कान्वेंट में सिर्फ साहब ही नहीं चपरासियों के भी बच्चे, बेहतर शिक्षा की आस में सबकी चाहत कान्वेंट, साधनों और शिक्षकों के अभाव से बदहाल हैं सरकारी स्कूल
- कान्वेंट में सिर्फ साहब ही नहीं चपरासियों के भी बच्चे
- बेहतर शिक्षा की आस में सबकी चाहत कान्वेंट
- कान्वेंट में दाखिले के लिए साहब से ही कराई पैरवी
इलाहाबाद(ब्यूरो)।मंत्रियों,
अफसरों और सरकार से वेतन पाने वाले कर्मचारियों के बच्चों का परिषदीय
प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ना अनिवार्य करने संबंधी हाईकोर्ट केआदेश के
साथ ही सरकारी और निजी शिक्षा के बीच नई बहस छिड़ गई है। वैसे असलियत तो यह
है कि मंत्रियों, अफसरों की कौन कहे, उनके मातहत काम करने वाले सहायक और
चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों ने भी अपने बच्चों को पढ़ाने के नाम पर परिषदीय
विद्यालयों से नाता तोड़ लिया है। मंडलायुक्त, डीएम, नगर आयुक्त सहित अन्य
उच्च पदों पर वैठे अधिकारियों के बच्चे तो कान्वेंट स्कूलों से पढ़े ही
हैं, ऐसे तमाम अधिकारियों के यहां काम करने वाले सहायक, अर्दली, ड्राइवर,
चपरासी, माली आदि के बच्चे भी कान्वेंट स्कूलों में पढ़ रहे हैं।
कइयों
ने तो अच्छे कान्वेंट स्कूलों में अपने बच्चों के दाखिले के लिए अपने साहब
से ही पैरवी कराई है। बेहतर शिक्षा के सवाल पर सभी की राय एक जैसी है।
जहां उच्च अधिकारियों का तर्क है कि अच्छी शिक्षा के लिए ही बच्चों का
दाखिला अच्छे कान्वेंट स्कूलों में कराया गया ताकि उनका भविष्य संवर और
सुरक्षित रहे, वहीं बेहतर शिक्षा के मामले में अर्दली, चपरासी, माली,
ड्राइवर आदि की राय भी एक है।
सभी का दो
टूक कहना है कि सवाल परिषदीय विद्यालय और कान्वेंट नहीं बल्कि बेहतर शिक्षा
का है और परिषदीय विद्यालयों की बदहाली से सभी वाकिफ हैं। साधनों और
शिक्षकों के अभाव सहित कई ऐसी दिक्कतें हैं जिनसे परिषदीय विद्यालय के
छात्र, कान्वेंट के विद्यार्थियों से होड़ में पिछड़ रहे हैं। किन्हीं
परिस्थितियों से यदि हम अभावों वाले परिषदीय विद्यालयों तक सीमित रहकर
बेहतर या कान्वेंट स्कूलों की शिक्षा से वंचित रहकर किसी पद तक न पहुंचकर
सेवाकार्य से ही जुड़े रहे तो अब अपने बच्चों के साथ वैसी ही गलती क्यों
दोहराई जाए।
खबर साभार : अमर उजाला
- हर जतन करके प्राइवेट स्कूलों में भेज रहे बच्चे
बड़े अफसरों का रुतबा देखने वाले चतुर्थ श्रेणी सरकारी कर्मचारियों ने भी
अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए सरकारी स्कूलों पर भरोसा नहीं किया। उनके
बच्चे प्राइवेट स्कूलों में हैं और कइयों ने इसके लिए कर्ज तक ले रखा है।
कमिश्नर, डीएम और विकास भवन में तैनात कुछ अर्दलियों, ड्राइवरों और पानी
पिलाने वाले कर्मचारियों से ‘हिन्दुस्तान’ ने बात की। उनके मन में गहरे तक
सरकारी स्कूलों के प्रति अविश्वास है। हाईकोर्ट के आदेश की उनके बीच खूब
चर्चा रही। सवाल किया तो बोले कि सरकारी स्कूल में भेजकर बच्चों को बर्बाद
कर दें। पूछना है तो साहब से पूछिए कि उनके बच्चे कहां पढ़ते हैं। कमिश्नर
दफ्तर के एक कर्मचारी ने कहा कि उसके गांव में दो कॉन्वेंट स्कूल इसी सत्र
में खुले हैं। दोनों में एडमिशन फुल का बोर्ड लगा है।
साभार : हिंदुस्तान |
कान्वेंट में सिर्फ साहब ही नहीं चपरासियों के भी बच्चे, बेहतर शिक्षा की आस में सबकी चाहत कान्वेंट, साधनों और शिक्षकों के अभाव से बदहाल हैं सरकारी स्कूल
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
7:28 AM
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