजरने के बाद आवेदन आते हैं। बाकी कोर्ट का निर्णय सर्वोपरि है।~ सर्वेश गोयल, प्रबंधक, जीडी गोएनका
एडमिशन से किसी को इनकार नहीं है। हमारे यहां कोई भी आएगा तो उसे दाखिला देंगे। हालांकि, अन्य स्कूलों के बच्चों के शैक्षिक स्तर में थोड़ा अंतर हो सकता है। हम उस गैप को भरने का भी विशेष प्रयास करेंगे।~ अनिल अग्रवाल, प्रबंधक, सेंट जोसफ स्कूल
अगले साल बड़ा अभियान, 10 हजार एडमिशन का लक्ष्य
बीएसए प्रवीण मणि त्रिपाठी ने बताया कि अगले साल आरटीई के लिए बड़ा अभियान चलाया जाएगा। इसमें शहर की गली-गली में जितने भी निरक्षर बच्चे हैं, उन्हें साक्षर करने की मुहिम चलाई जाएगी। साथ ही उन्हें आरटीई के प्रति जागरूक किया जाएगा, ताकि वे अपनी पसंद के स्कूल में एडमिशन ले सकें। आरटीई के तहत अभियान चलाने वाली भारत अभ्योदय फाउंडेशन की संचालक समीना बानो ने कहा कि अगले साल लखनऊ से दस हजार से अधिक बच्चों के एडमिशन का लक्ष्य तय किया गया है। साथ ही आरटीई के तहत राज्य सरकार का वह आदेश बदलने की मुहिम चलाई जाएगी, जिसमें कहा गया है कि पहले सरकारी स्कूल भरे जाएं और बाद में निजी। हालांकि, कोर्ट ने भी सरकार को इसे परिवर्तित करने के निर्देश दिए हैं।
शहर का हर स्कूल अपने यहां हर कक्षा के कितने सेक्शन चलाता है, इसका शिक्षा विभाग के पास कोई ब्योरा नहीं है। अप्रैल में डीएम ने स्कूलों से यह ब्योरा देने को कहा था ताकि यह पता लग सके कि किस स्कूल में आरटीई के तहत कितनी सीटे हैं। हालांकि, स्कूलों ने यह ब्योरा दिया ही नहीं। अगर यह ब्योरा मिल जाता है तो आरटीई की सीटों की संख्या एक लाख से अधिक हो सकती है। हालांकि, शिक्षा विभाग का दावा है कि यह ब्योरा जुटाया जा रहा है।
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