उच्च प्राथमिक विद्यालयों में स्काउट-गाइड शिक्षा के नाम पर हो रहा मजाक : 80 रुपए के बजट में कैसे सिखाएं स्काउटिंग
- 80 रुपए के बजट में कैसे सिखाएं स्काउटिंग
- उच्च प्राथमिक विद्यालयों में स्काउट-गाइड शिक्षा के नाम पर हो रहा मजाक
- 400 की जगह अब 40 रुपए
- प्रोफेशनल कोर्स में दाखिले में मिलता है वेटेज
बेसिक शिक्षा परिषद के जूनियर हाईस्कूलों में बच्चों को दी जाने वाली स्काउट-गाइड शिक्षा के नाम पर मजाक हो रहा है। स्काउटिंग के लिए विभाग ने सिर्फ 80 रुपए का बजट दिया है। इस बजट में एक बच्चे की यूनिफार्म तो दूर स्कार्फ तक नहीं खरीदा जा सकता। ऐसे में बजट की कमी की वजह से स्काउटिंग के क्रिया कलाप कुछ स्कूलों तक सीमित होकर रह गए।
राजधानी में 20 हजार से अधिक परिषदीय विद्यालय संचालित हैं। इनमें कक्षा छह से आठ तक में अनिवार्य विषय के रूप में स्काउट-गाइड शिक्षा को शामिल किया गया है। किताब की पढ़ाई के साथ-साथ इसके क्रिया कलापों का प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। कुछ वर्ष पहले तक सभी परिषदीय जूनियर हाईस्कूलों में इसका संचालन काफी सुचारू रूप से किया जाता था। लेकिन बजट के अभाव में व्यवस्था खत्म होती चली गई। जिला स्काउट मास्टर सुरेंद्र यादव बताते हैं कि स्काउटिंग के लिए यूनिफार्म, जूता, कैप, बेल्ट, पैंट, शर्ट आदि अनिवार्य है।
लेकिन सरकार की ओर से 40-40 रुपए का बजट दिया जाता है, जो स्काउटिंग के लिए नाकाफी है। इतने पैसे में यूनिफार्म का एक स्कार्फ भी नहीं आ सकता। उनके मुताबिक पहले राजधानी के सभी जूनियर हाईस्कूलों में स्काउटिंग के क्रियाकलाप होते थे। इसके लिए एक रुपए प्रति बच्चा फीस ली जाती थी। अब शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने से फीस बंद हो गई। जिससे स्काउटिंग को करीब 40 विद्यालयों तक सीमित कर दिया गया।
राजधानी में 20 हजार से अधिक परिषदीय विद्यालय संचालित हैं। इनमें कक्षा छह से आठ तक में अनिवार्य विषय के रूप में स्काउट-गाइड शिक्षा को शामिल किया गया है। किताब की पढ़ाई के साथ-साथ इसके क्रिया कलापों का प्रशिक्षण अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए। कुछ वर्ष पहले तक सभी परिषदीय जूनियर हाईस्कूलों में इसका संचालन काफी सुचारू रूप से किया जाता था। लेकिन बजट के अभाव में व्यवस्था खत्म होती चली गई। जिला स्काउट मास्टर सुरेंद्र यादव बताते हैं कि स्काउटिंग के लिए यूनिफार्म, जूता, कैप, बेल्ट, पैंट, शर्ट आदि अनिवार्य है।
लेकिन सरकार की ओर से 40-40 रुपए का बजट दिया जाता है, जो स्काउटिंग के लिए नाकाफी है। इतने पैसे में यूनिफार्म का एक स्कार्फ भी नहीं आ सकता। उनके मुताबिक पहले राजधानी के सभी जूनियर हाईस्कूलों में स्काउटिंग के क्रियाकलाप होते थे। इसके लिए एक रुपए प्रति बच्चा फीस ली जाती थी। अब शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने से फीस बंद हो गई। जिससे स्काउटिंग को करीब 40 विद्यालयों तक सीमित कर दिया गया।
भले ही स्काउटिंग को लेकर शासन गंभीर न हो, लेकिन इससे बच्चों को भविष्य में काफी फायदे मिलते हैं। जिला स्काउट मास्टर सुरेंद्र यादव के मुताबिक 10 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद बच्चे का प्रवेश स्काउटिंग में लिया जाता है। उसके बाद 27 महीने की कड़ी मेहनत के बाद वह प्रथम, द्वितीय, तृतीय सोपान की अवधि पूरी करता है। जिससे यदि छात्र प्रोफेशनल कोर्स में विश्वविद्यालय में दाखिला लेते हैं तो उन्हें पांच अंक का वेटेज मिलता है। स्काउट मास्टर सुरेंद्र यादव बताते हैं कि तकरीब छह साल पहले तक स्काउटिंग के लिए 400 रुपए का बजट होता था। लेकिन ऊपरी स्तर पर हुई गलती की वजह से अब साल में दो बार 40-40 रुपए दिए जाते हैं। इतने पैसे में कुछ नहीं हो सकता।
खबर साभार : डेली न्यूज एक्टिविस्ट
उच्च प्राथमिक विद्यालयों में स्काउट-गाइड शिक्षा के नाम पर हो रहा मजाक : 80 रुपए के बजट में कैसे सिखाएं स्काउटिंग
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
7:42 AM
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