मौलिक नियुक्ति शीर्ष कोर्ट में सुनवाई से रुकी, हजारों बने नए दावेदार, अब फरवरी में न्याय की उम्मीद
⚛परिषदीय विद्यालयों में नियुक्तियों की सुनवाई शीर्ष कोर्ट में चल रही है। पहले 27 जुलाई फिर 17 नवंबर को सुनवाई की तारीख लगी। न्यायालय ने इस मामले में अगली तारीख 22 फरवरी लगा दी है। उसी समय अंतिम आदेश आने की उम्मीद लगी है। जिसने ‘दवा’ दी, उसी के नाम मिला ‘दर्द’
⚛जिसके आदेश पर ठसक के साथ शिक्षक बनने का मौका मिला, उसी का हवाला देकर युवाओं को दर-दर की ठोकर खानी पड़ रही है। यह झटका परिषदीय विद्यालय के उन प्रशिक्षु शिक्षकों को ही नहीं लगा है, जिन्हें गत दिनों मौलिक नियुक्ति नहीं मिल पाई है, बल्कि इसका असर उन पर भी पहुंचा है, जो इसी तर्ज पर शिक्षक बनने के लिए कतारबद्ध हैं। प्रदेश में ऐसे युवाओं की तादाद पचास हजार से भी अधिक है।
बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक के रूप में नियुक्ति पाने के लिए पिछले वर्षो में तमाम युवाओं ने न्यायालय में याचिका दाखिल कर रखी थी।
⚛ सात दिसंबर 2015 को शीर्ष कोर्ट ने निर्देश दिया था कि यदि याचिका करने वाले युवा अर्हता रखते हैं तो उन्हें तैनाती दी जाए। कोर्ट में उस समय अधिवक्ताओं ने याचिका करने वालों की संख्या करीब 1100 बताई थी। इसके अनुपालन में परिषद ने 862 युवाओं को तदर्थ शिक्षक के रूप में तैनाती दे दी थी, क्योंकि तब तक उसे इतने ही आवेदन प्राप्त हो सके थे। इन्हें प्रशिक्षु शिक्षक चयन 2011 के रूप में नियुक्ति मिली। उस समय नियुक्ति पाने वाले युवाओं व उनके परिवार में खुशी का ठिकाना न रहा। तैनाती पाने के लिए छह माह का प्रशिक्षण भी पूरा किया और 9 एवं 10 सितंबर को परीक्षा नियामक प्राधिकारी सचिव ने प्रशिक्षु शिक्षकों की प्रशिक्षण परीक्षा कराई और उसका परिणाम छह अक्टूबर को जारी हुआ। इसमें 839 प्रशिक्षु शिक्षक सफल हुए, लेकिन उन्हें मौलिक नियुक्ति नहीं दी गई है।
⚛परिषद सचिव संजय सिन्हा की ओर से इस संबंध में पत्र जारी करके कहा गया कि विशेष अनुज्ञा याचिका के तहत नियुक्त 839 शिक्षकों का प्रकरण अभी शीर्ष कोर्ट में विचाराधीन है, उन्हें तैनात करने के लिए शासन से अगला आदेश मिलने पर कार्यवाही की जाएगी। इससे प्रशिक्षु शिक्षकों को झटका लगा है। इससे वह युवा भी प्रभावित होंगे जो कोर्ट के आदेश पर नियुक्ति पाने की उम्मीद संजोए हैं। ज्ञात हो कि परिषदीय स्कूलों में 862 युवाओं की नियुक्ति होने के बाद प्रदेश भर के करीब 50 हजार से अधिक युवा भी न्यायालय में दायर मुकदमों में याची बने हैं। यह संख्या लगातार बढ़ भी रही है। प्रशिक्षु शिक्षक अशोक द्विवेदी का कहना है कि परिषद ने जब शीर्ष कोर्ट के निर्देश पर उन लोगों की नियुक्ति की थी, तब मौलिक नियुक्ति को रोकना उचित नहीं है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई रोक नहीं लगाई है।
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