मास्साब! क्या अपनी जेब से ही खिलाए कोफ्ते और पिलाएँ दूध? स्कूल के किचन के अर्थशास्त्र से समझी जा सकती है शिक्षकों की दुश्वारियां
- मिड-डे मील : स्कूल के किचन का अर्थशास्त्र
कोफ्ता-चावल खिलाइए। बच्चों को दूध भी पिलाइए। प्रति बच्चा 3.59 रुपए में। सरकारी फरमान के मुताबिक यह मिड-डे-मील बुधवार को स्कूलों में बंट भी गया। ‘हिन्दुस्तान’ ने जोड़ा तो कोफ्ता और दूध का खर्च 12.25 रुपए प्रति बच्च आया। फिर तो 3.59 रुपए में इतना इंतजाम कर देने वाले शिक्षकों को अर्थशस्त्र का नोबल पुरस्कार ही दे देना चाहिए।
कोफ्ता-चावल और दूध वितरण की व्यवस्था जानने को हिन्दुस्तान ने एक स्कूल की पूरी खरीदारी का हिसाब रखा। लौकी, मसाला, नमक, लकड़ी से हरी मिर्च और दूध तक के दाम जोड़े। उसमें यह तस्वीर उभरी। जाहिर है कि बच्चों की संख्या में हेराफेरी हुई या फिर सामग्री की गुणवत्ता से खिलवाड़।
ऐसा नहीं हुआ तो शिक्षकों ने अपनी जेब से इंतजाम किया होगा। मिड-डे-मील पकाने के लिए प्रति छात्र 3.59 रुपए और जूनियर हाईस्कूल में 5.38 रुपए कन्वजर्न कास्ट के रूप में मिलते हैं। इतने रुपए में शिक्षकों ने न सिर्फ कोफ्ता-चावल बनवाया बल्कि प्रति छात्र 200 मिलीलीटर दूध भी बांटा। ‘हिन्दुस्तान’ की स्कूल किचन की पड़ताल में साफ हो गया कि मिड-डे-मील का अर्थशास्त्र गजब का है।
अफसरों के खौफ से टीचर खामोश : स्कूलों के शिक्षक कार्रवाई के डर से चुप हैं। जिस स्कूल के किचन का अर्थशास्त्र समझने की कोशिश की गई वहां की प्रधानाध्यापिका ने पूरा हिसाब बताया पर स्कूल या खुद का नाम नहीं छापने का पुरजोर अनुरोध किया।टीचर भी करते हैं हेरफेर : दबाव में टीचर अपनी जेब से पैसा खर्च कर मिड-डे-मील बंटवा रहे हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो खर्च पूरा करने के लिए हेरफेर से नहीं चूकते। बच्चों की संख्या बढ़ाकर खर्च पूरा करते हैं।
इलाहाबाद। एक प्राथमिक विद्यालय में बुधवार को 176 बच्चों के लिए कोफ्ता-चावल बनाया गया। प्रति छात्र 200 मिली दूध बांटा गया। 3.59 रुपए प्रति छात्र के हिसाब से 176 बच्चों के लिए कन्वजर्न कास्ट 631.84 रुपए मिला। चावल कोटेदार से मिला। कोफ्ता-चावल और दूध के इंतजाम का अर्थशास्त्र ऐसा रहा। ईंधन के लिए लकड़ी: 105 रुपए (12 किलो लकड़ी लगी। ट्राली भाड़ा समेत 875 रुपए क्विंटल के हिसाब से लड़की पर 105 रुपए खर्च आया।
- प्याज एक किलो: 30 रुपए
- बेसन तीन किलो: 240 रुपए (80 रुपए प्रति किलो)
- पांच लौकी: 100 रुपए (20 रुपए प्रति लौकी)
- दो लीटर सरसों तेल: 196 रुपए (98 रुपए प्रति लीटर)
- मसाला 100 ग्राम: 44 रुपए
- हल्दी 100 ग्राम: 18 रुपए
- नमक: 5 रुपए
- हरी मिर्च100 ग्राम: 10 रुपए
- कोफ्ता चावल बनवाने पर आया कुल खर्च: 748 रुपए
- 35 लीटर 200 मिली दूध: 1408 रुपए (40 रुपए प्रति लीटर 176 बच्चों को 200-200 मिली दूध)
- कोफ्ता-चावल बनवाने व दूध बांटने में कुल खर्च: 2156 रु.कन्वजर्न कास्ट के रूप में मिला: 631.84
- शिक्षक की जेब पर पड़ा बोझ: 1524.16 रुपए
वर्तमान में मिल रहे कन्वजर्न कास्ट से ही दूध बांटने की व्यवस्था पूरी तरह से अव्यावहारिक है। दूध पिलाना अच्छी बात है लेकिन उसके लिए अलग से बजट की व्यवस्था की जाए। साथ में पर्याप्त मात्र में दूध उपलब्ध हो, इसकी व्यवस्था भी सरकार करे। हमने अलग से बजट एलॉट करने के लिए सरकार को पत्र लिखा है। ~ देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, जिलाध्यक्ष प्राथमिक शिक्षक संघ
मास्साब! क्या अपनी जेब से ही खिलाए कोफ्ते और पिलाएँ दूध? स्कूल के किचन के अर्थशास्त्र से समझी जा सकती है शिक्षकों की दुश्वारियां
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
7:58 AM
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