ठीक से लागू नहीं हो रहा है आरटीई, एनजीओ चलाएंगे अभियान : केंद्र और राज्य सरकारें शिक्षा के निजीकरण में जुटीं
लखनऊ (एसएनबी)। केंद्र और राज्य सरकारें शिक्षा का निजीकरण करने में जुटी हैं। देश भर के बच्चों के लिए वर्ष 2009 में शिक्षा अधिकार कानून (आरटीई) को लागू किया गया था, लेकिन ठीक से लागू नहीं हुआ है। प्राथमिक शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है। केंद्र सरकार ने इस वर्ष शिक्षा के बजट में बड़ी कटौती की है। केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति तैयार कर रही है, लेकिन इसमें पहले की गलतियों को सुधारा नहीं जा रहा है। इसके खिलाफ आरटीई फोरम और अन्य गैर सरकारी संगठन जुलाई माह में अभियान चलाएंगे। केंद्र और राज्य सरकारों के खिलाफ आंदोलन होंगे।
यह बात आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अंबरीश राय ने बुधवार को कही। राय ने बताया कि आईटीई फोरम और यूपी की स्कोर संस्था के सहयोग से आईटीई पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया था। इसमें 19 प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि देश भर के दस फीसदी स्कूलों में ठीक से आरटीई लागू नहीं हो पाया है। यूपी में तो यह आंकड़ा मात्र 6.4 फीसदी और उड़ीसा में तीन फीसदी है। श्री राय ने बताया कि बैठक में आईटीई को ठीक से लागू कराने, शिक्षा के बजट को बढ़ाने, विश्व के अन्य देशों की तरह 2030 तक उच्चतर माध्यमिक शिक्षा को अनिवार्य करने, शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकारों से 20 फीसदी की हिस्सेदारी, प्राइवेट टीचर ट्रेनिंग संस्थानों को बंद करने आदि पर फैसला लिया गया है। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने आरटीई के मद से पांच हजार करोड़, आईसीडीएस से 11 हजार करोड़ और मिड डे मील के मद से पांच हजार करोड़ रुपये की कटौती की है जबकि बीजेपी ने चुनावी घोषणा पत्र में कहा था कि वह छह फीसदी धनराशि शिक्षा पर खर्च करेगी। वर्तमान में चार फीसदी भी खर्च नहीं होता है। राष्ट्रीय विधि विविद्यालय बेंगलूर के डा. निरंजन ने कहा कि सरकार ठोस आधार के अभाव में नई शिक्षा नीति तैयार कर रही है। अंतिम बार वर्ष 1992 में शिक्षा नीति में बदलाव किया गया था, लेकिन उनकी कमियों को नजर अंदाज करते हुए नई पॉलिसी तैयार की जा रही है। दिलचस्प बात यह है कि नई नीति को आनन-फानन में तैयार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकारों के पास ड्रॉप आउट छात्रों का डाटा तक नहीं है। ऐसे में नई नीति कैसे तैयार हो पाएगी। उन्होेंने बताया कि केवल यूपी में ही 17 लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं जबकि राज्य सरकार मात्र 40 हजार का डाटा दे रही है। इस अवसर पर उड़ीसा से अनिल प्रधान, तेलंगाना के मुरली मोहन, आरटीई की सीमा राजपूत और स्कोर संस्था के विनोद सिन्हा मौजूद थे।
यह बात आरटीई फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अंबरीश राय ने बुधवार को कही। राय ने बताया कि आईटीई फोरम और यूपी की स्कोर संस्था के सहयोग से आईटीई पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया था। इसमें 19 प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि देश भर के दस फीसदी स्कूलों में ठीक से आरटीई लागू नहीं हो पाया है। यूपी में तो यह आंकड़ा मात्र 6.4 फीसदी और उड़ीसा में तीन फीसदी है। श्री राय ने बताया कि बैठक में आईटीई को ठीक से लागू कराने, शिक्षा के बजट को बढ़ाने, विश्व के अन्य देशों की तरह 2030 तक उच्चतर माध्यमिक शिक्षा को अनिवार्य करने, शिक्षा के क्षेत्र में राज्य सरकारों से 20 फीसदी की हिस्सेदारी, प्राइवेट टीचर ट्रेनिंग संस्थानों को बंद करने आदि पर फैसला लिया गया है। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने आरटीई के मद से पांच हजार करोड़, आईसीडीएस से 11 हजार करोड़ और मिड डे मील के मद से पांच हजार करोड़ रुपये की कटौती की है जबकि बीजेपी ने चुनावी घोषणा पत्र में कहा था कि वह छह फीसदी धनराशि शिक्षा पर खर्च करेगी। वर्तमान में चार फीसदी भी खर्च नहीं होता है। राष्ट्रीय विधि विविद्यालय बेंगलूर के डा. निरंजन ने कहा कि सरकार ठोस आधार के अभाव में नई शिक्षा नीति तैयार कर रही है। अंतिम बार वर्ष 1992 में शिक्षा नीति में बदलाव किया गया था, लेकिन उनकी कमियों को नजर अंदाज करते हुए नई पॉलिसी तैयार की जा रही है। दिलचस्प बात यह है कि नई नीति को आनन-फानन में तैयार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकारों के पास ड्रॉप आउट छात्रों का डाटा तक नहीं है। ऐसे में नई नीति कैसे तैयार हो पाएगी। उन्होेंने बताया कि केवल यूपी में ही 17 लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं जबकि राज्य सरकार मात्र 40 हजार का डाटा दे रही है। इस अवसर पर उड़ीसा से अनिल प्रधान, तेलंगाना के मुरली मोहन, आरटीई की सीमा राजपूत और स्कोर संस्था के विनोद सिन्हा मौजूद थे।
ठीक से लागू नहीं हो रहा है आरटीई, एनजीओ चलाएंगे अभियान : केंद्र और राज्य सरकारें शिक्षा के निजीकरण में जुटीं
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
8:34 AM
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