प्रशिक्षण की कसौटी : बीटीसी कालेजों की ग्रेडिंग के निर्णय पर जागरण संपादकीय
प्रदेश में निजी बीटीसी कालेजों की ग्रेडिंग के निर्णय को देर से ही सही लेकिन सही फैसले के रूप में देखा जा सकता है। प्रशिक्षण की प्रतिस्पर्धा कालेजों में गुणवत्ता बढ़ाएगी, इसमें भी कोई संदेह नहीं है। ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि राज्य में अब तक हुई अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) ने निजी बीटीसी कालेजों की पढ़ाई को सवालिया घेरे में ला दिया है।
बीटीसी करने वाले तभी अध्यापक बन सकते हैं जबकि वह टीईटी उत्तीर्ण करें। इस लिहाज से बीटीसी की गुणवत्ता का पैमाना टीईटी ही है लेकिन इसका रिजल्ट अब तक औसत से भी नीचे रहा है। इस हाल के बावजूद बीटीसी के लिए युवाओं का मोह कम नहीं हुआ। पिछले पांच सालों में ऐसे कालेजों की बाढ़ सी आई है और उनकी संख्या 1425 पहुंच चुकी है। अगले सत्र में 1600 निजी कालेज और बढ़ने जा रहे हैं।
यह अलग बात है कि सरकार ने इनकी गुणवत्ता के मानक नहीं तय किए। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की ओर से कराए गए सर्वे का संज्ञान लें तो निजी बीटीसी कालेजों का हाल चिंताजनक है। इस सर्वे में 28 जिलों को शामिल किया गया था और यह तथ्य उभरकर सामने आया था कि इन कालेजों में 25.4 फीसद छात्र गैरहाजिर रहते हैं। 14 फीसद शिक्षक भी अनुपस्थित पाए गए थे। संसाधनों का आलम यह था कि 58.70 प्रतिशत कालेजों में बायोमीटिक सिस्टम नहीं लगे थे और 60 प्रतिशत शिक्षक बिना क्लास प्लान के पढ़ाने आते हैं। संभवत: इसे देखते हुए ही इन कालेजों की ग्रेडिंग का फैसला किया गया है।
हालांकि सरकार को कई और बातों पर भी ध्यान देना होगा। निजी कालेजों और डायट में सामंजस्य का अभाव रहा है। जिलों के स्तर पर प्रशिक्षण से जुड़े रिसोर्स सेंटर नहीं विकसित हैं। डायट को निजी कालेजों के शिक्षकों को प्रशिक्षित करने की व्यवस्था भी करनी होगी। चूंकि अगले सत्र तक राज्य में निजी बीटीसी कालेजों की संख्या तीन हजार तक पहुंचने जा रही है इसलिए उनकी पढ़ाई पर ध्यान देना एक बड़ी चुनौती होगी।
जहां तक ग्रेडिंग से लाभ का सवाल है तो उच्च शिक्षा में इसके सार्थक प्रभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिले हैं। यदि सरकार ग्रेडिंग के आधार पर संसाधनों का भी लाभ देने पर विचार करे तो निश्चित तौर पर निजी बीटीसी कालेजों में अव्वल रहने की होड़ होगी और टीईटी में सफलता का प्रतिशत भी बढ़ सकता है।
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