आठवीं तक फेल न करने की नीति में बदलाव पर कांग्रेसी राज्यों में मतभेद, कर्नाटक ने प्रस्ताव को ठुकराया
📌 आठवीं तक फेल न करने की नीति में बदलाव पर कांग्रेसी राज्यों में मतभेद
• कर्नाटक ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रस्ताव को ठुकराया
• उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और मिजोरम नीति को बदलने के पक्ष में
नई दिल्ली। कक्षा एक से आठवीं तक फेल नहीं करने की नीति को बदलने के मुद्दे पर कांग्रेस शासित राज्यों की अलग-अलग राय सामने आई है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय को अब तक 14 राज्यों ने अपनी राय पेश कर दी है। इनमें से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और मिजोरम ने कक्षा एक से आठवीं तक परीक्षा नहीं होने की नीति को खामियों भरा बताते हुए इसे बदलने की मांग मानव संसाधन विकास मंत्रालय से की है।
वहीं, कांग्रेस के लिए सबसे प्रमुख राज्य कर्नाटक ने इस नीति को हटाने के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रस्ताव का विरोध किया है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय को बिहार, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, मिजोरम, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, यूपी, उत्तराखंड, पुड्डुचेरी, दिल्ली और कर्नाटक ने कक्षा एक से आठवीं तक फेल नहीं करने की नीति के मुद्दे पर अपनी राय भेज दी है। इन राज्यों में से सिर्फ कर्नाटक ही अकेला राज्य है, जिसने इस नीति को बदलने के प्रस्ताव का विरोध किया है। कर्नाटक ने तर्क दिया है कि इस नीति से पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है, क्योंकि पहले बच्चे फेल होने की स्थिति में निराश होकर शिक्षा छोड़ देते थे।
नो डिटेंशन पॉलिसी यूपीए सरकार के समय लागू हुई थी। इस नीति को लागू करने में पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल की अहम भूमिका थी। यह नीति शुरू से ही विवादों में रही। यूपीए सरकार के समय कांग्रेस शासित राज्य चुप रहे। लेकिन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी की ओर से बुलाई गई केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की बैठक में कांग्रेस शासित राज्यों ने भी कहा कि नो डिटेंशन पॉलिसी से बच्चों में पढ़ाई का स्तर गिर रहा है और परीक्षा के नतीजे भी खराब आ रहे हैं। केरल भी कर्नाटक की राह पर चलकर नो डिटेंशन पॉलिसी को जारी रखने की वकालत कर सकता है।
No comments:
Post a Comment