विशिष्ट व बीटीसी धारकों के लिए भी टीईटी जरूरी : इलाहाबाद हाईकोर्ट
- उच्च न्यायालय ने खारिज की उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की याचिका
- उर्दू बीटीसी धारकों को भी राहत नहीं,एक लाख से अधिक फंसे
जागरण
संवाददाता, इलाहाबाद : बीटीसी करें या विशिष्ट बीटीसी। शिक्षक पात्रता
परीक्षा उत्तीर्ण किए बिना अब प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक या
प्रशिक्षु अध्यापक पद पर नियुक्ति नहीं हो सकती। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने
प्राथमिक व जूनियर हाईस्कूल के शिक्षकों की भर्ती में शिक्षक पात्रता
परीक्षा की अनिवार्यता पर अपनी मुहर लगा दी है। न्यायालय ने विशिष्ट बीटीसी
व बीटीसी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की याचिका को खारिज कर दिया है। इस निर्देश
ने वर्ष 2004, 2007 व 2008 के विशिष्ट बीटीसी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों, वर्ष
2004 व बाद के बीटीसी उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को तगड़ा झटका दिया है। इस आदेश
के बाद नियुक्ति की राह देख रहे उर्दू बीटीसी अभ्यर्थियों को भी निराशा ही
हाथ लगी है। इन सभी को भी अब टीईटी उत्तीर्ण होने के बाद ही नौकरी मिल
सकेगी। चयन प्रक्रिया व प्रशिक्षण पूरा होने में हुए विलंब का इन सभी को
खामियाजा भुगतना पड़ेगा। इस आदेश का असर एक लाख से अधिक विशिष्ट बीटीसी व
बीटीसी प्रशिक्षित अभ्यर्थियों पर पड़ेगा।
प्रदेश में प्राथमिक शिक्षकों की चयन प्रक्रिया लगातार विवादों में रही है। प्रदेश सरकार ने 1998 में विशिष्ट बीटीसी लांच की थी। 2004 में इस क्रम में 46179 पदों के लिए रिक्तियां निकाली गईं थीं। इसमें से 33 हजार की नियुक्ति की गई थी। शेष को टुकड़े-टुकड़े में प्रशिक्षण दिया जा सका था। इनमें से बहुत की तैनाती आज तक नहीं हो सकी है। इसी वर्ष दो वर्षीय बीटीसी 2004 के लिए भी आवेदन मांगे गए थे। तमाम अड़चनों के चलते जनवरी 2009 में इनकी पहली बैच का चयन हो सका था। जून 2009 में बीटीसी 2004 की दूसरी बैच ने दाखिला लिया था। इन सभी वर्ष 2011 में अपना पाठ्यक्रम पूरा किया। इसी प्रकार वर्ष 2007 के 50 हजार अभ्यर्थियों, वर्ष 2008 के 28385 अभ्यर्थियों, वर्ष 2006 के उर्दू बीटीसी अभ्यर्थियों आदि इन सभी को सितंबर 2011 में प्रमाणपत्र मिल सका था। यह अभ्यर्थी जब तक उत्तीर्ण होते तब तक प्राथमिक शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता व नियुक्ति के प्रावधान बदल गए थे। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत प्राथमिक शिक्षक बनने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता शिक्षा में प्रमाणपत्र या डिप्लोमा पाठ्यक्रम निर्धारित कर दी। साथ ही इसी एक्ट के तहत प्राप्त अधिकारों का इस्तेमाल कर एनसीटीई ने 23 अगस्त 2010 को नोटिफिकेशन जारी कर शिक्षा पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिया।
