शिक्षकों की भर्ती ने भरी सरकार की तिजोरी
- 345 करोड़ की भारी भरकम धनराशि प्रदेश सरकार के तिजोरी में पहुंची
- भर्ती में शामिल होने जा रहे बेरोजगार बीएड इस खजाने को दोगुना कर देंगे
- मेरिट के आधार पर भर्ती ना करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार की
इलाहाबाद, आम तौर पर कर्मचारियों की नियुक्ति सरकार के लिए आर्थिक रूप से बोझ का सबब बनती है। शिक्षकों की भर्ती का मामला इससे एकदम अलग है। जनगणना से लेकर आर्थिक सर्वेक्षण तक हर काम में इस्तेमाल होने वाले बहुउद्देश्यीय प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो रही है। वर्तमान में चल रही भर्ती प्रक्रिया में अब तक करीब 345 करोड़ की भारी भरकम धनराशि प्रदेश सरकार के तिजोरी में पहुंच चुकी है। माना यह जा रहा है कि उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद इस भर्ती प्रक्रिया में शामिल होने जा रहे बेरोजगार बीएड कुछ ही दिनों में इस खजाने को दोगुना कर देंगे।
प्रदेश में प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया पिछले पांच वर्षो से अटकी पड़ी है। बसपा सरकार ने वर्ष 2011 में इस भर्ती को व्यापक पैमाने पर कराने की कोशिश की। इसमें हर जिले के लिए प्रत्येक अभ्यर्थी से 500-500 रुपये शुल्क मांगा गया था। बाद में उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया तो सरकार ने एक ही चालान के आधार पर पांच जिलों में आवेदन की छूट दे दी थी। यह भर्ती बाद में कानूनी समस्याओं में फंस गई और अंतत: निरस्त हो गई। इस दौरान अभ्यर्थियों द्वारा जमा पैसे करीब साल भर बाद अब वापस होने जा रहे हैं। 72825 पदों के लिए वर्तमान प्रदेश सरकार ने एक बार फिर विज्ञापन निकाला। इस बार अभ्यर्थियों की संख्या में कई गुना का इजाफा हो गया। प्रदेश सरकार ने इस भर्ती के आर्थिक फायदों का और बेहतर तरीके से दोहन करने के लिए जोरदार व्यवस्था की। एसबीआई के अधिकारियों की माने तो सात जनवरी को आवेदन की अंतिम तिथि समाप्त होने तक करीब 69 लाख चालान जमा हो चुके हैं। इन चालान के माध्यम से 345 करोड़ रुपये राज्य सरकार के खाते में आ चुके थे। सर्वोच्च न्यायालय पहुंची शिक्षक भर्ती की जंग :शिक्षकों की भर्ती का मामला उच्च न्यायालय से होते हुए सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है। धर्मेन्द्र कुमार सिंह व अन्य ने शिक्षकों की भर्ती मेरिट के आधार पर करने के निर्णय को चुनौती दी है। इनके द्वारा दायर जनहित याचिका (डब्ल्यूपीसी-30/2013) को सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है।
(साभार-दैनिक जागरण)
प्रदेश में प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया पिछले पांच वर्षो से अटकी पड़ी है। बसपा सरकार ने वर्ष 2011 में इस भर्ती को व्यापक पैमाने पर कराने की कोशिश की। इसमें हर जिले के लिए प्रत्येक अभ्यर्थी से 500-500 रुपये शुल्क मांगा गया था। बाद में उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया तो सरकार ने एक ही चालान के आधार पर पांच जिलों में आवेदन की छूट दे दी थी। यह भर्ती बाद में कानूनी समस्याओं में फंस गई और अंतत: निरस्त हो गई। इस दौरान अभ्यर्थियों द्वारा जमा पैसे करीब साल भर बाद अब वापस होने जा रहे हैं। 72825 पदों के लिए वर्तमान प्रदेश सरकार ने एक बार फिर विज्ञापन निकाला। इस बार अभ्यर्थियों की संख्या में कई गुना का इजाफा हो गया। प्रदेश सरकार ने इस भर्ती के आर्थिक फायदों का और बेहतर तरीके से दोहन करने के लिए जोरदार व्यवस्था की। एसबीआई के अधिकारियों की माने तो सात जनवरी को आवेदन की अंतिम तिथि समाप्त होने तक करीब 69 लाख चालान जमा हो चुके हैं। इन चालान के माध्यम से 345 करोड़ रुपये राज्य सरकार के खाते में आ चुके थे। सर्वोच्च न्यायालय पहुंची शिक्षक भर्ती की जंग :शिक्षकों की भर्ती का मामला उच्च न्यायालय से होते हुए सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है। धर्मेन्द्र कुमार सिंह व अन्य ने शिक्षकों की भर्ती मेरिट के आधार पर करने के निर्णय को चुनौती दी है। इनके द्वारा दायर जनहित याचिका (डब्ल्यूपीसी-30/2013) को सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है।
(साभार-दैनिक जागरण)
शिक्षकों की भर्ती ने भरी सरकार की तिजोरी
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
8:31 AM
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