सूबे में कार्रवाई के भय से शिक्षक चंदे और उधारी से जुटा रहे मिड डे मील का दूध, सुलतानपुर में अब तक 220 प्रधानाध्यापक प्रतिकूल प्रविष्टि पा चुके


  • चंदे और उधारी से जुटा रहे मिड डे मील का दूध
‘मिड डे मील’ में हर बुधवार को बच्चों को 200 मिलीलीटर दूध देने की योजना हिचकोले खा रही है। 15 जुलाई से प्रदेश के कक्षा आठ तक के विद्यालयों में शुरू इस योजना की जमीनी हकीकत जानने के लिए ‘हिन्दुस्तान’ ने पड़ताल की तो सामने आया कि कार्रवाई के भय से शिक्षक कहीं चंदा कर दूध का इंतजाम कर रहे हैं तो कहीं एनजीओ के भरोसे इसे खींचा जा रहा है। सीधे तौर पर बजट आावंटित न होने से यह मुश्किल में हैं। दूध ताजा रखने के भी स्कूलों में कोई इंतजाम नहीं है। मिलावट का खौफ भी है। 


ये अलग बात है कि जिले के शिक्षा अधिकारी योजना की सफलता के दावे कर रहे हैं। वहीं कई अभिभावकों की नजर में योजना अच्छी है तो अनेक की नजर में महज ढोंग। वे कहते हैं दो सौ ग्राम दूध कौन सा असली मिल रहा है। किसी तरह किया जा रहा ‘मैनेज’ : इलाहाबाद में शिक्षक चंदा कर या अपनी जेब से, छुट्टी के दिनों में बचने वाली कनवर्जन कास्ट के जरिये दूध बांटने के काम को मैनेज कर रहे हैं। कई स्कूलों में छात्रों की संख्या भी ज्यादा दिखाई गई है और मौजूदगी कम छात्रों की होती है। इससे भी खर्च मैनेज हो रहा है। वहीं वाराणसी में खर्च को लेकर अधिकतर स्कूलों में विवाद की स्थिति है। 


  • गोरखपुर में शिक्षकों की नजर में दूध लेने से भी ज्यादा झंझटी काम है उसे ताजा या ठीक रखना और किसी बच्चे को बीमार न होने देना। ग्वालों की मिन्नतें की जा रही है कि पानी भले मिला दें मगर मिलावटी दूध न दें।
  • मेरठ में डीएम पंकज यादव ने पराग डेयरी से बेसिक शिक्षा विभाग को दो महीने के उधार पर दूध की व्यवस्था कराई है। जहां एनजीओ सीधे दूध दे रहे हैं उनका पेमेंट अभी रुका है।
  • आगरा मंडल में दूध के लिए शिक्षक या तो चंदा कर रहे हैं या एकाध जगह प्रधानाध्यापक अपनी ओर से व्यवस्था करता दिख रहा है। आगरा में शिक्षकों का इस पर एक माह में 74 लाख रुपए खर्च हो चुका है, लेकिन उन्हें मिला एक धेला भी नहीं।
  • बरेली में दूध की कमी पड़ने पर उसकी भरपाई पानी मिलाकर की जा रही है। स्कूलों में दूध को ताजा रखने के इंतजाम भी नहीं है। सुबह दूध मंगाकर तुरंत बांट दिया जाता है। ग्रामीण कहते हैं कि योजना तो अच्छी है बशर्ते सही से लागू हो।
  • अवध में तो मिड डे मील में दूध की योजना गहरी परीक्षा से गुजर रही है। रायबरेली, गोण्डा, सीतापुर हो या फैजाबाद सभी जगह इसे शिक्षक गले की फांस ही समझ रहे हैं। सीतापुर में तो प्राथमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष राजकिशोर सिंह कहते हैं कि उन्होंने दूध बांटना बंद कर दिया है। मिलावटी दूध बांटने से क्या फायदा।
  • कार्रवाई का भय भी: सुलतानपुर में डीएम अदिति सिंह की ओर से गठित 245 अधिकारियों की टीम की जांच में दूध न पिलाने व बच्चों को कढ़ी और चावल खिलाने वाले 220 प्रधानाध्यापकों को प्रतिकूल प्रविष्टि मिली है। हालांकि प्राथमिक शिक्षक संघ अभी भी बच्चों को दूध के बाद कोफ्ता के साथ चावल दिए जाने का बहिष्कार करने पर अड़ा है।
  • अलीगढ़ में एनजीओ संचालकों का कहना है कि शासन ने जूनियर हाईस्कूल के लिए 5.64 रुपये और प्राइमरी स्कूल के लिए 3.76 रुपये कनवजर्न कास्ट निर्धारित कर रखी है। ऐसे में नौनिहालों को दूध बांट पाना नामुमकिन है। साथ ही दूध को उबालने और चीनी मिलाने में लागत काफी बढ़ जाती है।


खबर साभार :  हिन्दुस्तान

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सूबे में कार्रवाई के भय से शिक्षक चंदे और उधारी से जुटा रहे मिड डे मील का दूध, सुलतानपुर में अब तक 220 प्रधानाध्यापक प्रतिकूल प्रविष्टि पा चुके Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी on 10:02 AM Rating: 5

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