मनमानी भर्ती के बाद भी एडेड जूनियर हाईस्कूलों में अभी दो तिहाई पद खाली, खाली सीटों के सापेक्ष कुछ ही पद भरे जा सके, तमाम समितियों में विवाद
इलाहाबाद : चुनावी वर्ष में सरकार युवाओं को लुभाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है, वहीं अफसर योजनाओं को पलीता लगा रहे हैं। प्रदेश के सहायता प्राप्त अशासकीय जूनियर हाईस्कूलों में पहले बेसिक शिक्षा अधिकारियों ने शिक्षक तैनात करने में आनाकानी की और बाद में मनमाने तरीके से नियुक्तियां थोप दी गई। इसीलिए न्यूनतम मानक कहीं पूरा नहीं हो सका है। बड़ी संख्या में पद अभी खाली पड़े हैं। नियुक्तियों में बीएसए को खुली छूट देने से सारी गड़बड़ियां हुई हैं।
प्रदेश के 2888 अशासकीय जूनियर हाईस्कूलों में प्रधानाध्यापक एवं सहायक अध्यापकों की कमी सामने आई। इसे दूर करने के लिए शिक्षा निदेशालय ने 800 प्रधानाध्यापक, 1444 शिक्षकों यानी 2244 पदों को भरने के लिए शासन को पत्र भेजा गया। हालांकि इस अधियाचन में कुछ जिलों के शामिल न होने और बाद में अधिक संख्या में खाली पद सामने आने पर शासन ने पदों की संख्या तय करने के बजाए सीधी भर्ती से न्यूनतम मानक पूरा करने का आदेश 2015 में दिया। इसमें सीधी भर्ती के लिए बीएसए को अधिकृत किया गया। वैसे अशासकीय विद्यालयों में प्रबंधतंत्र होने के कारण समितियों का भी रोल अहम होता है, लेकिन जवाबदेह बीएसए को बनाया गया।
यह भी निर्देश हुआ कि जिलों में पद भरने के लिए शासन से अलग से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। पहले तो कुछ जिलों को छोड़कर भर्ती प्रक्रिया ठीक से शुरू नहीं हो सकी है। बाद में बीएसए ने एकाएक रफ्तार पकड़ ली। इसमें विज्ञापन, योग्यता एवं मानकों को जांचने की बजाए पद भरने पर ही सारा जोर लगाया गया, फिर भी सफलता नहीं मिली। कुछ जिले ऐसे भी रहे जहां स्कूलों के प्रबंधतंत्र एवं बीएसए की राय एक न होने से भर्तियां नहीं हुई। इससे हर स्कूल में एक प्रधानाध्यापक व चार सहायक अध्यापक की नियुक्ति नहीं हो पाई है।
पहले था लिपिकों की नियुक्ति का आदेश : अशासकीय जूनियर हाईस्कूलों में जून 2015 में 800 प्रधानाध्यापक, 1444 सहायक अध्यापक एवं 528 लिपिकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई थी। उस समय भी बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया गया, लेकिन प्रदेश भर में एक भी पद नहीं भरा गया। यह भर्ती पूरी करने के लिए समय बढ़ाकर 30 सितंबर किया गया था। इन स्कूलों में अनुचरों के भी पद खाली थे, वह सीधी भर्ती से भरने के बजाए प्रबंधतंत्र को ही इसकी नियुक्ति की जिम्मेदारी दी गई।
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