मानकों के फेर में फंसा शिक्षा प्रेरकों का मानदेय
- एक साल से मानदेय के इंतजार में हैं शिक्षा प्रेरक
- 25 हजार प्रेरकों को नहीं मिला मानदेय का एक भी पैसा
लखनऊ।
कभी-कभी वाह-वाही लूटने के चक्कर में केंद्र सरकार योजनाएं तो बना देती है
लेकिन उसके मानक इतने कठिन होते हैं कि उस योजना का लाभ पाना हर किसी के
लिए आसान नहीं होता। ऐसा ही हाल उत्तर प्रदेश में साक्षर भारत मिशन का है।
जिसमें लोगों को साक्षर बनाने के लिए लोक शिक्षा केंद्रों पर प्रेरक तो रख
लिए गए लेकिन सरकार ने उन्हें मानदेय देने के मानक इतने कठिन बना दिए कि
बीते एक साल से उत्तर प्रदेश के 25 हजार शिक्षा प्रेरकों को मानदेय का एक
पैसा तक नहीं मिल सका। दरअसल, 8 सितंबर 2009 को प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन
सिंह ने राष्ट्रीय स्तर पर साक्षर भारत मिशन का शुभारंभ किया था। जिसे
औपचारिक रूप से 1 अक्टूबर 2009 को लागू कर दिया गया। चूंकि वर्ष 2011 में
उत्तर प्रदेश की साक्षरता का प्रतिशत 69.72 था। इसलिए साक्षरता प्रतिशत
बढ़ाने के उद्देश्य से ग्राम पंचायतों में रहने वाले 15 से ऊपर आयु वर्ग के
सभी निरीक्षरों को बेसिक साक्षरता प्रदान करने के लिए प्रदेश के 66 जिलों
में 49,285 हजार लोक शिक्षा केंद्र खुलने का प्रस्ताव तैयार किया गया।
सरकारी रिपोर्ट केअनुसार अब तक 43423 केंद्र तो स्थापित हो गए लेकिन संचालन
सिर्फ 26378 का ही हो सका। हद तो यह है कि चयन के मानक इतने जटिल हैं कि
तीन साल में अब तक प्रत्येक ग्राम पंचायतों पर दो-दो प्रेरकों केहिसाब से
59 हजार प्रेरक ही चयनित हो सके हैं। यही नहीं इन लोक शिक्षा केंद्रों पर
चयनित प्रत्येक प्रेरक को दो-दो हजार रुपए महीने दिए जाने का प्रावधान तो
कर दिया गया। लेकिन मानदेय देने के मानक इतने कठिन बना दिए कि एक साल से 25
हजार शिक्षा प्रेरकों को एक पैसा तक नहीं मिल सका। इसके अलावा हजारों ऐसे
भी शिक्षा प्रेरक हैं जिन्हें दो साल की सेवा में मात्र एक साल का ही
मानदेय दिया गया। साक्षर भारत मिशन प्रेरक वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश
अध्यक्ष विष्णु प्रताप सिंह का कहना है कि 25 हजार शिक्षा प्रेरकों को
मानदेय का एक पैसा भी न नहीं दिया गया है।.इसके अलावा हजारों ऐसे भी शिक्षा
प्रेरक हैं जिन्हें दो साल की सेवा में मात्र एक साल का ही मानदेय दिया
गया। साक्षर भारत मिशन प्रेरक वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु
प्रताप सिंह का कहना है कि 25 हजार शिक्षा प्रेरकों को मानदेय का एक पैसा
भी न नहीं दिया गया है।
- यह है मानदेय दिए जाने की प्रक्रिया :-
साक्षर भारत मिशन में रखे गए शिक्षा प्रेरकों को मानदेय दिए जाने के
मानक काफी जटिल हैं। मानकों के मुताबिक प्रेरकों का चयन होने के बाद ग्राम
पंचायत का प्रधान और प्राथमिक विालय के प्रधानाध्यापक के संयुक्त हस्ताक्षर
से राजधानी के जवाहर भवन स्थित एसबीआई में खाता खोला जाता है। यदि इस
दौरान शिक्षक का तबादला हो जाता है तो फिर से पूरी प्रक्रिया की जाती है और
हस्ताक्षर के लिए प्रधान और शिक्षक को बैंक अधिकारियों के सामने हस्ताक्षर
प्रमाणित कराने पड़ते हैं। इसके अलावा इसी बैंक में पूरे उत्तर प्रदेश के
प्रेरकों का खाता खोलने का प्रावधान किया गया है जिसकी वजह से काफी
दिक्कतें हैं।
- अधिकारियों का तर्क :-
साक्षरता एवं
वैकल्पिक शिक्षा निदेशक राम विशाल मिश्र भी ज्यादातर प्रेरकों को मानदेय न
मिलने की बात स्वीकार करते हैं। हालांकि उन्होंने तर्क दिया कि लखनऊ के
एसबीआई बैंक में ही खाते खोले जाने से दिक्कतें होती हैं। खाता खुलने के
बाद यदि शिक्षक या प्रधान का तबादला हो जाए तो समस्या हो जाती है। उन्होंने
बताया कि कुछ प्रेरकों को मानदेय भेजा गया है। वैसे इस समस्या को भी जल्द
ही हल कर लिया जाएगा। (साभार-:-डेली न्यूज एक्टिविस्ट)
मानकों के फेर में फंसा शिक्षा प्रेरकों का मानदेय
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
9:14 AM
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