शिक्षा मित्रों के संख्या बल में सभी को दिखा सियासी लाभ : नियमितीकरण का फैसला रोजगार देने से ज्यादा राजनीतिक, टीईटी का निकाला जा सकता है तोड़
लखनऊ।
सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा मित्रों को शिक्षकों का सहयोग करने के
लिए रखा गया था। पर, धीरे-धीरे इनकी संख्या इतनी अधिक हो गई कि राजनीतिक
पार्टियां को इनके हित में अपना हित दिखने लगा। बसपा और सपा ने जहां सीधे
तौर पर अपना हित साधने के लिए इनके हक में फैसले लिए, वहीं अन्य राजनीतिक
दल इनके झंडाबरदार रहे। तो शिक्षा मित्र भी इसका फायदा उठाने से जरा भी
नहीं चूके। बसपा हो या सपा की सरकारों को इन्होंने अपने हक में फैसला लेने
को मजबूर कराया। जबकि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) बार-बार यह
कहता रहा कि बिना टीईटी शिक्षक नहीं बनाया जा सकता, पर इन्हें समायोजन के
बहाने शिक्षक बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई।
केंद्र
सरकार ने बुनियादी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सर्व शिक्षा अभियान की
शुरुआत की। इसके तहत परिषदीय स्कूलों में शिक्षकों का सहयोग करने के लिए
वर्ष 2000 में ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा मित्रों को रखने की योजना शुरू
की गई। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा मित्रों का अच्छा सहयोग मिलने पर
वर्ष 2006 में शहरी क्षेत्रों में शिक्षा मित्रों को रखा गया। लेकिन शिक्षा
का अधिकार अधिनियम 2009 में आने के बाद शिक्षा मित्रों की भर्ती प्रक्रिया
रोक दी गई। एनसीटीई ने कहा कि परिषदीय स्कूलों में केवल प्रशिक्षित शिक्षक
ही रखे जाएंगे और जो भी शिक्षक रखे जाएंगे, उन्हें टीईटी पास करना
अनिवार्य होगा।
- नियमितीकरण का फैसला रोजगार देने से ज्यादा राजनीतिक
परिषदीय
स्कूलों में सिर्फ प्रशिक्षित शिक्षक और टीईटी पास अभ्यर्थियों के रखे
जाने की बाध्यता के चलते तत्कालीन बसपा सरकार ने जुलाई 2011 में शिक्षा
मित्रों को दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से दो वर्षीय बीटीसी का प्रशिक्षण देकर
शिक्षक बनाने का निर्णय किया। बसपा सरकार ने यह निर्णय उस समय किया था जब
प्रदेश में विधानसभा चुनाव निकट था। विधानसभा का चुनाव वर्ष 2012 में होना
था। बसपा सरकार इनकी 1.76 लाख की संख्या बल का चुनावी फायदा लेना चाहती थी।
उसे उम्मीद था कि चुनाव में बसपा को इसका लाभ मिलेगा। प्रशिक्षण के बाद
शिक्षक बनाए जाने का आदेश होने के बाद शिक्षा मित्र और उसके परिवार के
लोगों के वोटों का फायदा विधानसभा चुनाव में मिलेगा। यह तो शिक्षा मित्र ही
जाने कि बसपा को कितना वोट किया, लेकिन प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद
शिक्षा मित्रों ने सपा सरकार पर शिक्षक बनाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया।
विधानसभा चुनाव के दो साल बाद ही लोकसभा चुनाव होने थे, इसलिए राज्य की सपा
सरकार ने शिक्षा मित्रों के समायोजन का कार्यक्रम जारी कर दिया। यह बात
अलग है कि शिक्षा मित्रों के समायोजन की प्रक्रिया लोकसभा चुनाव के बाद
अगस्त 2014 में शुरू हो सकी। पर, शिक्षा मित्रों की संख्या बल में सभी को
अपना फायदा दिखा।
- ...फिर भी शिक्षा मित्र हताश नहीं
उत्तर
प्रदेश आदर्श शिक्षा मित्र वेलफेलयर एसोसिएशन के अध्यक्ष जितेंद्र कुमार
शाही कहते हैं कि शिक्षक बनने वाले शिक्षा मित्रों को हताश होने की जरूरत
नहीं है। राज्य सरकार उनके साथ है। प्रदेश में कुल 1.76 लाख शिक्षा मित्र
हैं। इसमें से अब तक 1,35,826 शिक्षा मित्र शिक्षक बन चुके हैं। यह बहुत
बढ़ी संख्या है। सुप्रीम कोर्ट में शिक्षा मित्र भी अपना पक्ष रखेंगे।
उम्मीद है कि संख्या बल को देखते हुए उनके हित में ही फैसला होगा।
- टीईटी का निकाला जा सकता है तोड़
सुप्रीम
कोर्ट का आदेश आने के बाद बेसिक शिक्षा मंत्री राम गोविंद चौधरी ने बेसिक
शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ सोमवार देर शाम बैठक की। इसमें
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर विचार-विमर्श किया गया। सूत्रों का कहना है कि
टीईटी के विकल्प पर भी चर्चा हुआ। कहा जा रहा है कि जैसे मोअल्लिम वालों को
शिक्षक बनाने के लिए भाषा टीईटी का सहारा लिया गया, वैसे ही शिक्षा
मित्रों के लिए इसी तरह टीईटी का सहारा लिया जा सकता है।
खबर साभार : अमर उजाला
शिक्षा मित्रों के संख्या बल में सभी को दिखा सियासी लाभ : नियमितीकरण का फैसला रोजगार देने से ज्यादा राजनीतिक, टीईटी का निकाला जा सकता है तोड़
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
7:33 AM
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