भाषा शिक्षक के लिए टीईटी की जरूरत नहीं : समिति का शासन को प्रस्ताव
लखनऊ : उप्र शिक्षक पात्रता परीक्षा (यूपीटीईटी) में भाषा शिक्षक
के लिए अलग से पात्रता परीक्षा कराये जाने की जरूरत नहीं है। परिषदीय
स्कूलों में शिक्षकों के चयन की योग्यता का निर्धारण करने के लिए गठित
समिति ने शासन को इस आशय का प्रस्ताव भेजा है।
समिति ने कहा है कि चूंकि एनसीटीई के दिशा निर्देशों में भाषा शिक्षक के लिए अलग से पात्रता परीक्षा आयोजित कराने का प्रावधान नहीं है, लिहाजा यूपीटीईटी में भी ऐसा ही होना चाहिए। शासन ने प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापकों के चयन के बारे में शैक्षिक योग्यता का निर्धारण करने के लिए राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के निदेशक सर्वेद्र विक्रम बहादुर सिंह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की थी। समिति ने शासन को अपना प्रस्ताव भेज दिया है। समिति ने शासन से यह भी सिफारिश की है कि स्नातक उपाधि के तहत बीटेक, बीसीए, बीएससी (गृह विज्ञान), बीएससी (कृषि), बीएससी (फॉरेस्ट्री) को उच्च प्राथमिक विद्यालयों में विज्ञान व गणित विषय के शिक्षकों की नियुक्ति के लिए मान्य किया जाना चाहिए। बीटीसी प्रशिक्षण के लिए ऐसे अभ्यर्थियों का चयन विज्ञान वर्ग के अंतर्गत किये जाने के बाद उन्हें विज्ञान शिक्षक के रूप में सीधी भर्ती की मान्यता नहीं देना न्यायसंगत नहीं होगा। समिति ने कहा है कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) से दूरस्थ शिक्षा के जरिये दो वर्षीय बीएड पाठ्यक्रम को एनसीटीई ने 28 मई 1999 को सत्र 1999-2000 से मान्यता दे दी है।
यूपीटीईटी में उच्च प्राथमिक स्तर के लिए एनसीटीई, यूजीसी से मान्यताप्राप्त संस्था से शिक्षा में स्नातक (बीए) उत्तीर्ण अभ्यर्थी को अर्ह माना गया है। लिहाजा इग्नू से दूरस्थ शिक्षा के जरिये दो वर्षीय बीएड पाठ्यक्रम को भी शिक्षक भर्ती के लिए अध्यापक सेवा नियमावली और यूपीटीईटी में शामिल करना उचित होगा। शिक्षक भर्ती के लिए संस्कृत की पारंपरिक उपाधियों जैसे शास्त्री (स्नातक), आचार्य (परास्नातक) और शिक्षा शास्त्री (बीएड) को भी मान्य करने की सिफारिश की गई है।
समिति की दलील है कि यूपीटीईटी में यूजीसी से मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालय, महाविद्यालय से स्नातक परीक्षा की डिग्री को मान्य किया गया है। इसी प्रकार यदि एनसीटीई से शिक्षा शास्त्री (बीएड) की मान्यता है तो उसे भी मान्य किये जाने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए।
समिति ने कहा है कि चूंकि एनसीटीई के दिशा निर्देशों में भाषा शिक्षक के लिए अलग से पात्रता परीक्षा आयोजित कराने का प्रावधान नहीं है, लिहाजा यूपीटीईटी में भी ऐसा ही होना चाहिए। शासन ने प्राथमिक व उच्च प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापकों के चयन के बारे में शैक्षिक योग्यता का निर्धारण करने के लिए राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के निदेशक सर्वेद्र विक्रम बहादुर सिंह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की थी। समिति ने शासन को अपना प्रस्ताव भेज दिया है। समिति ने शासन से यह भी सिफारिश की है कि स्नातक उपाधि के तहत बीटेक, बीसीए, बीएससी (गृह विज्ञान), बीएससी (कृषि), बीएससी (फॉरेस्ट्री) को उच्च प्राथमिक विद्यालयों में विज्ञान व गणित विषय के शिक्षकों की नियुक्ति के लिए मान्य किया जाना चाहिए। बीटीसी प्रशिक्षण के लिए ऐसे अभ्यर्थियों का चयन विज्ञान वर्ग के अंतर्गत किये जाने के बाद उन्हें विज्ञान शिक्षक के रूप में सीधी भर्ती की मान्यता नहीं देना न्यायसंगत नहीं होगा। समिति ने कहा है कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) से दूरस्थ शिक्षा के जरिये दो वर्षीय बीएड पाठ्यक्रम को एनसीटीई ने 28 मई 1999 को सत्र 1999-2000 से मान्यता दे दी है।
यूपीटीईटी में उच्च प्राथमिक स्तर के लिए एनसीटीई, यूजीसी से मान्यताप्राप्त संस्था से शिक्षा में स्नातक (बीए) उत्तीर्ण अभ्यर्थी को अर्ह माना गया है। लिहाजा इग्नू से दूरस्थ शिक्षा के जरिये दो वर्षीय बीएड पाठ्यक्रम को भी शिक्षक भर्ती के लिए अध्यापक सेवा नियमावली और यूपीटीईटी में शामिल करना उचित होगा। शिक्षक भर्ती के लिए संस्कृत की पारंपरिक उपाधियों जैसे शास्त्री (स्नातक), आचार्य (परास्नातक) और शिक्षा शास्त्री (बीएड) को भी मान्य करने की सिफारिश की गई है।
समिति की दलील है कि यूपीटीईटी में यूजीसी से मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालय, महाविद्यालय से स्नातक परीक्षा की डिग्री को मान्य किया गया है। इसी प्रकार यदि एनसीटीई से शिक्षा शास्त्री (बीएड) की मान्यता है तो उसे भी मान्य किये जाने में कठिनाई नहीं होनी चाहिए।
भाषा शिक्षक के लिए टीईटी की जरूरत नहीं : समिति का शासन को प्रस्ताव
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
7:45 AM
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