फैसले पर शुरू हुआ मंथन, हाई कोर्ट ने जताया विश्वास, ऐसा हुआ तो बदल जाएगी पूरे समाज की तस्वीर, नौकरशाह सरकार पर बना रहे फैसले को चुनौती देने का दबाव
- हाई कोर्ट के फैसले पर शुरू हुआ मंथन
- जनप्रतिनिधि, नौकरशाहों के बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने के फैसले का मामला
- नौकरशाह सरकार पर बना रहे फैसले को चुनौती देने का दबाव
- अपने फैसले में हाई कोर्ट ने जताया विश्वास, ऐसा हुआ तो बदल जाएगी पूरे समाज की तस्वीर
इलाहाबाद हाई कोर्ट का मानना है कि यदि अफसरों और नेताओं ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में बढ़ाया तो पूरे समाज की तस्वीर बदल जाएगी। यह जमीनी स्तर पर सामाजिक परिवर्तन की क्रांति होगी और सामान्य जन के बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा।
अपने विस्तृत फैसले में न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने स्पष्ट किया है कि उच्च वर्ग के बच्चे जब सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तो गरीबों के बच्चों को उनके बीच आकर एक अलग किस्म का वातावरण मिलेगा। प्रारंभिक स्तर पर ही बच्चों की यह संगत एक अलग प्रभाव डालेगी। न्यायमूर्ति ने राज्य और केंद्र दोनों ही सरकारों को आड़े हाथों लिया है। कहा है कि दोनों ही सरकारें प्रभावकारी परिणाम नहीं दे सकीं।
उन्होंने बेसिक शिक्षा विभाग में की जा रही भर्तियों को लेकर सरकार पर भी कटाक्ष किए हैं। अदालत ने कहा है कि कोई भी प्राइमरी स्कूलों में शिक्षण का गुणवत्ता बढ़ाने पर गंभीर नहीं है। स्कूलों में शिक्षण का स्तर निहायत ही सामान्य है। शिक्षक अशिक्षित नहीं हैं लेकिन वे वास्तव में पढ़ाने के योग्य नहीं हैं। इन विद्यालयों में शिक्षक बनने की एक प्रतिस्पर्धा नजर आती है कि किसी प्रकार नियुक्ति प्राप्त कर ली जाए लेकिन वह स्वयं के बच्चों को ही वहां पढ़ाना पसंद नहीं करेंगे।
सरकार ने समय-समय पर नियमावली बनाकर रिक्त पदों की बढ़ती संख्या को कम क्वालीफाइड लोगों से भरने की कोशिश की है। शिक्षा मित्र, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता इसके उदाहरण हैं। राज्य सरकार को ऐसे शिक्षकों को नियुक्ति करनी चाहिए जो संस्थान को चला सकने में सक्षम हों और जहां उन्हें अपने बच्चों को भी पढ़ाने में कोई हिचक न हो।
दिन भर चली फैसले पर बहस : इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले बाद अब इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि क्या यह फैसला लागू हो पाएगा। शिक्षा निदेशालय, बेसिक शिक्षा परिषद और उच्च शिक्षा के तमाम संस्थानों में इस फैसले को लेकर ही बहस चलती रही। कुछ लोगों का कहना था कि अदालत का यह फैसला बहस के कई अन्य बिंदुओं को खोलेगा। यह बहस शिक्षा के मौलिक अधिकारों तक जाएगी।
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष लल्लन मिश्र का कहना था कि हाई कोर्ट के इस आदेश का अनुपालन हुआ तो निश्चित रूप से शिक्षा के क्षेत्र में यह क्रांतिकारी कदम होगा।
सरकार के लिए होगा टेढ़ी खीर : इस बीच कानून विदों ने भी इस फैसले की मीमांसा शुरू कर दी है। हालांकि हाई कोर्ट के फैसले पर कोई टिप्पणी करने से वह बचते रहे। उनका मानना है कि सरकार के लिए हाई कोर्ट के फैसले पर अमल मुश्किल होगा।
जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों व उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों के बच्चों को प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने के हाई कोर्ट के फैसले पर मंथन शुरू हो गया है। महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह का कहना है कि हाई कोर्ट के निर्णय का विधिक परीक्षण किया जा रहा हैं। कानून के दायरे में आगे निर्णय किया जाएगा। दूसरी ओर आइएएस व आइपीएस एसोसिएशन ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए राज्य सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। 1इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसले में कहा था कि सरकारी, अर्ध सरकारी सेवकों, स्थानीय निकायों के जनप्रतिनिधियों, न्यायपालिका एवं सरकारी खजाने से वेतन, मानदेय या धन प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में पढ़ें। हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव को छह माह के अंदर इस पर अमल सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। फैसले पर बुधवार को विधि व न्याय विभाग में मंथन होता रहा। महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह का कहना है कि शिक्षा हर किसी का मौलिक अधिकार है। हाई कोर्ट के फैसले का परीक्षण कर रहे हैं। सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद कानून के दायरे में आगे का निर्णय किया जायेगा। इस संबंध में मुख्य सचिव आलोक रंजन ने बताया कि फैसले का विधिक परीक्षण करने के बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा।
सरकार ने समय-समय पर नियमावली बनाकर रिक्त पदों की बढ़ती संख्या को कम क्वालीफाइड लोगों से भरने की कोशिश की है। शिक्षा मित्र, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता इसके उदाहरण हैं। राज्य सरकार को ऐसे शिक्षकों को नियुक्ति करनी चाहिए जो संस्थान को चला सकने में सक्षम हों और जहां उन्हें अपने बच्चों को भी पढ़ाने में कोई हिचक न हो।
दिन भर चली फैसले पर बहस : इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले बाद अब इस बात पर बहस शुरू हो गई है कि क्या यह फैसला लागू हो पाएगा। शिक्षा निदेशालय, बेसिक शिक्षा परिषद और उच्च शिक्षा के तमाम संस्थानों में इस फैसले को लेकर ही बहस चलती रही। कुछ लोगों का कहना था कि अदालत का यह फैसला बहस के कई अन्य बिंदुओं को खोलेगा। यह बहस शिक्षा के मौलिक अधिकारों तक जाएगी।
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष लल्लन मिश्र का कहना था कि हाई कोर्ट के इस आदेश का अनुपालन हुआ तो निश्चित रूप से शिक्षा के क्षेत्र में यह क्रांतिकारी कदम होगा।
सरकार के लिए होगा टेढ़ी खीर : इस बीच कानून विदों ने भी इस फैसले की मीमांसा शुरू कर दी है। हालांकि हाई कोर्ट के फैसले पर कोई टिप्पणी करने से वह बचते रहे। उनका मानना है कि सरकार के लिए हाई कोर्ट के फैसले पर अमल मुश्किल होगा।
जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों व उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों के बच्चों को प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने के हाई कोर्ट के फैसले पर मंथन शुरू हो गया है। महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह का कहना है कि हाई कोर्ट के निर्णय का विधिक परीक्षण किया जा रहा हैं। कानून के दायरे में आगे निर्णय किया जाएगा। दूसरी ओर आइएएस व आइपीएस एसोसिएशन ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए राज्य सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। 1इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम फैसले में कहा था कि सरकारी, अर्ध सरकारी सेवकों, स्थानीय निकायों के जनप्रतिनिधियों, न्यायपालिका एवं सरकारी खजाने से वेतन, मानदेय या धन प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में पढ़ें। हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव को छह माह के अंदर इस पर अमल सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। फैसले पर बुधवार को विधि व न्याय विभाग में मंथन होता रहा। महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह का कहना है कि शिक्षा हर किसी का मौलिक अधिकार है। हाई कोर्ट के फैसले का परीक्षण कर रहे हैं। सभी पहलुओं का अध्ययन करने के बाद कानून के दायरे में आगे का निर्णय किया जायेगा। इस संबंध में मुख्य सचिव आलोक रंजन ने बताया कि फैसले का विधिक परीक्षण करने के बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा।
खबर साभार : दैनिक जागरण
नेताओं और अफसरों के बच्चों को अनिवार्य रूप से सरकारी स्कूलों में पढ़ाने
के हाईकोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार का कहना है कि आदेश की प्रति अभी नहीं
मिली है। सरकार आदेश की प्रति मिलने के बाद उसका अध्ययन करेगी और उसका
विधिक परीक्षण कराने के बाद आगे का फैसला लेगी। उधर, यूपी आईएएस एसोसिएशन
के सचिव भुवनेश कुमार का इस संबंध में कहना है कि फैसले के अध्ययन के बाद
राज्य सरकार इस मामले में क्या निर्णय लेती है, उसके बाद वह अपना कदम उठाने
पर विचार करेंगे।
साभार : हिंदुस्तान |
- तुमने पत्तों को छुआ, जड़ को हिलाकर रख दिया
लखनऊ।
हाईकोर्ट ने मंत्रियों, जजों और अफसरों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में
ही पढ़ाने का कानून बनाने का आदेश देकर माहौल ही बदल दिया है। ज्यादातर लोग
इसे न सिर्फ अभूतपूर्व बल्कि अमीर-गरीब को एक समान शिक्षा के लिहाज से
क्रांतिकारी मान रहे हैं। पर, कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें इस फैसले से
अपना रुतबा घटने का खतरा दिखाई देने लगा है। फैसला कोर्ट का है, सो खुलकर
तो कुछ नहीं बोल रहे। भाजपा विधायक दल के मुख्य सचेतक डॉ. राधा मोहन दास
अग्रवाल ने कोर्ट के फैसले पर इस अंदाज में प्रतिक्रिया दी-
क्या गजब की उंगलियां थी, क्या गजब अंदाज था,तुमने पत्तों को छुआ, जड़ को हिलाकर रख दिया।
- शिक्षा के क्षेत्र में समानता होनी चाहिए। पर,
वर्तमान में जो व्यावहारिक परिस्थितियां हैं, उनमें यह कैसे संभव हो, इसके
लिए हाईकोर्ट के फैसले का अध्ययन किया जाएगा।- राजेन्द्र चौधरी, राजनीतिक
पेंशन मंत्री व सपा प्रवक्ता
- सपा ने हमेशा
समान शिक्षा की वकालत की है। आदेश का पालन तभी संभव है, जब एक जैसे स्कूल
हों। प्रदेश सरकार प्राइमरी शिक्षा के स्तर को उठाने के लिए ठोस काम कर रही
है। -रामगोपाल यादव, सांसद व राष्ट्रीय महासचिव सपा
- सूबे
की बदहाल शिक्षा-व्यवस्था पर हाईकोर्ट ही नहीं, सुप्रीमकोर्ट तक की नजर
है। यदि सरकार ने ऐसे फैसले पर भी अपील की तो वहां से भी राहत मिलने की
उम्मीद नहीं करनी चाहिए। - नसीमुद्दीन सिद्दीकी, नेता प्रतिपक्ष विधान परिषद
- अध्ययन करने के बाद लेंगे निर्णय : महाधिवक्ता
- कोर्ट
के आदेश का अध्ययन किया जा रहा है। इसके हर पहलू पर विचार करने के बाद
निर्णय लिया जाएगा कि सरकार स्पेशल अपील करेगी या आदेश को लागू करेगी।
तत्काल कोई निर्णय लेना जल्दबाजी होगा, इसलिए फैसले के हर पहलू पर गौर कर
लेना चाहते हैं। -विजय बहादुर सिंह, महाधिवक्ता
- निर्णय की प्रति आने के बाद न्याय विभाग परीक्षण करेगा। फिर सरकार तय करेगी कि क्या करना है - आलोक रंजन, मुख्य सचिव
- परिषदीय
स्कूलों की बदहाल शिक्षा व्यवस्था मिड-डे-मील तक सीमित है, जिसमें बच्चों
