शिक्षक एक और काम अनेक,कैसे होगी पढ़ाई
- गुरुजी ही नहीं रहेंगे तो कैसे होगी पढ़ाई
- शिक्षक एक और काम अनेक
- एक ही शिक्षक के भरोसे पूरा स्कूल
लखनऊ
(ब्यूरो)। प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता पर हाईकोर्ट की टिप्पणी
ने बेसिक शिक्षा विभाग की व्यवस्था पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। कोर्ट ने
स्पष्ट तौर पर कहा है कि प्राइमरी स्कूल की पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले
33 प्रतिशत छात्र कक्षा एक के टेस्ट भी पास करने के लायक नहीं है। जानकारों
की मानें तो प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता व्यवस्था की
प्राथमिकता में है ही नहीं।
हाईकोर्ट की टिप्पणी पर राजधानी के स्कूलों की पड़ताल
- शिक्षक एक और काम अनेक
क्वींस
कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. आरपी मिश्र कहते हैं कि प्राइमरी स्कूल के एक
शिक्षक के जिम्मे करीब 15 काम हैं। इसमें निर्वाचन में बीएलओ ड्यूटी,
पर्यवेक्षक ड्यूटी, पल्स पोलियो अभियान, शासन कार्ड बनाने, जनगणना, आर्थिक
गणना, स्वास्थ्य विभाग के योजनाएं, लैपटॉप वितरण जैसी कल्याणकारी योजनाएं,
मिड-डे मील वितरण, स्कूल भवन निर्माण कार्य, छात्रवृत्ति वितरण, पुस्तक
वितरण, बैग वितरण, यूनिफॉर्म वितरण, बोर्ड परीक्षा ड्यूटी और बाल गणना सहित
तमाम अन्य काम शामिल हैं। डॉ. मिश्र कहते हैं बेसिक शिक्षा विभाग का जोर
पढ़ाई से ज्यादा सरकारी योजनाओं के सफल संचालन में रहता है, इसलिए शिक्षक
भी इन पर ज्यादा ध्यान देते हैं।
- एक ही शिक्षक के भरोसे पूरा स्कूल
कालीचरण
इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. महेंद्र राय कहते हैं कि एक तो पहले ही
प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। करीब 1.60 लाख बच्चों को पढ़ाने
के लिए 6221 शिक्षकों के पद सृजित किए गए हैं। इन पदों के सापेक्ष राजधानी
में कुल 4093 शिक्षक ही उपलब्ध हैं। शिक्षा विभाग के आंकड़ों पर गौर करें
तो प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाई को सुचारू रूप से चलाने
के लिए करीब 35 प्रतिशत और शिक्षकों की जरूरत है। प्राइमरी स्कूल गंगादीन
खेड़ा, प्राइमरी स्कूल हड़ियन खेड़ा समेत राजधानी के दर्जनों स्कूल सिर्फ
एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं।
शिक्षा का
अधिकार कानून में कक्षा का प्रारूप, पढ़ाने के तरीके विशेषकर पढ़ाई को रोचक
बनाने के तरीके स्पष्ट रूप से बताए गए हैं। इन पर कोई ध्यान नहीं दे रहा
है। परिषदीय स्कूलों में भाषा का शिक्षक गणित और विज्ञान पढ़ाने का काम
करता है। हमें बेहतर शिक्षकों की जरूरत है। स्कूलों में 100 दिन की कक्षाएं
भी नहीं लग पा रही हैं। यह तस्वीर नहीं बदलेगी तो सुधार नहीं होगा।
- डॉ.आशोक गांगुली,शिक्षाविद् (साभार-:-अमर उजाला)

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Reviewed by Brijesh Shrivastava
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