सरकारी स्कूलों की यूनिफार्म का रंग बदलने की तैयारी, शासन स्तर पर शुरू हुई कवायद, बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों से राय मांगी गई
- सरकारी स्कूलों की यूनिफार्म का रंग बदलने की तैयारी
- शासन स्तर पर शुरू हुई कवायद
- बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों से राय मांगी गई
बेसिक शिक्षा परिषद के प्राइमरी व जूनियर हाईस्कूलों के बच्चों को दी जाने वाली निशुल्क यूनिफार्म का रंग फिर बदलने की तैयारी है। इसके लिए शासन स्तर पर विचार विमर्श शुरू हो गया है। यूनिफार्म का रंग इस बार कैसा हो, इसको लेकर बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों से राय मांगी गई है।सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत प्रदेश के करीब एक करोड़ 90 लाख परिषदीय विद्यालयों के बच्चों को दो जोड़ी निशुल्क यूनिफार्म दिए जाने की व्यवस्था है। पहले इन बच्चों को दी जाने वाली यूनिफार्म का रंग नीले रंग का था। लेकिन वर्ष 2013 में राज्य सरकार ने इसका रंग खाकी कर दिया। इसकी वजह से बच्चों को काफी देर से यूनिफार्म का वितरण किया जा सका था। उसके बाद वर्ष 2014 में खाकी रंग को फिर बदलने की कवायद शुरू हुई।
पिछले वर्ष 12 जून को वार्षिक कार्ययोजना की समीक्षा के लिए डिपार्टमेंट ऑफ स्कूल एजूकेशन एमएचआरडी की निदेशक मनिन्दर कौर द्विवेदी राजधानी आईं थीं। बैठक में यूनिफार्म का रंग बदलने पर चर्चा हुई थी। लेकिन कई महीनों तक चली बातचीत के बाद शासन ने रंग बदलने पर सहमति नहीं दी थी। इस दौरान बच्चों को यूनिफार्म मिलने में काफी देर भी हो गई थी। अब एक बार फिर यूनिफार्म का रंग बदलने पर विचार विमर्श शुरू हुआ है। सूत्रों के अनुसार बेसिक शिक्षा निदेशालय ने इस संबंध में स्कूलों में चल रही यूनिफार्म के सैम्पल भी मांगे हैं। जल्द ही यह तय हो जाएगा कि यूनिफार्म का रंग बदलेगा या फिर नहीं।नहीं बढ़ेगा पैसाभले ही यूनिफार्म का रंग खाकी से बदलक र दूसरा कर दिया जाए लेकिन जो बजट दिया जाता था उसी के आधार पर नई यूनिफार्म भी तैयार की जाएंगी। मौजूदा समय में प्रति छात्र-छात्रा दो जोड़ी यूनिफार्म के लिए 400 रुपए का बजट दिया जाता है। इतने कम रुपए में यूनिफार्म बनाने में कपड़े की क्वालिटी अच्छी नहीं हो पाती। कई बार इसका बजट बढ़ाने की मांग की गई। लेकिन उसमें बढ़ोत्तरी नहीं हो सकी।
खबर साभार : डेली न्यूज एक्टिविस्ट
सरकारी स्कूलों की यूनिफार्म का रंग बदलने की तैयारी, शासन स्तर पर शुरू हुई कवायद, बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों से राय मांगी गई
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
8:57 AM
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