17 साल बाद बदलेंगी सरकारी स्कूलों की किताबें, बड़े बदलाव के लिए मंथन शुरू, बस्ते का बोझ भी होगा कम


17 साल बाद सरकारी स्कूलों की किताबों में बड़ा फेरबदल होने जा रहा है। नया पाठ्यक्रम निर्धारण के लिए विषय विशेषज्ञों ने मंथन शुरू कर दिया है। उन्हें इलाहाबाद बुलाया गया है। बरेली से भी कई विषय विशेषज्ञ पहुंचे हैं। अगले सत्र से यह किताबें कक्षा एक से छह तक के बच्चों के सामने होंगी। कांवेंट स्कूलों की तर्ज पर नया कोर्स विकसित होगा ताकि वे बच्चों को लुभाएं और पढ़ाई का आकर्षण बना रहे। 




☀ इसलिए लिया गया निर्णय:

 सरकारी स्कूलों में चल रही किताबों में वर्ष 1999 के बाद बड़ा बदलाव नहीं हुआ। कुछ पाठ्यक्रम में आंशिक बदलाव जरूर हुआ, लेकिन बच्चों में कोई उत्साह नहीं है। किताबें आकर्षक नहीं हैं। हर साल बच्चों को पुरानी जानकारी प्रदान की जाती है। चूंकि, 17 साल में देश में तमाम नए परिवर्तन हुए। उनका उल्लेख इन किताबों में नहीं मिलता। मान्यताएं भी पुरानी ही इंगित हैं। जानकार सरकारी स्कूलों में बच्चों की घटती संख्या को यह भी एक कारण मानते हैं। 




☀ बस्ते का बोझ होगा कम: स्टेट व नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग यानी एससीईआरटी व एनसीइआरटी के अफसर पाठ्यक्रम बदलने की तैयारी में लगे हैं। इसके लिए विषय विशेषज्ञ इलाहाबाद बुलाए गए हैं। इसमें बरेली से राजकीय इंटर कॉलेज के उप प्रधानाचार्य अवनीश यादव भी शिरकत करने गए हैं। मंडल के अन्य कॉलेजों के विशेषज्ञों को भी बुलावा आया है। यह पाठ्यक्रम जनवरी तक तैयार हो जाएगा। अगले सत्र से लागू होगा। विशेषज्ञों की मानें तो किताबों के चेप्टर कम किए जाएंगे ताकि बच्चों पर वजन कम हो सके। 1ये है आंकड़ा: प्रथम चरण में सरकार कक्षा एक से तीन तक की किताबें बदलेगी। बरेली मंडल में कक्षा एक से तीन तक के बच्चों की संख्या लगभग नौ लाख है। कक्षा एक में एक किताब चल रही है। इसका नाम कलरव है। इसमें हंिदूी, अंग्रेजी व गणित शामिल है। कक्षा दो में कलरव के अलावा गिनतारा पुस्तक है। यह गणित की है।


17 साल बाद बदलेंगी सरकारी स्कूलों की किताबें, बड़े बदलाव के लिए मंथन शुरू, बस्ते का बोझ भी होगा कम Reviewed by प्राइमरी का मास्टर 1 on 6:26 AM Rating: 5

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