किताबों की छपाई को लेकर बेसिक शिक्षा विभाग बैकफुट पर, मुख्यमंत्री के दखल के बाद अब इसके नियमों में बदलाव की तैयारी
- किताबों की छपाई को लेकर बेसिक शिक्षा विभाग बैकफुट पर
- मुख्यमंत्री के दखल के बाद अब इसके नियमों में बदलाव की तैयारी
- किताब छापने के लिए 28 फरवरी को टेण्डर खोला जाना था
- सरकार के दखल के बाद टेंडर हुआ स्थगित
प्राइमरी व जूनियर स्कूलों में मुफ्त बंटने वाली किताबों की छपाई को लेकर बेसिक शिक्षा विभाग बैकफुट पर आ गया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस मामले में दखल देने के बाद अब इसके नियमों में बदलाव किया जा सकता है। मुख्यमंत्री ने सोमवार को बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों को तलब किया था।
किताब छापने के लिए 28 फरवरी को टेण्डर खोला जाना था लेकिन सरकार के दखल के बाद इसे स्थगित कर दिया गया था। इस वर्ष सरकार ने इको फ्रेंडली कागजों के साथ रीसाइकिल पेपर की शर्त डाल दी थी जबकि पिछले कई वर्षों से केवल इको फेंड्रली कागज पर ही किताबें छापी जाती रही हैं। किताबों के लिए पिछले कई वर्षो से इसके लिए कागज सप्लाई करने वाली कम्पनी हिन्दुस्तान पेपर कॉरपोरेशन लिमिटेड ने आपत्ति जताई थी। इस मानक पर कम्पनी टेण्डर से बाहर हो रही थी।
दूसरी तरफ, सामाजिक कार्यकर्ता राजनाथ शर्मा ने भी इस मामले में कई पत्र मुख्यमंत्री को लिखे कि रीसाइकिल पेपर की शर्त के कारण कागजों की गुणवत्ता खराब हो जाएगी जबकि सरकार इस बार अच्छी गुणवत्ता वाली किताबें देने का वादा कर रही थी।
खबर साभार : हिन्दुस्तान
- किताब छपाई में देरी पर अफसर तलब
- मुख्यमंत्री ने बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों से पूछा कारण
- एक महीने में कैसे छपेंगी दस करोड़ किताबें
सरकारी स्कूलों में बच्चों को दी जाने वाली निशुल्क पाठ्य पुस्तकों की छपाई में होने वाली लेटलतीफी पर सोमवार को मुख्यमंत्री ने बेसिक शिक्षा विभाग के अफसरों को तलब कर लिया। उन्होंने इस देरी का कारण भी पूछा है। उधर, किताबों की छपाई का टेंडर ऐन वक्त पर स्थगित किए जाने के मामले में अफसर भी बोलने को तैयार नहीं है। ऐसे में एक अप्रैल से शुरू होने वाले नए शैक्षिक सत्र में बच्चों को इस बार किताबों के लिए इंतजार करना होगा। सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत परिषदीय विद्यालयों, राजकीय, अशासकीय सहायता प्राप्त एवं माध्यमिक विद्यालयों, समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित राजकीय व एडेड स्कूल तथा मदरसों में कक्षा 1 से 8 तक के सभी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के बालकों तथा सभी वर्ग की बालिकाओं को निशुल्क किताबें दिए जाने की व्यवस्था है।
इस बार शैक्षिक सत्र एक अप्रैल से शुरू होना है, इसके लिए बीते 27 जनवरी को पाठ्य पुस्तकों के मुद्रण प्रकाशन के लिए नीति जारी कर निविदा आमंत्रित की गई। आवेदन करने की अंतिम तिथि 28 फरवरी रखी गई थी। उसी दिन सुबह 11.30 बजे तकनीकी बिड खोली जानी थी। लेकिन एक दिन पहले ही निविदा स्थगित करने का आदेश जारी कर दिया गया। विभागीय जानकारों की मानें तो इस बार किताबों की जो नीति जारी हुई है उसमें कहा गया है कि किताबें फ्रैंडली रिसायकिल पेपर पर छापी जाएं। जबकि बीते वर्षों में ऐसा नहीं था। चूंकि इस नए नियम की वजह से एक फर्म निविदा में शामिल नहीं हो पा रही थी। इसलिए अब चर्चा है कि इसके लिए नीति में संशोधन किया जा सकता है। जिससे फर्म को इसमें शामिल किया जा सके। हालांकि अधिकारिक तौर पर इस पर विभाग का कोई भी अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है।
इस बार शैक्षिक सत्र एक अप्रैल से शुरू होना है, इसके लिए बीते 27 जनवरी को पाठ्य पुस्तकों के मुद्रण प्रकाशन के लिए नीति जारी कर निविदा आमंत्रित की गई। आवेदन करने की अंतिम तिथि 28 फरवरी रखी गई थी। उसी दिन सुबह 11.30 बजे तकनीकी बिड खोली जानी थी। लेकिन एक दिन पहले ही निविदा स्थगित करने का आदेश जारी कर दिया गया। विभागीय जानकारों की मानें तो इस बार किताबों की जो नीति जारी हुई है उसमें कहा गया है कि किताबें फ्रैंडली रिसायकिल पेपर पर छापी जाएं। जबकि बीते वर्षों में ऐसा नहीं था। चूंकि इस नए नियम की वजह से एक फर्म निविदा में शामिल नहीं हो पा रही थी। इसलिए अब चर्चा है कि इसके लिए नीति में संशोधन किया जा सकता है। जिससे फर्म को इसमें शामिल किया जा सके। हालांकि अधिकारिक तौर पर इस पर विभाग का कोई भी अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है।
पाठ्य पुस्तकों की छपाई के संबंध में शासन के निर्देश पर निविदा स्थगित की गई है। आगे शासन जो निर्णय लेगा, उस पर कार्रवाई की जाएगी।
~ डीबी शर्मा, बेसिक शिक्षा निदेशक
28 फरवरी को सुबह 11.30 बजे तकनीकी बिड खोली जानी थी। लेकिन स्थगित करने का आदेश आया और हमने निविदा स्थगित कर दी। कारण क्या है, मुझे नहीं पता। आगे की कार्रवाई कब शुरू होगी, इस पर कुछ कहना जल्द बाजी होगी।
~ पवन कुमार सचान पाठ्य पुस्तक अधिकारी उप्र
इस बार पाठ्य पुस्तकों के मुद्रण प्रकशन को लेकर प्रक्रिया शुरू से ही लेटलतीफी का शिकार रही। अक्टूबर 2014 में किताबें छपवाने के संबंध में नीति जारी करने का प्रस्ताव शासन को भेजने के बाद भी कई महीने मामला लटका रहा। उसके बाद 27 जनवरी को शासन ने इसकी नीति जारी की। 28 फरवरी निविदा आमंत्रित कर आवेदन मांगे गए। लेकिन ऐन वक्त पर अपरिहार्य कारणों को हवाला देकर निविदा ही स्थगित कर दी गई। अब नए शैक्षिक सत्र शुरू होने में एक महीने से भी कम समय बचा है। ऐसे में एक करोड़ 85 लाख बच्चों के लिए करीब 10 करोड़ किताबें कैसे छापी जाएंगी।
किताबों की छपाई को लेकर बेसिक शिक्षा विभाग बैकफुट पर, मुख्यमंत्री के दखल के बाद अब इसके नियमों में बदलाव की तैयारी
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
7:07 AM
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