सरकारी स्कूलों में मिड डे मील का फेर, पढ़ाई हुई ढेर, बच्चे बने मेहमान और शिक्षक रसोइए, वितरण के दौरान भंडारे में तब्दील हो जाते हैं स्कूल ज्यादातर स्कूलों में बंदरबांट
- सरकारी स्कूलों में मिड डे मील का फेर, पढ़ाई ढेर
- बच्चे बने मेहमान और शिक्षक रसोइए
- वितरण के दौरान भंडारे में तब्दील हो जाते हैं स्कूल
- ज्यादातर स्कूलों में बंदरबांट
स्कूलों में बच्चे अब मेहमान और शिक्षक रसोइए की भूमिका में नजर आते हैं।
अफसर भी निरीक्षण करने पहुंचते हैं तो पढ़ाई के बजाय मिड डे मील की
गुणवत्ता जांचने में समय बीत जाता है। स्कूलों में शिक्षण कार्य की रिपोर्ट
भले ही महीनों न भेजी जाए लेकिन मिड डे मील की रिपोर्ट रोज शासन को भेजी
जाती है। यही वजह है कि मिड डे मील वितरण के दौरान स्कूलों में बच्चों की
उपस्थिति शत प्रतिशत होती है लेकिन पढ़ाई के दौरान दस फीसदी बच्चे भी नजर
नहीं आते।
सरकार ने प्राथमिक, उच्च प्राथमिक
एवं इंटर कॉलेजों में आठवीं तक मिड-डे मील वितरण की व्यवस्था कर रखी है
ताकि बच्चे स्कूलों तक पहुंचें लेकिन शहर क्षेत्र के स्कूलों में बड़ी
संख्या ऐसे छात्र-छात्राओं की है, जो घर से टिफिन लेकर स्कूल आते हैं। मिड
डे मील की गुणवत्ता को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं, सो अभिभावक अपने
बच्चों की सेहत को लेकर किसी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं लेकिन
शिक्षकों और प्रधानाचार्यों को तो बच्चों की संख्या के हिसाब से मिड डे मील
तैयार करवाना है, उसका वितरण कराना है और रोज शासन को रिपोर्ट भेजनी है।
जब से बुधवार को दूध का वितरण शुरू हुआ है तब से शिक्षकों, प्रधानाचार्यों
की जिम्मेदारी ओर बढ़ गई है। स्कूल स्टाफ की कमी से पहले ही जूझ रहे हैं।
ऐसे में बच्चों को पढ़ाने की फुर्सत किसे है। उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक
संघ के पूर्व जिलाध्यक्ष राम प्रकाश पांडेय का कहना है कि स्कूल में खुले
में भोजन बनाए जाने पर पूरा विद्यालय परिसर भंडारे (लंगर) में तब्दील हो
जाता है। उनका कहना है कि पूर्व की भांति एनजीओ को ही भोजन वितरण की
जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।
मिड
डे मील के नाम पर ज्यादातर स्कूलों में बंदरबांट हो रही है। प्राथमिक
विद्यालयों में मिड डे मील के लिए प्रति छात्र 3.59 रुपये एवं उच्च
प्राथमिक विद्यालयों में 5.38 रुपये मिलते हैं। अब इसमें दूध का वितरण भी
शामिल कर लिया गया है। अगर हर बच्चे को पूरा मिड डे मील और दूध मिलने लगे
तो गुणवत्ता से खिलवाड़ होना ही है। जिले से लेकर शासन स्तर तक बैठे अफसर
भी जानते हैं कि इतने पैसे में कुछ नहीं होने वाला। ऐसे में हिसाब न तो कोई
सही हिसाब लेने वाला है और न ही हिसाब देने वाला।
- शिक्षकों की भर्ती फंसने से भी दिक्कत
प्रदेश
के परिषदीय विद्यालयों में शिक्षक भर्ती फंसी हुई है। स्कूलों में अभी
शिक्षकों की कमी बनी हुई है। कोर्ट की ओर से शिक्षामित्रों के समायोजन पर
रोक के बाद गतिरोध बना हुआ है। जूनियर हाईस्कूलों में भी शिक्षकों की कमी
है। विज्ञान-गणित शिक्षकों की नियुक्ति पर अब तक फैसला नहीं हो सका है। ऐसे
में स्टाफ की कमी से जूझ रहे स्कूलों में शिक्षक और प्रधानाचार्य मिड डे
मील के वितरण में फंसे रहेंगे तो पढ़ाई पर प्रभाव पढ़ना लाजिमी है।
खबर साभार : अमर उजाला
सरकारी स्कूलों में मिड डे मील का फेर, पढ़ाई हुई ढेर, बच्चे बने मेहमान और शिक्षक रसोइए, वितरण के दौरान भंडारे में तब्दील हो जाते हैं स्कूल ज्यादातर स्कूलों में बंदरबांट
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
7:15 AM
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