को हाथ में कटोरा पकड़ा दिया गया है। पढ़ाई-लिखाई बिल्कुल नहीं हो रही है।
जूनियर हाईस्कूलों में 15 हजार, प्राइमरी स्कूलों में दो लाख शिक्षकों की
कमी है। ऐसे भी स्कूल हैं जहां एक-एक शिक्षक के पास दो-दो स्कूलों का
प्रभार है। - स्वामी प्रसाद मौर्य, नेता बसपा विधानमंडल दल
- यह
बुनियादी शिक्षा में सुधार के लिए अच्छा फैसला है। इससे प्राथमिक शिक्षा
की क्वालिटी में सुधार होगा। -बीएन रंजन, महासचिव उत्तर प्रदेश न्यायिक
सेवा संघ
- सरकारी तंत्र से जुड़े अफसरों व
जनप्रतिनिधि बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजेंगे तो स्वाभाविक रूप से
पढ़ाई की व्यवस्था सुधरेगी। -अशोक गांगुली, पूर्व अध्यक्ष्ा,
सीबीएसई
- न्यायालय के निर्णय की भावना पवित्र है। सरकार को इसे लागू कराने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए - गोपाल टंडन, विधायक भाजपा
- सरकार
को इसे लागू करने में देरी नहीं करनी चाहिए। अफसरों के चक्कर में फंसकर
फैसले के खिलाफ अपील करने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। - डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी प्रदेश अध्यक्ष भाजपा
- सरकार को अपील में नहीं जाना चाहिए। विधानसभा में सर्वदलीय प्रस्ताव लाना चाहिए और सभी दलों को खुले मन से इसका समर्थन करना चाहिए। -डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल, मुख्य सचेतक
- न्यायालय ने समाजवादी सरकार को सालों के सपने ‘एक समान शिक्षा’ के लिए कानून बनाने का सुनहरा अवसर मुहैया करा दिया है। -सुरेश खन्ना नेता भाजपा विधानमंडल दल
- सरकारी स्कूलों का स्टैंडर्ड सुधारकर बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए। सरकार को अपील के बजाय स्कूलों की दशा सुधारनी चाहिए। - प्रदीप माथुर, नेता कांग्रेस विधानमंडल दल
- छह माह इंतजार क्यों? सरकार को फैसले को लागू करने के लिए आज से ही काम शुरू कर देना चाहिए। - हृदयनारायण दीक्षित, नेता भाजपा विधान परिषद
- नेताओं,
अफसरों, जजों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तो ये स्कूल तत्काल
अफसरों की प्राथमिकता में आ जाएंगे और हालत सुधरेगी। - गजाला लारी,
विधायक सपा
- सरकारी स्कूल इसलिए बदहाल हुए
क्योंकि अफसरों ने ध्यान नहीं दिया। यह फैसला वैसे ही है जैसे गोली से असर
नहीं होता है तो डॉक्टर इंजेक्शन देता है। यह इंजेक्शन वाला फैसला है। - आनंद सिंह, पूर्व कृषि मंत्री
- हाईकोर्ट
संविधान का निर्माता नहीं है, जो तय करेगा कि बच्चा कहां पढ़ेगा। इस पर तो
अंग्रेज भी पाबंदी नहीं लगा सके थे। -आलम बदी, सपा विधायक
- जो
काम सरकारें न कर सकीं, वह न्यायालय ने कर दिखाया। मुझे नहीं लगता कि
सरकार को इस निर्णय के खिलाफ किसी अपील और दलील के चक्कर में पड़ना चाहिए। - देवेन्द्र प्रताप सिंह, एमएलसी सपा
- अफसर,
नेता, जज-जब सिस्टम के सभी पहरुए इन स्कूलों से बतौर अभिभावक जुड़ जाएंगे
तो स्कूलों की बदहाली दूर होने में देर नहीं लगेगी। - हरिओम पांडेय,
सांसद भाजपा
- यह हम तय करेंगे कि बच्चों को
कहां पढा़एं। इसे किसी पर थोपा नहीं जा सकता। बच्चा सरकारी स्कूल में
पढ़ेगा, तो फ्यूचर कैसे बनाएगा। अच्छे इंस्टीट्यूट में कौन पढ़ेगा। -संजय जायसवाल कांग्रेस विधायक
फैसले पर शुरू हुआ मंथन, हाई कोर्ट ने जताया विश्वास, ऐसा हुआ तो बदल जाएगी पूरे समाज की तस्वीर, नौकरशाह सरकार पर बना रहे फैसले को चुनौती देने का दबाव
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
8:14 AM
Rating:
No comments:
Post a Comment