सरकारी किताबों की छपाई में करोड़ों का गोलमाल : अधिकतर प्रकाशकों की किताबें छपाई के नमूनों में फेल, शासन 30 दिन बाद भी नहीं कर सका कार्रवाई पर निर्णय
पिछले वर्ष 23 प्रकाशकों ने छापी थीं दो करोड़ किताबें
40 फीसद काम तो एक ही प्रकाशक को मिला
लखनऊ। सूबे के सरकारी
स्कूलों में मुफ्त बंटने वाली किताबों की छपाई में जब गुणवत्ता की जांच
करायी गयी, तो प्रकाशकों की कलई खुल गयी। अधिकतर प्रकाशकों की किताबें छपाई
के नमूनों में फेल हो गयीं। इनमें कवर से लेकर अंदर के पेज तक शामिल थे।
नमूने फेल होने के बाद निदेशक बेसिक शिक्षा ने दिसम्बर के अंतिम दिनों में
कार्रवाई के लिए शासन को रिपोर्ट भेजी, लेकिन 30 दिनों बाद भी कोई फैसला
नहीं हो सका। अब अगर प्रकाशकों पर शासन ने सख्ती दिखायी, तो 30 फीसद तक
भुगतान की कटौती की जा सकती है।
सर्व शिक्षा अभियान के तहत शैक्षिक सत्र
2015-16 में करीब Rs पौने दो सौ करोड़ की दो करोड़ किताबें छापी गयी थीं।
छपाई का काम हथियाने के लिए एक बार टेण्डर जारी हुआ, लेकिन बात नहीं बनी,
तो पहला टेण्डर निरस्त कर दोबारा जारी हुआ। इसके चलते नौनिहालों को नयी
किताबें दो महीने बाद मिल पायीं, जबकि सत्र पहली अप्रैल से ही शुरू हो गया
था। सूबे में किताबों की छपाई में वैसे तो 23 प्रकाशक शामिल थे, लेकिन 40
फीसद काम एक ही प्रकाशक पिताम्बरा प्रिन्टिंग प्रेस, झांसी को मिला था।
बाकी के काम में सभी शामिल थे। इसमें 40 फीसद का भुगतान भी हो गया, लेकिन
बचे हिस्से का भुगतान कराने के लिए शासन तक जोर-आजमाइश चल रही थी। इसी बीच
किताबों की छपाई गुणवत्ता की जांच रिपोर्ट आयी, तो सभी सन्न रह गये।
किताबों की छपाई की 40 रिपोटरे में सभी फेल कर दी गयीं। इन प्रकाशकों पर कार्रवाई को लेकर निदेशक बेसिक शिक्षा ने सचिव बेसिक
शिक्षा विभाग को पत्र भेजा है, लेकिन शासन स्तर पर अभी इस मामले में कोई
फैसला नहीं हो पाया है। वैसे, यह मामला तब खुला, जब तत्कालीन प्रमुख सचिव
डिम्पल वर्मा ने प्रकाशकों पर वैिक कसने के लिए किताबों में प्रयुक्त कागज
की जांच सरकारी लैब से कराने का निर्णय लिया। विभागीय प्रमुख सचिव के फैसले
के बाद भारत सरकार की राष्ट्रीय परीक्षणशाला, उत्तर क्षेत्र गाजियाबाद को
एक-एक किताब के सैम्पल भेज दिये गये। विभाग ने इस मामले में एक और काम
किया। उसने सभी किताबों की कोडिंग करा दी, ताकि प्रकाशक लॉबी किसी भी सूरत
में कोई जुगत न भिड़ा पाये। अब जब रिपोर्ट आयी, तो कई वर्ष से चल रहे इस
खेल की हकीकत सामने आ गयी। वैसे तो किताबों की सरकारी लैब में जांच कराने
का आदेश जारी करने वाली प्रमुख सचिव डिम्पल वर्मा भी विभाग में नहीं रह
पायीं। कुछ उनके फैसले, तो कुछ प्रकाशक लाबी का विरोध उन पर भारी पड़ा और
अब वह विभाग के बाहर हैं, लेकिन उनके फैसले को लेकर सराहना की जा रही है।
जानकारों का कहना है कि प्रकाशकों के नमूने फेल होने के मामले में पांच से
30 फीसद तक भुगतान की कटौती की जा सकती है। प्रकाशकों का अभी 60 फीसद
हिस्सा लटका है। ऐसे में बाकी भुगतान में आधे की कटौती होने पर ही उन्हें
सबक दिया जा सकेगा।
इन प्रकाशकों ने छापी थीं किताबें :-
- पीताम्बरा प्रिन्टिंग प्रेस झांसी
- सिंघल एजेन्सीज लखनऊ
- लखनऊ प्रिन्टर्स लखनऊ
- चाचा प्रिन्टर्स लखनऊ
- वीर बुंदेलखण्ड प्रेस झांसी
- राम राजा प्रिन्टिंग प्रेस झांसी
- भगवत प्रिन्टिंग प्रेस मथुरा
- मनोहर प्रिन्टिंग प्रेस मथुरा
- महेश प्रिन्टिंग प्रेस मथुरा
- प्रतिभा प्रिन्टिंग प्रेस मथुरा
- राजीव प्रकाशन इलाहाबाद
- काजमी प्रिन्टर्स इलाहाबाद
- नेशनल प्रिन्टिंग प्रेस रांची
- पायनियर प्रिन्टिंग प्रेस आगरा
- मुदण्रमहल आगरा
सरकारी किताबों की छपाई में करोड़ों का गोलमाल : अधिकतर प्रकाशकों की किताबें छपाई के नमूनों में फेल, शासन 30 दिन बाद भी नहीं कर सका कार्रवाई पर निर्णय
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
7:40 AM
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