सरकारी कर्मियों और सांसद, विधायक एवं आईएएस के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे,सरकारी वेतन पाने वालों के लिए हाईकोर्ट का आदेश


  • यूपी की बदहाल प्राथमिक शिक्षा पर हाईकोर्ट का ऐतिहासिक आदेश
  • मंत्रियों, जजों और अफसरों के बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ें
  • सरकार से वेतन पाने वाले सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य करने का निर्देश
  • अगले शैक्षिक सत्र से लागू करना होगा नियम
  • मुख्य सचिव को छह माह में नीति बनाने को कहा
  • अदालत ने तल्ख टिप्पणियों से खोली सबकी पोल

क्लिक करें !>> हाईकोर्ट के एतिहासिक फैसले का आदेश पढ़ें और डाउनलोड करें, सरकारी कर्मियों और सांसद, विधायक एवं आईएएस के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे !

इलाहाबाद। सूबे के सरकारी स्कूलों की दुर्दशा पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सख्त कदम उठाया है। कोर्ट ने कहा है कि जब तक जनप्रतिनिधियों, उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों और न्यायाधीशों के बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे, तब तक इन स्कूलों की दशा नहीं सुधरेगी।

यह व्यवस्था लागू करने का आदेश मंगलवार को न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने शिव कुमार पाठक व अन्य की याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया। हाई कोर्ट ने छह माह के भीतर मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने को कहा है कि सरकारी, अर्ध सरकारी सेवकों, स्थानीय निकायों के जनप्रतिनिधियों, न्यायपालिका एवं सरकारी खजाने से वेतन, मानदेय या धन प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों में पढ़ें। ऐसा न करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाए। यदि कोई कॉन्वेंट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजे तो उस स्कूल में दी जाने वाली फीस के बराबर धनराशि उससे प्रतिमाह सरकारी खजाने में जमा कराएं और वेतनवृद्धि व प्रोन्नति कुछ समय के लिए रोकने की व्यवस्था हो। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को अगले शिक्षा सत्र से इस व्यवस्था को लागू करने को कहा है।
सरकारी खजाने से वेतन या सुविधा ले रहे बड़े लोगों के बच्चे जब तक अनिवार्य रूप से प्राथमिक शिक्षा के लिए सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे, तब तक उनकी दशा में सुधार नहीं होगा।  - इलाहाबाद हाईकोर्ट
हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि नौकरशाहों, नेताओं और सरकारी खजाने से वेतन या मानदेय पाने वाले प्रत्येक व्यक्ति के बच्चों का सरकारी प्राइमरी स्कूलों में पढ़ना अनिवार्य किया जाए। ऐसा न करने वालों पर दंडात्मक कार्यवाही का प्रावधान किया जाए। वेतन कटे, प्रमोशन रुके:कोर्ट ने कहा, जिनके बच्चे कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ें, वहां की फीस के बराबर रकम उनके वेतन से काट ली जाए। साथ ही ऐसे लोगों का कुछ समय के लिए इन्क्रीमेंट व प्रमोशन रोकने की व्यवस्था हो। अगले शिक्षा सत्र से इसे लागू भी किया जाए।सरकार को 6 माह का वक्त:कोर्ट ने साफ किया कि जब तक इन लोगों के बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे, वहां के हालात नहीं सुधरेंगे। कोर्ट ने राज्य सरकार को 6 माह के भीतर यह व्यवस्था करने का आदेश देते हुए कार्रवाई की रिपोर्ट पेश करने को कहा है।न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने जूनियर हाईस्कूलों में गणित व विज्ञान के सहायक अध्यापकों की चयन प्रक्रिया के संबंध में दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सरकारी स्कूलों की दुर्दशा सामने आने पर अह आदेश दिया है। कोर्ट ने जूनियर हाईस्कूलों में गणित व विज्ञान के सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए 1981 की नियमावली के नियम 14 के मुताबिक नए सिरे से चयन सूची तैयार करने का निर्देश भी दिया है। 


