एक बार भी पूरा नहीं किया जा सका खर्च, हर साल सर्व शिक्षा अभियान के लिए जारी होता है बजट, ज़्यादातर रकम स्कूलों के निर्माण और बाउंड्री में खर्च
खुलेआम ठेंगा
यूपी में 6 से 14 साल के आयु वर्ग में करीब 60-65 लाख स्कूली बच्चे आते हैं। इसका 25 प्रतिशत यानी लगभग 16 लाख गरीब बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिया जाना था। लेकिन इस साल तक पूरे प्रदेश में सिर्फ 600 बच्चों को ही इसका लाभ मिल सका है।
बीते वर्ष राजधानी के लिए 19258.81 लाख रुपये का बजट तय किया गया था। इसमें से 19046.54 लाख रुपये खर्च भी हो गए। हालांकि, आरटीई का लाभ केवल चार विद्यार्थियों को मिला था। जाहिर है कि ऐसे में ज्यादातर रकम केवल स्कूलों के भवनों को बनाने के लिए इस्तेमाल हुईं।
- हर साल सर्व शिक्षा अभियान के लिए जारी होता है बजट
एक बार भी पूरा नहीं किया जा सका खर्च - 16 लाख बच्चों को मिलना था फायदा
प्रदेश में राइट टू एजुकेशन (आरटीई) के नाम पर सरकार को मिलने वाले बजट का एक बड़ा हिस्सा लगातार वापस होता रहा। प्रति वर्ष 16 लाख बच्चों को इसके तहत लाभ मिलना चाहिए, लेकिन बीते पांच वर्षों में महज 600 बच्चों को ही इसका लाभ दिया जा सका। राजधानी में तो पांच साल में केवल चार बच्चों को ही सरकार आरटीई का लाभ दिला सकी। जाहिर है ऐसे में प्रति वर्ष बच्चों की शिक्षा पर मिलने वाली रकम को स्कूलों के निर्माण और बाउंड्री में खर्च दिखा बंदरबांट होता रहा। खर्च और वापस जाने के साथ ही बजट के आंकड़ों पर भी सवालिया निशान उठ रहे हैं। कारण पिछले पांच वर्ष में खर्च रकम और बची रकम का ब्योरा मेल नहीं खा रहा है।
प्रदेश में निजी स्कूलों की माफियागिरी का ही आलम है कि सरकार इस अधिनियम को लागू कराने में बैकफुट
5 साल में सिर्फ 4 बच्चों को आरटीई पर का हक है। अपनी पहुंच के चलते निजी स्कूल मालिकों ने इसक मजाक बनाकर रख दिया है। जब किसी बच्चे के लिए अधिकार मांगा जाता है तो पूरी प्रक्रिया लाल फीताशाही में फंसकर रह जाती है। देश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार छह से 14 वर्ष तक के हर बच्चे को फ्री शिक्षा का अधिकार है। 4 अगस्त 2009 को संसद से पारित होने के बाद एक अप्रैल से इसे पूरे देश में लागू किया जा चुका है। यूपी में इस अधिनियम के आने के एक साल 7 महीने बाद 27 जुलाई 2011 को नियमावली बनाई गई और वर्ष 2013-14 में लागू किया गया। 3 दिसंबर 2012 को मूल शासनादेश जारी हुआ, जिससे सुधार के साथ 20 जून 2013 में दूर किया गया।
यूपी में 6 से 14 साल के आयु वर्ग में करीब 60-65 लाख स्कूली बच्चे आते हैं। इसका 25 प्रतिशत यानी लगभग 16 लाख गरीब बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिया जाना था। लेकिन इस साल तक पूरे प्रदेश में सिर्फ 600 बच्चों को ही इसका लाभ मिल सका है।
बीते वर्ष राजधानी के लिए 19258.81 लाख रुपये का बजट तय किया गया था। इसमें से 19046.54 लाख रुपये खर्च भी हो गए। हालांकि, आरटीई का लाभ केवल चार विद्यार्थियों को मिला था। जाहिर है कि ऐसे में ज्यादातर रकम केवल स्कूलों के भवनों को बनाने के लिए इस्तेमाल हुईं।
प्रदेश सरकार और यहां के आला अधिकारी आरटीई को लेकर संजीदा नहीं हैं क्योंकि इसका एक सिरा बड़े शिक्षा माफिया से जुड़ा हुआ है। वेबसाइट पर आंकड़े चेक करने पर मुझे हेरफेर की आशंका नजर आ रही है। ~ डॉ़ एसपी सिंह, संरक्षक, वास्ट
पहले सरकारी स्कूलों में एडमिशन देना था, क्योंकि उनमें सीटें खाली रहती हैं। इसके बाद निजी स्कूल में दाखिले की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसी के चलते महज 600 बच्चों का निजी स्कूलों में एडमिशन हो सका। ~ एचएल गुप्ता, सचिव, बेसिक शिक्षा
खबर साभार : नवभारत टाइम्स
एक बार भी पूरा नहीं किया जा सका खर्च, हर साल सर्व शिक्षा अभियान के लिए जारी होता है बजट, ज़्यादातर रकम स्कूलों के निर्माण और बाउंड्री में खर्च
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
7:57 AM
Rating:
No comments:
Post a Comment