प्राइवेट स्कूलों को ग्रांट देने की नीति संशोधित करे सरकार : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा - ये स्कूल भी कर रहे सरकार का ही काम
कोर्ट ने कहा :-
- बच्चों को अनिवार्य शिक्षा राज्य का दायित्व
- प्राइवेट कॉलेज कर रहे सरकार का ही काम
- अनिवार्य शिक्षा कानून के तहत बने राज्य की नीति
- संसाधनों के अभाव में नहीं मिल पा रहे हैं योग्य शिक्षक
इलाहाबाद : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा है कि
राज्य सरकार की शिक्षा नीति में बदलाव की जरूरत है। छह से 14 वर्ष तक के
बच्चों को नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा देने का दायित्व राज्य सरकार का है।
प्राइवेट शिक्षण संस्थान बच्चों को शिक्षा देकर राज्य सरकार का ही काम कर
रहे हैं।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड तथा न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल की खंडपीठ ने परिपूर्णानन्द त्रिपाठी व अन्य सहायक अध्यापकों की विशेष अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। है कि समाज के कमजोर तबके के बच्चे ग्रामीण व अर्धशहरी क्षेत्रों में प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। शिक्षा प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा दी जानी चाहिए किंतु संसाधनों के अभाव में योग्य शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं। प्राइवेट कॉलेजों के शिक्षकों का हाल भी दयनीय है। ऐसी स्थिति में प्राइवेट स्कूलों के छात्र अच्छी शिक्षा नहीं पा रहे हैं। कोर्ट ने आदेश दिया है कि अनिवार्य शिक्षा कानून-2009 आने के बाद राज्य सरकार की 1989 की शिक्षा नीति में बदलाव किया जाए।
ताकि बच्चों को शिक्षा प्रदान करने वाले प्राइवेट कॉलेजों के प्राइमरी सेक्शन को वित्तीय सहायता दी जा सके। कोर्ट ने किसान आदर्श इंटर कॉलेज ठाकुर नगर, गोरखपुर के प्राइमरी सेक्शन को वित्तीय सहायता देने से इंकार करने के राज्य सरकार के 10 जनवरी 2002 के आदेश तथा याचिका खारिज करने के एकलपीठ के आदेश को रद कर दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार को नए कानून एवं न्यायिक निर्णयों के आलोक में नई शिक्षा नीति पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा है कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह बच्चों को नि:शुल्क, अनिवार्य व गुणकारी शिक्षा प्रदान करे।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड तथा न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल की खंडपीठ ने परिपूर्णानन्द त्रिपाठी व अन्य सहायक अध्यापकों की विशेष अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। है कि समाज के कमजोर तबके के बच्चे ग्रामीण व अर्धशहरी क्षेत्रों में प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। शिक्षा प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा दी जानी चाहिए किंतु संसाधनों के अभाव में योग्य शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं। प्राइवेट कॉलेजों के शिक्षकों का हाल भी दयनीय है। ऐसी स्थिति में प्राइवेट स्कूलों के छात्र अच्छी शिक्षा नहीं पा रहे हैं। कोर्ट ने आदेश दिया है कि अनिवार्य शिक्षा कानून-2009 आने के बाद राज्य सरकार की 1989 की शिक्षा नीति में बदलाव किया जाए।
ताकि बच्चों को शिक्षा प्रदान करने वाले प्राइवेट कॉलेजों के प्राइमरी सेक्शन को वित्तीय सहायता दी जा सके। कोर्ट ने किसान आदर्श इंटर कॉलेज ठाकुर नगर, गोरखपुर के प्राइमरी सेक्शन को वित्तीय सहायता देने से इंकार करने के राज्य सरकार के 10 जनवरी 2002 के आदेश तथा याचिका खारिज करने के एकलपीठ के आदेश को रद कर दिया। कोर्ट ने राज्य सरकार को नए कानून एवं न्यायिक निर्णयों के आलोक में नई शिक्षा नीति पर पुनर्विचार करने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा है कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह बच्चों को नि:शुल्क, अनिवार्य व गुणकारी शिक्षा प्रदान करे।
खबर साभार : दैनिक जागरण
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि छह से 14 वर्ष की आयु तक के
बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी
है। प्राइवेट स्कूल बच्चों को शिक्षा देकर सरकार का ही काम कर रहे हैं
इसलिए सरकार का दायित्व बनता है कि छोटे बच्चों को शिक्षित करने वाले
प्राइवेट स्कूलों को आर्थिक सहायता और आवश्यक संसाधन मुहैया कराए।यह आदेश
मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. डीवाई चंद्रचूड एवं न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल ने
परिपूर्णानंद त्रिपाठी व अन्य सहायक अध्यापक की विशेष अपील पर दिया है।
खंडपीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि राज्य सरकार अपनी 1989 की शिक्षा
नीति में बदलाव लाए।
खबर साभार : हिंदुस्तान |
- प्राइवेट स्कूल कर रहे सरकार का काम
इलाहाबाद
(ब्यूरो)। हाईकोर्ट ने कहा है कि छह से 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को
निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराना सरकार की बाध्यता है। इसलिए
शिक्षा का अधिकार कानून के मद्देनजर प्राइवेट स्कूलों को ग्रांट देने की
नीति में संशोधन किया जाए। उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में प्राइवेट
स्कूल हैं जो बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। ऐसे विद्यालय एक प्रकार से
सरकार का ही काम कर रहे हैं।
गोरखपुर के
किसान आदर्श इंटर कालेज के शिक्षक परिपूर्णानंद शुक्ला और अन्य की विशेष
अपील पर सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश डा. डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति
पीकेएस बघेल की खंडपीठ ने कहा कि समाज के कमजोर तबके से आने वाले बच्चे इन
स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करते हैं। वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं होने के
कारण विद्यालय अच्छे शिक्षकों की सेवाएं नहीं ले पाते। बच्चों को योग्य और
प्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा पढ़ाया जाना चाहिए। खंडपीठ ने शिक्षा का अर्थ
स्पष्ट करते हुए कहा कि शिक्षा का तात्पर्य मात्र अक्षर ज्ञान नहीं है,
शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे बच्चे की बुद्धि का विकास हो वह एक अच्छा
नागरिक बनकर राष्ट्र निर्माण के काम आ सकें।
आदर्श
विद्यालय के प्राइमरी सेक्शन को 1973 में इंटर कालेज के साथ संचालित करने
की अनुमति दी गई। मगर राज्य सरकार ने प्राइमरी सेक्शन को सरकारी ग्रांट
देने से मना कर क्योंकि वह 1989 की शिक्षा नीति के तहत कुछ शर्तें पूरी
नहीं करता था। शिक्षकों का कहना था कि पिछले 15 वर्षों से पढ़ा रहे हैं।
ग्रांट स्वीकृति नहीं होने के कारण उनको वेतन नहीं मिल रहा है। एकल पीठ ने
याचिका खारिज कर दी थी। कोर्ट ने एकलपीठ के आदेश को रद करते हुए प्रदेश
सरकार को नए कानून के तहत ग्रांट देने पर विचार करने के लिए कहा है।
खबर साभार : सहारा |
प्राइवेट स्कूलों को ग्रांट देने की नीति संशोधित करे सरकार : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा - ये स्कूल भी कर रहे सरकार का ही काम
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
7:11 AM
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