निजी स्कूलों को सुविधाएं देंगे लेकिन सरकारी स्कूलों से परहेज, जनप्रतिनिधियों के एजेंडे से बेसिक शिक्षा नदारद

निजी स्कूलों को सुविधाएं देंगे लेकिन सरकारी स्कूलों से परहेज करेंगे, निधि से बेसिक स्कूलों में नहीं दी जातीं सुविधाएं माध्यमिक शिक्षा में पिछले नौ साल में दिखा कुछ सुधार माध्यमिक शिक्षा में पिछले नौ साल में कुछ सुधार दिखा है। आठवीं के बाद जो शिक्षा प्राप्त करने का संकट था, उसे राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद से दूर किया जा सका है। दूरस्थ क्षेत्रों में जूनियर हाई स्कूलों को राजकीय हाईस्कूल में उच्चीकृत किया गया। नौ सालों में 16 स्कूलों को उच्चीकृत करने उन क्षेत्रों में काफी सहूलियत हुई जहां वास्तव में आठवीं के बाद स्कूल नहीं थे या बहुत दूर थे। इनमें पढ़ाई भी होने लगी है, लेकिन में स्टाफ की कमी अभी पूरी नहीं हो पाई है। राजकीय कालेजों से शिक्षकों को शिफ्ट करने के बाद भी कमी बनी हुई है। दो इंटरमीडिएट के मॉडल स्कूल बनाए गए हैं। इनमें नारायणपुर देवा संचालित हो चुका है जबकि ठाकुरद्वारा में जटपुरा का स्कूल आगामी सत्र से शुरू हो जाएगा। स्कूल खोलने भर से शिक्षा में सुधार नहीं आएगा। शिक्षकों की भर्ती के बिना इन इमारतों के खड़े करने से कुछ नहीं होगा।

शिक्षा पर ही देश के विकास की बुनियाद टिकी हुई है। शिक्षा का ढांचा कमजोर होने का मतलब है सम्पूर्ण देश का विकास प्रभावित होना। बेसिक स्कूलों की शिक्षा प्रणाली में सुधार तो हुआ, लेकिन यह अभी 10 फीसद ही है। गरीबों के बच्चों की शिक्षा बनकर रह गई है बेसिक शिक्षा। पब्लिक स्कूलों की तर्ज पर बेसिक शिक्षा को लाने की घोषणाएं हुई, लेकिन वास्तव में माहौल पुराना है। कोई विधायक, सांसद या महापौर ऐसा कहते नहीं सुना होगा कि वह अपनी निधि से बेसिक स्कूलों में फर्नीचर, बिजली की सुविधा देंगे। पब्लिक स्कूलों पर विधायक निधि से कई सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाती हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों पर सरकार की ओर से दी गई निधि खर्च नहीं करते। फर्नीचर, बिजली, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ शौचालय भी गुणात्मक शिक्षा में सुधार का हिस्सा है और बच्चों में वह सुधार नहीं दिखेगा तब तक पब्लिक की तर्ज पर बेसिक स्कूल संचालित नहीं हो सकते।

सर्व शिक्षा अभियान के तहत बेसिक शिक्षा में सबसे ज्यादा सरकारी योजनाएं बेसिक शिक्षा में हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर स्कूल होने के कारण कई सुविधाएं बेसिक स्कूलों में नहीं हैं। यही नहीं नए शिक्षकों की भर्ती पिछले 15 दशक में खूब हुई, नए भवन भी बने, गुणात्मक शिक्षा को ट्रेनिंग मॉडयूल भी बनाए गए हैं। बच्चों की संख्या बढ़ाने को मिडडे मील से लेकर यूनिफार्म व किताबों से लेकर पूरी तरह निश्शुल्क शिक्षा है और तो और पब्लिक स्कूलों की तर्ज पर बेसिक स्कूलों को बनाने की घोषणा भी चुकी है, लेकिन फिर भी बेसिक शिक्षा की दशा में सुधार नहीं हो पा रहा है। याद नहीं कि किसी नेता ने मंच से बेसिक शिक्षा के सुधार की बात की हो। आज भी छात्र संख्या बढ़ाने को नगर निगम के चुनाव में भी किसी प्रत्याशी ने शिक्षा का मुद्दा नहीं बनाया। आखिर क्यों नगर निगम का चुनाव सफाई, सड़क निर्माण व प्रकाश व्यवस्था तक सिमटकर रह गया है। स्मार्ट सिटी में जन सहभागिता की बात की गई है, वोट भी मांगे और सलाह देने को वेबसाइट पर कमेंट भी आए, लेकिन शिक्षा को अनछुआ रखा है। शिक्षा को न तो किसी पार्टी ने मुद्दा बनाया और नगर निगम सोच रहा है। सौ में 20 फीसद शिक्षक ही ऐसे हैं जो वास्तव में बच्चों की शिक्षा के प्रति गंभीर हैं। शेष 80 फीसद लोग दूसरे के बराबर वेतन लेते हैं। इसके उलट उनकी कार्यप्रणाली से बच्चों का गुणात्मक विकास प्रभावित हो रहा है।

रजिस्टर में हाजिरी मौके से गायब : बेसिक शिक्षा में शिक्षक की नौकरी मिलने के बाद शिक्षक उसी र्ढे आ जाते हैं जैसे पुराने शिक्षक थे। रजिस्टर में हस्ताक्षर करके स्कूल से चले जाना। कई-कई दिन बिना स्कूल गए हाजिरी लगाना, स्कूल देर से पहुंचना और जल्दी स्कूल बंद करके घर चले जाना। जितनी देर स्कूल में हैं उतना समय भी उनकी शिक्षा को ईमानदारी से नहीं दे पाते।

जिले में 1725 स्कूल हैं, इन स्कूलों के रखरखाव को हर साल करोड़ रुपये का बजट आता है। नए विद्यालय भी पिछले एक दशक में खूब बने हैं। अतिरिक्त कक्ष भी बनाए गए हैं जिससे बेसिक शिक्षा का स्तर सुधर सके। जितनी उम्मीद की जाती है उतना बदलाव नजर नहीं आ रहा है। कुछ शिक्षक व प्रधानाध्यापक अपवाद हैं, जिन्होंने शिक्षा की नींव को मजबूत करने की ओर ध्यान दिया है।

निजी स्कूलों को सुविधाएं देंगे लेकिन सरकारी स्कूलों से परहेज, जनप्रतिनिधियों के एजेंडे से बेसिक शिक्षा नदारद Reviewed by ★★ on 9:46 AM Rating: 5

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