खबर साभार : दैनिक जागरण

खबर साभार : डेली न्यूज एक्टिविस्त 

# इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम आदेश-एमपी,एमएलए,आईएएस के बच्चे सरकारी स्कूल जाएंगे, कांवेंट में पढ़ाया तो सरकारी खजाने में देना होगा पैसा
# इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम आदेश-सरकारी कर्मियों के बच्चे प्राथमिक स्कूलों में पढ़ेंगे,सरकारी वेतन पाने वालों के लिए हाईकोर्ट के आदेश
इलाहाबाद हाईकोर्ट का बडा फ़ैसला- मुख्य सचिव को आदेश सभी नौकरशाहों और सरकारी कर्मचारियों के लिए उनके बच्चों को सरकारी प्राथमिक विद्यालय मे पढवाना अनिवार्य किया जाय। हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि ऐसी व्यवस्था की जाए कि अगले शिक्षासत्र से इसका अनुपालन सुनिश्चित हो सके। हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि जिन नौकरशाहों और सरकारी कर्मचारियों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढे उनके वेतन से फ़ीस के बराबर की कटौती करके उसे प्राथमिक विद्यालयों के विकास में लगाएं। आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने शिवकुमार पाठक और अन्य की याचिका पर दिया।





उत्तर प्रदेश के जूनियर और सीनियर बेसिक स्कूलों की दुर्दशा पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त कदम उठाया है। कोर्ट ने कहा है कि जब तक जनप्रतिनिधियों, नौकरशाहों व अन्य उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों, न्यायाधीशों के बच्चे प्राइमरी स्कूलों में अनिवार्य रूप से नहीं पढ़ेंगे तब तक इन स्कूलों की दशा नहीं सुधरेगी।
हाईकोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि वह अन्य अधिकारियों से परामर्श कर यह सुनिश्चित करें कि सरकारी, अद्र्ध सरकारी सेवकों, स्थानीय निकायों के जनप्रतिनिधियों, न्यायपालिका एवं सरकारी खजाने से वेतन, मानदेय या धन प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करें। ऐसा न करने वालों के खिलाफ दंडात्मक उपबन्ध किए जाएं। यदि कोई कान्वेन्ट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजे तो उस स्कूल में दी जाने वाली फीस के बराबर धनराशि उसके द्वारा सरकारी खजाने में प्रतिमाह जमा कराई जाए। साथ ही ऐसे लोगों का इन्क्रीमेन्ट, प्रोन्नति कुछ समय के लिए रोकने की व्यवस्था हो। कोर्ट ने राज्य सरकार को 6 माह के भीतर ऐसी व्यवस्था करने का आदेश देते हुए कहा है कि अगले शिक्षा सत्र से इसे लागू किया जाए।

यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने शिव कुमार पाठक व कई अन्य की याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने प्रदेश के एक लाख 40 हजार जूनियर व सीनियर बेसिक स्कूलों में अध्यापकों के दो लाख 70 हजार खाली पदों सहित स्कूलों में पानी आदि मूलभूत सुविधाएं मुहैया न होने पर तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि प्रदेश में तीन तरह की शिक्षा व्यवस्था है। अंग्र्रेजी कान्वेन्ट स्कूल, मध्यमवर्ग के प्राइवेट स्कूल तथा उ.प्र. बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित सरकारी स्कूल। अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढऩे के लिए अनिïवार्य न करने से इन स्कूलों की दुर्दशा है। इनमें न योग्य अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधाएं है। कोर्ट ने मुख्य सचिव से 6 माह बाद कृत कार्यवाही की रिपोर्ट 

मांगी।
सरकारी कर्मियों और सांसद, विधायक एवं आईएएस के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे,सरकारी वेतन पाने वालों के लिए हाईकोर्ट का आदेश Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी on 5:54 PM Rating: 5

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