बेसिक शिक्षा विभाग : न दूर हुई शिक्षकों की कमी, न बनी वेबसाइट


बेसिक शिक्षा विभाग के खाते में उपलब्धियों के नाम कुछ खास नहीं  वर्ष 2013 की उपलब्धियां :-

लखनऊ। भले ही प्रदेश के विभिन्न विभागों में इस साल कई उपलब्धियां रही हों। लेकिन सूबे के बेसिक शिक्षा महकमे के खाते में उपलब्धियों के नाम पर वर्ष 2013 कुछ खास नहीं रहा। इस साल जो प्रमुख योजनाएं बनीं वो या तो कागजों तक सीमित रह गईं या फिर भी सौ फीसदी सफल नहीं हो सकीं। लेकिन नए वर्ष 2014 के लिए एक बार फिर बड़े-बड़े दावे की तैयारी की जा रही है।

  • कागजों तक सीमित रह गई ऑनलाइन प्रक्रिया 
स्कूलों को मान्यता देने के लिए वर्ष 2013 में ऑनलाइन आवेदन किए जाने थे। इसके लिए तत्कालीन बेसिक शिक्षा सचिव सुनील कुमार ने शासनादेश जारी कर कहा था कि वेबसाइट बनाने के लिए अलग से निर्देश जारी किए जाएंगे। लेकिन सात महीने बाद भी मान्यता के लिए ऑनलाइन आवदेन की प्रक्रिया कागजों तक सीमित रह गई।
  • बायोमैट्रिक उपस्थिति प्रणाली अधर में
विद्यालयों में शिक्षिकों की उपस्थिति दुरुस्त करने के लिए प्रयोग के तौर पर राजधानी के सरोजनी नगर स्थित एक प्राथमिक विद्यालय में प्रयोग के तौर पर बायोमैट्रिक उपस्थिति प्रणाली लगाई गई थी। उस समय कहा गया था कि इसे सभी विालयों में लगाया जाएगा। लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ सका। इसके अलावा सभी डायट में भी बायोमैट्रिक सिस्टम लगाने के निर्देश दिए गए थे। लेकिन अभी कुछ एक संस्थान को छोड़ दिया जाए तो कहीं भी बायामैट्रिक सिस्टम प्रणाली नहीं लगाई गई।
  • शिक्षकों की भर्ती पर लगा ग्रहण
पिछले दो साल से परिषदीय विद्यालयों में चली आ रही शिक्षकों की कमी वर्ष 2013 में भी नहीं दूर हो सकी। ऐसा इसलिए है क्योंकि 72,825 शिक्षकों की भर्ती के मामले में जब उच्च न्यायालय ने 20 नवंबर को शिक्षकों की भर्ती टीईटी मेरिट के आधार करने का आदेश जारी किया तो राज्य सरकार ने भर्ती शुरू करने की बजाए सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर ली। नतीजा, भर्ती प्रक्रिया पर फिर संकट खड़ा हो गया। आलम यह है कि प्राइमरी विालय तकरीबन दो लाख शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं।  इनमें कहीं एक शिक्षक के सहारे विालय चल रहे हैं तो कहीं शिक्षा मित्र बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं।
  • न बनी हेल्पलाइन न रखी शिकायत पेटिका
शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 लागू हुए तकरीबन तीन साल बीत गए। लेकिन अधिनिमय के ज्यादातर प्रावधान आज तक विालयों में नहीं लागू हुए। इसमें सबसे प्रमुख विद्यालयों में बच्चों के लिए रखी जाने वाली शिकायत पेटिका थी। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत विालय में एक शिकायत पेटिका रखी जानी थी। जिसमें बच्चों को अपनी बात कहने या फिर कोई परेशानी होने पर गोपनीय तरीके से चिट्ठी लिखकर उसमें डालनी थी। लेकिन आज तक विद्यालयों में शिकायत पेटिका नहीं रखी गईं। यही हाल शिकायत के लिए गठित होने वाली हेल्पलाइन का रहा। सर्व शिक्षा अभियान के तहत एक हेल्पलाइन बनाई जानी थी जिसमें विद्यालय से जुड़ी कोई भी समस्या और शिकायत इसमें दर्ज कराई जा सकती थी। इसके लिए कमेटी बनाकर सुझाव भी मांगे गए। लेकिन मामला कागजों तक ही सीमित रह गया।
