आरटीई के तहत सभी गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाई के साथ यूनिफार्म और किताबें देने का प्रावधान, लेकिन सरकार ने जो शासनादेश जारी किया, उसमें ड्रेस और किताबों का कहीं जिक्र नहीं
जब आरटीई में नियम तो निजी स्कूलों को छूट क्यों
राइट टु एजुकेशन के तहत सभी गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाई के साथ यूनिफार्म और किताबें देने का प्रावधान है, लेकिन प्रदेश सरकार की ओर से इसका जो शासनादेश जारी किया गया उसमें ड्रेस और किताबों का कहीं जिक्र ही नहीं है। सिटी मॉन्टेसरी स्कूल में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 13 गरीब बच्चों को दाखिला तो मिला है, लेकिन स्कूल ने इसी जीओ को आधार बनाते हुए बच्चों को यूनिफार्म और किताबें देने से इनकार कर दिया है।
प्रदेश की आरटीई नियमावली में स्पष्ट है कि बच्चों को किताबें और यूनिफार्म स्कूल ही देंगे। आरटीई एक्टिविस्ट समीना बानो ने बताया कि यूपी आरटीई की नियम संख्या 5.1 में लिखा है कि बच्चों को एडमिशन के साथ स्कूल यूनिफार्म और किताबें भी दी जाएंगी। बाद में सरकार की ओर से फीस की तरह इसका रिफंड भी स्कूल को कर दिया जाएगा। हालांकि, प्रदेश सरकार ने अपने शासनदेश में इस बात को स्पष्ट नहीं किया है। इसी को आधार बनाकर स्कूल यूनिफार्म और किताबें देने से कतरा रहे हैं। इसका ताजा उदाहरण सीएमएस ही है।
जिला प्रशासन ने की बच्चों की मदद
सीएमएस के यूनिफार्म और किताबें देने से इनकार के बाद एनजीओ भारत अभ्योदय फाउंडेशन की समीना बानो के प्रयास से बच्चों को यूनिफार्म और किताबें मिलीं। यूनिवर्सल बुक डीपो ने बच्चों को मुफ्त किताबे दीं, जबकि डीएम ने बच्चों की यूनिफार्म का इंतजाम किया। गुरुवार से ये बच्चे स्कूल जाएंगे। हालांकि, अन्य निजी स्कूलों में जिन 560 बच्चों के एडमिशन हुए हैं, उनके पैरंट्स को खुद यूनिफार्म खरीदनी पड़ी।
कमीशन का है खेल
आरटीई के तहत हर स्कूल को प्रति छात्र 450 रुपये हर महीने फीस रिफंड दिए जाते हैं, हालांकि ज्यादातर स्कूलों की फीस तीन से चार हजार रुपये प्रति माह है। इसी तरह यूनिफार्म और किताबों का खर्च अलग होता है। निजी पब्लिशर्स की किताबें दस गुना महंगी होती हैं। इसका बजट आठ से दस हजार रुपये बनता है। सरकार से फीस रिफंड के रूप में दस प्रतिशत भी नहीं मिलता है। इस खरीदारी में स्कूलों के कमीशन की भी कोई गुंजाइश नहीं होती।
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