आठवीं तक अनिवार्य रूप से पास करने की नीति को समाप्त करने पर बनी सहमति, परीक्षा पास करने को अनिवार्य करने या न करने का अधिकार राज्यों को, सीबीएसई की 10 वीं की परीक्षा पर मंत्रालय स्तर पर होगा निर्णय
नई दिल्ली : छात्रों को आठवीं तक अनिवार्य रूप से पास करने की नीति को समाप्त करने पर सहमति बन गई है। केंद्र और राज्यों के शिक्षा मंत्रियों की बैठक में तय हुआ है कि अब यह अधिकार राज्यों को दिया जाएगा कि वे पांचवीं और आठवीं में परीक्षा पास करने को अनिवार्य करते हैं या नहीं। जरूरत समझने पर वे अपने यहां इन कक्षाओं के लिए बोर्ड परीक्षा भी आयोजित कर सकेंगे।
केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (केब) की मंगलवार को हुई बैठक में यह तय किया गया कि केंद्र सरकार शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून में संशोधन करेगी। इसमें यह प्रावधान किया जाएगा कि राज्य अपने यहां आठवीं तक फेल नहीं करने के नियम की समीक्षा करने को स्वतंत्र होंगे। यानी जो राज्य चाहेंगे, वे इस नीति को हटा सकते हैं। दो राज्यों को छोड़ कर देश के सभी राज्य इस नीति को बदलने की मांग कर चुके हैं। यानी अब केंद्र सरकार को जल्द ही आरटीई कानून में संशोधन करना होगा और उसके बाद राज्य अपने यहां इस प्रावधान को हटा देंगे। इसके बाद राज्य पांचवीं और आठवीं के लिए राज्य स्तरीय बोर्ड परीक्षा भी आयोजित कर सकेंगे।
दसवीं बोर्ड को फिर से अनिवार्य करने को ले कर हालांकि कोई सहमति नहीं बन सकी। इस बारे में पूछे जाने पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा, ‘राज्य बोर्ड के स्कूलों में तो बोर्ड अनिवार्य है ही। चूंकि यह मसला सिर्फ सीबीएसई स्कूलों का है, इसलिए इस पर मंत्रलय के स्तर पर ही विचार कर फैसला कर लिया जाएगा। यह काम जल्द ही होगा।’ साथ ही बैठक के दौरान यह भी तय किया गया कि पहली क्लास से ही हर क्लास के लिए ‘लक्ष्य’ तय किए जाएं।
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