अब जोर पकड़ेगी पुरानी पेंशन की लड़ाई, अगले माह से 18 दिन क्रमिक अनशन, फिर पेंशन बचाओ महारैली, आंदोलित कर्मचारियों को चुनाव से पहले बड़े फैसले की उम्मीद
लखनऊ : नई पेंशन योजना लागू करने की प्रदेश सरकार की मशक्कत के बीच पुरानी पेंशन की लड़ाई भी जोर पकड़ रही है। चुनाव से पहले किसी बड़े फैसले की उम्मीद में आंदोलित शिक्षकों व कर्मचारियों ने अगले माह से बड़े आंदोलन की रणनीति बनाई है।
केंद्र सरकार ने एक जनवरी 2004 और फिर राज्य सरकार ने एक अप्रैल 2005 को पुरानी पेंशन समाप्त कर नई पेंशन योजना को अंगीकार किया था। इसके खिलाफ प्रदेश में ऑल टीचर्स इम्प्लाइज वेलफेयर एसोसिएशन (अटेवा) के पेंशन बचाओ मंच ने लगातार पुरानी पेंशन बहाली के लिए मुहिम छेड़ रखी है। पश्चिम बंगाल, केरल व त्रिपुरा में पुरानी पेंशन पहले ही बहाल है और हाल ही में तमिलनाडु में भी मुख्यमंत्री जयललिता ने पुरानी पेंशन बहाली के लिए समिति बना दी है। दरअसल कर्मचारियों के दबाव में यह मसला विधानसभा चुनाव में जयललिता के घोषणा पत्र का हिस्सा बना था और चुनाव जीतने के बाद उन्होंने इसके लिए समिति गठित कर दी।
अब पेंशन बचाओ मंच ने उत्तर प्रदेश में भी विधानसभा चुनाव से पहले इस लड़ाई को रफ्तार देने का फैसला किया है। इसके लिए शिक्षकों व कर्मचारियों को एकजुट करने के साथ राजधानी लखनऊ पहुंचकर ताकत दिखाने की रणनीति भी बनाई गयी है।
अटेवा-पेंशन बचाओ मंच के महामंत्री डॉ.नीरजपति त्रिपाठी ने बताया कि 10 से 30 जून तक प्रदेश के शिक्षकों व कर्मचारियों ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव व बसपा अध्यक्ष मायावती को पोस्टकार्ड भेजकर पुरानी पेंशन योजना बहाल करने की मांग की गयी है। अब जुलाई और अगस्त में पूरे प्रदेश में सदस्यता अभियान चलाकर हर जिले में कम से कम एक हजार सदस्य बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। जुलाई के अंत में जिलों में मोटरसाइकिल रैलियां व पेंशन बचाओ पदयात्र निकाली जाएगी।
21 अगस्त से पूरी लड़ाई राजधानी लखनऊ पहुंचा दी जाएगी। यहां 18 दिन तक मंडलवार क्रमिक अनशन होगा। गांधी प्रतिमा लखनऊ पर होने वाले इस अनशन के माध्यम से ताकत दिखाने पर भी जोर है। क्रमिक अनशन के बाद 23 अक्टूबर को राजधानी में पेंशन बचाओ महारैली होगी, जिसमें चुनाव घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन बहाली की बात करने वाले को ही समर्थन का एलान किया जाएगा।
गिना रहे फायदे नुकसान
पेंशन बहाली की लड़ाई के दौरान कर्मचारियों से संपर्क करते हुए फायदे-नुकसान भी गिनाए जा रहे हैं। उन्हें बताया जा रहा है कि पुरानी पेंशन योजना में कोई अंशदान अलग से नहीं देना पड़ता, जबकि नई योजना में दस फीसद कटौती हो जाती है। पुरानी पेंशन योजना का शेयर मार्केट से लेना-देना नहीं है, बल्कि नई पूरी तरह शेयर बाजार पर आधारित होने के कारण सरकारी गारंटी से बाहर है।
जीपीएफ कटौती को निकालना आसान है, जबकि नई पेंशन योजना की कटौती प्रक्रिया जटिल है। पुरानी पेंशन योजना में साल में दो बार महंगाई भत्ता मिलता है, नई में ऐसा नहीं होता। नई योजना के लाभ आयकर के दायरे में आते हैं और उसके प्रबंधन का खर्च कर्मचारियों को उठाना होगा।
दस साल बाद पहली निकासी
नई पेंशन योजना में शामिल कर्मचारी दस साल बाद पहली बार धन निकाल सकेंगे। यह राशि कुल जमा राशि की 25 फीसद होगी। इसके बाद पांच-पांच वर्ष के अंतर में अधिकतम तीन बार ही धनराशि निकाली जा सकेगी। सिर्फ बीमारी की स्थिति में पांच वर्ष की अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी है।
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