परिषदीय विद्यालयों की कान्वेंट से जोरदार टक्कर की तैयारियों में पलीता लगाया कक्षोन्नति के आदेश ने
इलाहाबाद : गर्मी की छुट्टियों में बच्चों को गृह कार्य, 14 मई को पूर्व छात्र-छात्रा सम्मेलन, दिसंबर के पहले सप्ताह में खेलकूद प्रतियोगिता व हर बुधवार स्वास्थ्य व स्वच्छता पर जोर। ऐसे ही तमाम प्रकार के अनूठे प्रयोग इस बार से बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों में लागू हो रहे हैं। यह सारी कवायद ‘सरकारी’ स्कूल के नाम से पुकारे जाने वाले विद्यालयों में इसलिए हो रही है, ताकि वहां भी पठन-पाठन का ऐसा माहौल बने कि कान्वेंट की पढ़ाई व प्रबंधन पीछे रह जाए।
इन जोरदार तैयारियों में कक्षोन्नति के आदेश ने मानो पलीता लगा दिया है। इससे तो छात्र-छात्रओं, शिक्षक व अभिभावकों को यही संदेश जा रहा है कि पढ़ें या पढ़ाएं भले न, पास होने की गारंटी जरूर है।
बेसिक शिक्षा परिषद के विद्यालयों में पढ़ाई को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। सर्व शिक्षा अभियान लागू होने के बाद से करोड़ों का धन खर्च करके संसाधन बढ़ाने के अलावा तमाम प्रयोग किए गए। इससे शिक्षक व विद्यालयों की दशा जरूर सुधर गई, लेकिन जिनके लिए सब जतन हुए लाभ वहां तक नहीं पहुंचा। कुछ वर्षो से शैक्षिक कैलेंडर जारी करके पढ़ाई कराने का प्रयास हुआ। पहले किस महीने तक में क्या पढ़ाया जाना है, यह तय होता रहा है, लेकिन इस बार किस माह में किस दिन क्या होना है यह भी तय हुआ है। इस पर अमल करने के कड़े निर्देश हैं, साथ ही शैक्षिक कैलेंडर का प्रचार-प्रसार इसलिए खूब हो रहा है, ताकि अभिभावक व जागरूक लोग विद्यालयों में कैलेंडर के मुताबिक कार्य होने की उम्मीद करें और स्कूलों की पूरी निगरानी करते रहें। इससे बेहतर होने की उम्मीद भी बंधी है।
इसकी ठोस शुरुआत पिछले दिनों प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्कूलों की परीक्षा से हुई है। इस तरह से इम्तिहान कराने के इंतजाम किए गए, उससे यूपी बोर्ड परीक्षा की चमक फीकी पड़ी है। उसी तरह रिपोर्ट कार्ड भी समय पर बांटा गया। इसी बीच बेसिक शिक्षा विभाग के एक बड़े अधिकारी ने नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 का उल्लेख करते हुए पत्र जारी किया है। इसमें कहा गया है, जो बच्चे नियमित परीक्षा में शामिल नहीं हो सके, उनका टेस्ट कराकर फिर मौका दिया जाए।
किसी भी दशा में किसी को फेल या फिर उसी कक्षा में रोका नहीं जाएगा, बल्कि कक्षोन्नति दी जाएगी। इससे यही संदेश फिर गया है कि आखिर ऐसी परीक्षा के तामझाम से क्या फायदा हुआ जिसमें सबको उत्तीर्ण करना ही है। हालांकि बच्चों को कान्वेंट स्कूलों में भी फेल न करने के निर्देश हैं, लेकिन वहां यह प्रचारित नहीं होता कि पास किया ही जाना है। साथ ही पढ़ाई एवं अन्य क्रियाकलापों पर सबका पूरा जोर रहता है।
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