सेहत की फिक्र पर बटुआ ढीला करने से सरकार का परहेज, कम दाम में स्कूली बच्चों को दूध मुहैया कराने की योजना सूबे में हिचकोले खा रही
- सेहत की फिक्र पर बटुआ ढीला करने से परहेज
- स्कूली बच्चों को दूध वितरण बना मुसीबत
- कम दाम में दूध मुहैया कराने में दिक्कतें
सरकार के फरमान पर शुरू की गई स्कूली बच्चों को दूध मुहैया
कराने की योजना सूबे में हिचकोले खा रही है। बड़ी संख्या में स्कूलों में
नौनिहालों के लिए दूध का इंतजाम करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। बच्चों की
सेहत की फिक्रमंद सरकार ने योजना तो शुरू कर दी लेकिन इसके लिए अपने बटुआ
ढीला करना उसे गवारा न हुआ।
योजना को अमली जामा पहनाने के लिए मिड-डे मील के कन्वर्जन कॉस्ट में ही कतर ब्योंत की गई। मध्याह्न् भोजन प्राधिकरण का आकलन है कि बच्चों को दूध मुहैया कराने के लिए प्राथमिक कक्षा के प्रति बच्चे के लिए मिलने वाले कन्वर्जन कॉस्ट में बचत के जरिये हर हफ्ते 4.5 रुपये और उच्च प्राथमिक कक्षा के स्तर पर 6.5 रुपये का इंतजाम किया गया है। हर बच्चे को 200 मिलीलीटर दूध मुहैया कराना है। प्राथमिक कक्षा के हर बच्चे के लिए 4.5 रुपये प्रति बच्चा की दर से दूध तब मिलेगा जब उसकी कीमत 22.5 रुपये प्रति लीटर हो। इसी तरह उच्च प्राथमिक कक्षा के प्रत्येक बच्चे के लिए 6.5 रुपये प्रति लीटर की दर से दूध तब सुलभ होगा जब उसका मूल्य 32.5 रुपये प्रति लीटर हो। गांव में 32.5 रुपये प्रति लीटर में तो दूध मिल भी जाए लेकिन शहर में तो इस कीमत पर मिलना नामुमकिन है। वहीं 22.5 रुपये प्रति लीटर की दर से दूध मिल पाना न तो गांवों में संभव है और न ही शहरी इलाके में।
योजना को अमली जामा पहनाने के लिए मिड-डे मील के कन्वर्जन कॉस्ट में ही कतर ब्योंत की गई। मध्याह्न् भोजन प्राधिकरण का आकलन है कि बच्चों को दूध मुहैया कराने के लिए प्राथमिक कक्षा के प्रति बच्चे के लिए मिलने वाले कन्वर्जन कॉस्ट में बचत के जरिये हर हफ्ते 4.5 रुपये और उच्च प्राथमिक कक्षा के स्तर पर 6.5 रुपये का इंतजाम किया गया है। हर बच्चे को 200 मिलीलीटर दूध मुहैया कराना है। प्राथमिक कक्षा के हर बच्चे के लिए 4.5 रुपये प्रति बच्चा की दर से दूध तब मिलेगा जब उसकी कीमत 22.5 रुपये प्रति लीटर हो। इसी तरह उच्च प्राथमिक कक्षा के प्रत्येक बच्चे के लिए 6.5 रुपये प्रति लीटर की दर से दूध तब सुलभ होगा जब उसका मूल्य 32.5 रुपये प्रति लीटर हो। गांव में 32.5 रुपये प्रति लीटर में तो दूध मिल भी जाए लेकिन शहर में तो इस कीमत पर मिलना नामुमकिन है। वहीं 22.5 रुपये प्रति लीटर की दर से दूध मिल पाना न तो गांवों में संभव है और न ही शहरी इलाके में।
मध्याह्न् भोजन प्राधिकरण की निदेशक श्रद्धा मिश्र का कहना है कि
बच्चों को दूध बांटने का यह दूसरा हफ्ता था। किसी भी योजना में शुरुआती
दिक्कतें आती हैं और यह योजना कोई अपवाद नहीं है। उन्होंने माना कि दूध
वितरण में दिक्कत उन क्षेत्रों में आ रही है जहां केंद्रीयकृत व्यवस्था के
तहत इलाके के कई स्कूलों में दूध बांटने की जिम्मेदारी किसी संस्था पर है।
वजह यह है कि एक साथ कई स्कूलों में वितरण के लिए ज्यादा मात्र में दूध
चाहिए। ज्यादा मात्रा में दूध पहुंचाने वाला दूध पहुंचाने और उसकी पैकेजिंग
की लागत भी मांगते हैं। सोनभद्र सरीखे इलाके में जरूरत के मुताबिक दूध भी
नहीं उपलब्ध है। उन्होंने कहा कि जरूरत महसूस होने पर योजना के लिए अनुपूरक
बजट में धनराशि की मांग की जाएगी। जिलों से मिलने वाले फीडबैक के आधार पर
योजना के स्वरूप में बदलाव किया जा सकता है।
- 13906 स्कूलों में नहीं बंटा दूध
बुधवार शाम 6.30 बजे मध्याह्न् भोजन प्राधिकरण को इंटरएक्टिव वायस
रिस्पांस सिस्टम (आइवीआरएस) प्रणाली के जरिये सूबे के 117000 परिषदीय
स्कूलों से प्राप्त सूचना के मुताबिक 13906 स्कूलों में दुग्ध वितरण नहीं
हो पाया था।
खबर साभार : दैनिक जागरण
सेहत की फिक्र पर बटुआ ढीला करने से सरकार का परहेज, कम दाम में स्कूली बच्चों को दूध मुहैया कराने की योजना सूबे में हिचकोले खा रही
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
7:54 AM
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