विशिष्ट बीटीसी, बीटीसी व उर्दू बीटीसी उत्तीर्ण कुछ अभ्यर्थियों को विभिन्न जिलों में नौकरी मिल गई थी जबकि अन्य को नए नियमों का हवाला देते हुए मना कर दिया गया था। इसके खिलाफ दर्जनों याचिकाएं उच्च न्यायालय में दायर की गईं थीं। उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने नवंबर 2011 में इन याचिकाओं को खारिज कर दिया था तथा टीईटी को अनिवार्य घोषित कर दिया था। इसके खिलाफ दर्जनों ने विशेष अपील दायर की थी। इन सभी का कहना था कि उन्हें एनसीटीई के 23 अगस्त 2010 के नोटिफिकेशन के उपबंध (क्लाज) पांच के तहत छूट दी जानी चाहिए। इस क्लाज में कहा गया है कि जिन राज्यों में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो गई हो वहां टीईटी की अनिवार्यता के प्रावधान लागू नहीं होंगे। न्यायमूर्ति अशोक भूषण व न्यायमूर्ति अभिनव उपाध्याय की उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने उनके इस तर्क को खारिज कर दिया। उनका कहना था कि बीटीसी व विशिष्ट बीटीसी में चयन व प्रशिक्षण न्यूनतम योग्यता हासिल करने के लिए है।
(साभार-दैनिक जागरण)
प्रदेश में प्राथमिक शिक्षकों की चयन प्रक्रिया लगातार विवादों में रही है। प्रदेश सरकार ने 1998 में विशिष्ट बीटीसी लांच की थी। 2004 में इस क्रम में 46179 पदों के लिए रिक्तियां निकाली गईं थीं। इसमें से 33 हजार की नियुक्ति की गई थी। शेष को टुकड़े-टुकड़े में प्रशिक्षण दिया जा सका था। इनमें से बहुत की तैनाती आज तक नहीं हो सकी है। इसी वर्ष दो वर्षीय बीटीसी 2004 के लिए भी आवेदन मांगे गए थे। तमाम अड़चनों के चलते जनवरी 2009 में इनकी पहली बैच का चयन हो सका था। जून 2009 में बीटीसी 2004 की दूसरी बैच ने दाखिला लिया था। इन सभी वर्ष 2011 में अपना पाठ्यक्रम पूरा किया। इसी प्रकार वर्ष 2007 के 50 हजार अभ्यर्थियों, वर्ष 2008 के 28385 अभ्यर्थियों, वर्ष 2006 के उर्दू बीटीसी अभ्यर्थियों आदि इन सभी को सितंबर 2011 में प्रमाणपत्र मिल सका था। यह अभ्यर्थी जब तक उत्तीर्ण होते तब तक प्राथमिक शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता व नियुक्ति के प्रावधान बदल गए थे। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत प्राथमिक शिक्षक बनने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता शिक्षा में प्रमाणपत्र या डिप्लोमा पाठ्यक्रम निर्धारित कर दी। साथ ही इसी एक्ट के तहत प्राप्त अधिकारों का इस्तेमाल कर एनसीटीई ने 23 अगस्त 2010 को नोटिफिकेशन जारी कर शिक्षा पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिया।
विशिष्ट बीटीसी, बीटीसी व उर्दू बीटीसी उत्तीर्ण कुछ अभ्यर्थियों को विभिन्न जिलों में नौकरी मिल गई थी जबकि अन्य को नए नियमों का हवाला देते हुए मना कर दिया गया था। इसके खिलाफ दर्जनों याचिकाएं उच्च न्यायालय में दायर की गईं थीं। उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने नवंबर 2011 में इन याचिकाओं को खारिज कर दिया था तथा टीईटी को अनिवार्य घोषित कर दिया था। इसके खिलाफ दर्जनों ने विशेष अपील दायर की थी। इन सभी का कहना था कि उन्हें एनसीटीई के 23 अगस्त 2010 के नोटिफिकेशन के उपबंध (क्लाज) पांच के तहत छूट दी जानी चाहिए। इस क्लाज में कहा गया है कि जिन राज्यों में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो गई हो वहां टीईटी की अनिवार्यता के प्रावधान लागू नहीं होंगे। न्यायमूर्ति अशोक भूषण व न्यायमूर्ति अभिनव उपाध्याय की उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने उनके इस तर्क को खारिज कर दिया। उनका कहना था कि बीटीसी व विशिष्ट बीटीसी में चयन व प्रशिक्षण न्यूनतम योग्यता हासिल करने के लिए है।
(साभार-दैनिक जागरण)
विशिष्ट व बीटीसी धारकों के लिए भी टीईटी जरूरी : इलाहाबाद हाईकोर्ट
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
8:11 AM
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