  • चर्चा में रही आग लगाने की घटना
वित्त एवं लेखाधिकारी कार्यालय द्वारा सेवानिवृत्त शिक्षक से घूस मांगने की घटना चर्चा में रही। दरअसल, वित्त एवं लेखाधिकारी आशुतोष चतुर्वेदी पर आरोप है कि उन्होंने पूर्व माध्यमिक विद्यालय मड़ियावं से सेवानिवृत्त सहायक अध्यापक सै.मसूद हसन रिजवी से पेंशन के एवज में घूस मांगी थी। जिस पर शिक्षक ने उन्हीं के दफ्तर में आग लगा ली थी। इस घटना के बाद शासन ने वित्त एवं लेखाधिकार को निलंबित कर दिया था।
  • सिर्फ एक करोड़ 30 लाख को यूनिफार्म 
राज्य सरकार ने इस बार परिषदीय विद्यालयों के बच्चों को दी जाने वाली निशुल्क यूनिफार्म का रंग खाकी कर दिया था। साथ ही उसे समय से वितरित करने के निर्देश भी दिए गए थे। लेकिन अफसरों की लेटलतीफी के चलते अभी तक दो करोड़ बच्चों में से केवल 1 करोड़ 38 लाख बच्चों को ही यूनीफार्म दी जा सकी है।
  • पहली बार सेवानिवृत्त के दिन चेकों का भुगतान 
हर साल की तरह इस साल सेवानिवृत्त शिक्षकों को जीपीएफ के भुगतान के लिए लेखाधिकारी कार्यालय में घूस नहीं देनी पड़ी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बेसिक शिक्षा मंत्री ने 30 जून तक सेवानिवृत्त होने वाले सभी परिषदीय विालयों के शिक्षकों को खुद ही जीपीएफ की धनराशि का चेक वितरित किया। हालांकि पेंशन के भुगतान के लिए शिक्षक पांच महीने तक वित्त एवं लेखाधिकारी कार्यालय के चक्कर लगाते रहे।
  • अनुदेशकों का चयन 
परिषदीय विद्यालयों में कला, कंप्यूटर सहित विभिन्न विषयों में तकरीबन 41 हजार अनुदेशकों की मानदेय पर नियुक्तियों का आदेश जारी हुआ। लेकिन अभी तक केवल 30 हजार के आसपास नियुक्तियां ही पूरी हो सकीं।
  • उर्दू शिक्षकों के लिए अच्छा रहा वर्ष 2013
वर्ष 2013 उर्दू डिग्री धारकों के लिए काफी अच्छा रहा। काफी समय से उर्दू शिक्षकों के पदों पर भर्ती की मांग कर रहे अभ्यर्थियों के लिए राज्य सरकार ने 4280 पदों पर सहायक अध्यापक उर्दू की नियुक्ति शुरू की। इसके लिए तीन बार काउंसिलिंग भी कराई गई। लेकिन फिर भी निर्धारित योग्यता न मिलने की वजह से सीटें खाली रह गईं।
  • नए रंग में एसएमसी 
विद्यालय प्रबंध समिति (एसएमसी) को और मजबूत करने के लिए इस साल नए सिरे से एक लाख 59 परिषदीय स्कूलों में इसका गठन किया गया।
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"वर्ष 2013 में अनुदेशकों व उर्दू शिक्षकों की भर्ती के अलावा समय से किताबें बंटाना, बच्चों को निशुल्क यूनीफार्म उपलब्ध कराना मुख्य उपलब्धियां रही हैं। इसके अलावा इस वर्ष की उपलब्धियों का ब्योरा जुटाया जा रहा है। साथ ही वर्ष 2014 का लक्ष्य विालयों की शैक्षिक गुणवत्ता को और सुधारना है। इसके लिए प्लान तैयार किया जाएगा"
                            - हरेंद्र वीर सिंह, राज्य परियोजना निदेशक, लखनऊ
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खबर साभार : डेली न्यूज एक्टिविस्ट


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बेसिक शिक्षा विभाग : न दूर हुई शिक्षकों की कमी, न बनी वेबसाइट Reviewed by Brijesh Shrivastava on 9:52 AM Rating: 5

1 comment:

banarsi said...

GOD help pls.........
or "basicic sikshs" will RIP

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