देहाती स्कूलों को स्मार्ट बनाने के लिए उन्हें फाइव स्टार का दर्जा दे दे और उनका मीनू संसद की कैंटीन की तरह हाई-फाई नहीं, तो कम से कम वाई-फाई ही कर दे
कोफ्ते से कोफ्त
(एमडीएम पर व्यंग)
मिड
डे मील में जब से बच्चों को दूध के साथ कोफ्ता मिलने लगा है, वे स्कूल
नहीं आ रहे। इससे केवल मुझे नहीं, बल्कि सरकार को भी चिंता होने लगी है कि
ये बच्चे आखिर क्या खाकर संतुष्ट होंगे? उन्हें अंडा दिया गया, तो कुछ
बच्चे बिदक गए कि यह मांसाहार है। कढ़ी की जगह कोफ्ते की व्यवस्था की गई,
तो बच्चे स्कूल ही नहीं आ रहे। ऊपर से लोग शोर मचा रहे हैं कि मिड डे मील
का दूध पीकर बच्चे सामूहिक रूप से बीमार पड़ रहे हैं। इसी तरह कढ़ी की जगह
कोफ्ता का आदेश जारी तो हो गया है, पर कई जगह अभी यह मुल्तवी है, क्योंकि
कोफ्ता बनाने वाले ही नहीं मिल रहे। देहाती रसोइयों को तो पल्ले ही नहीं पड़
रहा कि यह कोफ्ता भला किस बला का नाम है। कोई इसे विदेशी डिश समझ रहा है,
तो कोई पोलियो की दवा।
पड़ोस में रहने वाले
एक उर्दू शायर से जब मैंने पूछा कि यह कोफ्ता कहां से आया, तो उन्होंने
मुझे अजीब ढंग से घूरकर देखा। फिर परेशान होकर बोले कि मुझसे ऐसे सवाल
क्यों पूछ रहे हो? मुझे बड़ी कोफ्त हो रही है। इस पर मैं समझ गया कि यह
कोफ्ता जरूर कोफ्त का बड़ा भाई होगा। मलाई कोफ्ता तो कोफ्त का दामाद होता
होगा। अब देखिए न, इसे बनाने में रसोइयों को भी कोफ्त हो रही है। लेकिन मिड
डे मील से कढ़ी हटाकर कोफ्ता क्यों रख दिया गया, यह मेरी समझ से बाहर है।
इससे तो अच्छा होता, सरकार इन बच्चों में पनीर बंटवा देती। पनीर का नाम
सुनते ही बड़े-बड़ों के मुंह में पानी आने लगता है। पनीर अगर शाही हो, तो फिर
क्या कहने! आदमी इसे खाकर खुद को शहंशाह से कम नहीं समझता।
जब मिड डे मील
में खर्च बढ़ गया है, और बच्चों का स्वास्थ्य भी प्राथमिकता में है, तो फिर
थोड़ा स्मार्ट क्यों न हुआ जाए? कोफ्ते की जगह पनीर आ जाए, तो मिड डे मील
खाने वाले बच्चे भी स्मार्ट हो जाएं। कमेटी को चाहिए कि अब देहाती स्कूलों
को स्मार्ट बनाने के लिए उन्हें फाइव स्टार का दर्जा दे दे और उनका मीनू
संसद की कैंटीन की तरह हाई-फाई नहीं, तो कम से कम वाई-फाई ही कर दे।
साभार : मूलचंद गौतम
@ अमर उजाला
देहाती स्कूलों को स्मार्ट बनाने के लिए उन्हें फाइव स्टार का दर्जा दे दे और उनका मीनू संसद की कैंटीन की तरह हाई-फाई नहीं, तो कम से कम वाई-फाई ही कर दे
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
7:42 AM
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