क्या अधिकारी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजेंगे : कोर्ट, दी नसीहत - सरकार निजी स्कूलों पर अधिकार जमाने के बजाय सरकारी स्कूलों की हालत सुधारे
नई दिल्ली : नर्सरी दाखिले से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने मंगलवार को सरकारी स्कूलों की हालत पर चिंता जताई। अदालत ने दिल्ली सरकार से सवाल किया कि क्या सरकार में काम करने वाले अधिकारी (नौकरशाह) अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजना चाहेंगे। न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि सरकार निजी स्कूलों पर अधिकार जमाने के बजाय सरकारी स्कूलों की हालत सुधारे, जिससे कि अभिभावक अपने बच्चों का इन स्कूलों में दाखिला कराएं।
अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता है। अमेरिका में लोग अपने बच्चों का सरकारी स्कूलों में दाखिला कराना चाहते हैं, क्योंकि वहां स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएं हैं। वहां सरकारी स्कूलों में बेहतर शिक्षक हैं, लेकिन हमारे देश में शिक्षक कक्षाओं में जाते ही नहीं। मुद्दा केवल सुविधाओं का नहीं है। हर किसी को अपनी पसंद का संस्थान चुनने का अधिकार है। अभी इन स्कूलों को निजी स्कूलों की बराबरी करने में काफी वक्त लगेगा।
उपराज्यपाल व दिल्ली सरकार की तरफ से निजी स्कूलों में नेबरहुड के तहत नर्सरी में दाखिला नीति को सही ठहराया गया। उनकी तरफ से कहा गया कि याचिकाकर्ता 298 स्कूलों ने तय शतरें पर डीडीए से सस्ती दरों पर भूमि ली है और उन्हें इस नीति का पालन करना ही होगा। उन्होंने सोमवार को फीस बढ़ोतरी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए निर्णय का हवाला देते हुए कहा अब दायर याचिका पर सुनवाई का कोई औचित्य ही नहीं है। शिक्षा निदेशालय व उपराज्यपाल की तरफ से पेश एडिशनल सॉलीसिटर जनरल संजय जैन व दिल्ली सरकार के अधिवक्ता राहुल मेहरा ने कहा कि नेबरहुड एक अच्छी नीति है और उसे लागू करना जनहित में है।
राहुल मेहरा ने कहा कि सरकारी स्कूलों की पूर्व व वर्तमान हालत में काफी अंतर है। अब सभी स्कूलों में शौचालय है, पीने का पानी व पर्याप्त शिक्षक भी हैं।
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