यदि सिंथेटिक दूध ही यदि मिड डे मील में परोसा जा रहा है तो बेहतर है कि न ही परोसा जाये
मिड डे मील
शासन ने मिड डे मील योजना के तहत प्रत्येक बुधवार को बच्चों को आहार के रूप में दूध देने की व्यवस्था भले अच्छी मंशा से की हो लेकिन इसे अधूरी तैयारी से लागू करने के कारण नई समस्याएं खड़ी हो रही हैं। बच्चों के पोषण में इससे क्या सुधार आया, इसका आंकड़ा तो अभी नहीं निकाला गया है लेकिन हर बुधवार को प्रदेश के किसी न किसी कोने से दूध पीकर बच्चों के बीमार होने की खबरें जरूर आ रही हैं।
इस बुधवार को आगरा के एक प्राइमरी और जूनियर स्कूल में मिड डे मील का दूध पीकर 139 बच्चे बीमार हो गए। दूध पीने के बाद कुछ बच्चों को खून की उल्टियां होने लगीं। शुक्र है कि उन्हें जल्द चिकित्सा मिल गई, जिससे उनकी हालत संभल गई। माना जा रहा है कि आगरा में बच्चों की यह हालत सिंथेटिक दूध परोसे जाने के कारण हुई। सुबह जब दूध आया तो रसोइयों ने उसे गरम कर रख दिया। सुबह करीब 10.30 बजे बच्चों को दूध पिलाया गया। थोड़ी देर बाद ही एक बच्चे को खून की उल्टी होने लगी और एक-एक कर बच्चे बीमार होने लगे। विशेषज्ञ यह लक्षण सिंथेटिक दूध के मान रहे हैं।
आगरा की बाह, खेरागढ़, फतेहाबाद और एत्मादपुर तहसीलों में बड़े पैमाने पर सिंथेटिक दूध बनता है। एफडीए की ओर से साल में लगभग 125 सैंपल भरे जाते हैं, जिनमें से 20 फीसद में सिंथेटिक या पानी की मिलावट पाई जाती है। अब यह दूध यदि मिड डे मील में परोसा जा रहा है तो बेहतर है कि न ही परोसा जाए।
दरअसल, मिड डे मील में प्रति छात्र 200 एमएल दूध के लिए 3.59 रुपये की दर निर्धारित की गई है। इतने कम पैसे में निर्धारित मात्र में शुद्ध दूध उपलब्ध करा पाना चिड़ी का दूध निकालने सरीखा है। नतीजतन आगरा ही नहीं हर जिले में बुधवार को दूध का फरमान जिम्मेदारों के दिमाग का दही करता रहता है। कहीं पानी की मिलावट होती है तो कहीं सिंथेटिक दूध परोसा जा रहा है। आगरा की घटना और भयावह हो सकती थी यदि 19 लीटर सिंथेटिक दूध में 15 लीटर पानी की मिलावट नहीं की गई होती। बच्चों की सेहत का ख्याल रखना सरकार की अच्छी पहल है। बेहतर होगा कि दूध के लिए निर्धारित धनराशि बढ़ाई जाए ताकि बच्चों की सेहत का सही तरीके से ख्याल रखा जा सके।
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