दूध में पड़ रही चिंता की ‘मलाई’ : दूध कहां से और कैसे आएगा, उसे किसमें उबाला जाएगा, किसमें पिलाया जाएगा? सभी सवालों पर जिम्मेदारों ने साधी चुप्पी
- दूध में पड़ रही चिंता की ‘मलाई’
प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों को मिलने वाले मध्याह्न् भोजन में सप्ताह में एक दिन दूध देने का फरमान जारी हुआ है लेकिन दूध कहां से और कैसे आएगा, उसे किसमें उबाला जाएगा। बच्चे दूध को पीएंगे किसमें (क्योंकि उसके लिए बर्तन की विद्यालयों में कोई व्यवस्था है नहीं) आदि जैसी चिंताएं प्रधानाध्यापक व विद्यालय प्रबंध समिति को खाए जा रही हैं। सबसे ज्यादा चिंता दूध की व्यवस्था करने को लेकर है कि वह आएगा कहां से क्योंकि उसके बारे में शासनादेश में कोई निर्देश नहीं दिया गया है।
यह ऐसा मामला है जिस पर अधिकारी भी खुलकर बोलने से बच रहे हैं। वह सब कुछ प्रधानाध्यापक व विद्यालय प्रबंध समिति के कंधे पर डालकर पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। प्रदेश सरकार के सचिव एचएल गुप्त ने 24 जून को सभी जिलाधिकारियों व बेसिक शिक्षा अधिकारियों को आदेश भेजा है जिसमें प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए मिडडे मील का बदला हुए मेन्यू भी दिया गया है। नए मेन्यू में दलिया को बाहर कर दिया गया है। पहले सोमवार व गुरुवार को दलिया खिलाने का विकल्प दिया गया था। बच्चों को बुधवार और शनिवार को मिलने वाली खीर को भी अलविदा कह दिया गया है। बच्चों को अब बुधवार को कोफ्ता-चावल के साथ दो सौ मिलीलीटर उबला हुआ दूध दिया जाएगा। यह मीनू इसी 15 जुलाई से लागू होगा।
बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी मिडडे मील के बदले स्वरूप के अनुसार व्यवस्था बनाने में जुट गए हैं लेकिन दूध की गुणवत्ता, उबालने और वितरण के मानकों पर अभी भी संशय बरकरार है। अधिकारियों को दूध की व्यवस्था के लिए किस प्रक्रिया का पालन करना है यह भी स्पष्ट नहीं है। वहीं 24 जून के आदेश में कहा गया है कि दूध उपलब्ध कराने का व्यय भार परिवर्तन लागत से वहन किया जाएगा। वितरण व्यवस्था के तहत अगर बुधवार को अवकाश होता है तो अगले दिन दूध दिया जाएगा।
- पहले भी संशोधित हुआ है मेन्यू :
दो अगस्त 2006 से प्रदेश में चल रही मिडडे मील योजना का मेन्यू पहले भी तीन बार बदला जा चुका है। एक नवंबर 2007 को शासनादेश के जरिए मेन्यू से पूड़ी हटा दी गई। इसकी जगह रोटी-सब्जी और दलिया खिलाने की व्यवस्था की गई। इसके बाद चार जून 2010 को मीठा चावल का विकल्प भी समाप्त कर दिया गया। अब 24 जून को तीसरे बदलाव में दलिया को खत्म कर दूध देने की व्यवस्था की गई है।
- कहीं दुधारू पशु न पालना पड़े:
स्कूली बच्चों को दूध पिलाने के बेसिक शिक्षा
विभाग के आदेश पर लोगों ने चुटकी लेनी भी शुरू कर दी है। सोशल मीडिया पर
इस संबंध में तमाम व्यंग्य वायरल हो गए हैं। कुछ को यह अंदेशा है कि बेसिक
शिक्षा विभाग कहीं विद्यालयों में बच्चों को पढ़ाने के बजाय दुधारू पशु न
पालना शुरू कर दे। अगर दुधारू पशु की व्यवस्था करने का निर्देश हुआ तो फिर
तमाम नई व्यवस्थाएं भी करनी होंगी। व्हाट्सएप पर एक संदेश के अनुसार बच्चों
को पढ़ाने में फेल बेसिक शिक्षा विभाग अपने लिए नए काम पैदा कर रहा है।
खबर साभार : दैनिक जागरण |
दूध में पड़ रही चिंता की ‘मलाई’ : दूध कहां से और कैसे आएगा, उसे किसमें उबाला जाएगा, किसमें पिलाया जाएगा? सभी सवालों पर जिम्मेदारों ने साधी चुप्पी
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
10:35 AM
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