‘मेन्यू’ बदलकर एमडीएम संस्थाएं भर रहीं जेबें, जांच के बावजूद हो गया दागी संस्थाओं का भुगतान
मात्र स्पष्टीकरण मांगकर पूरी की जाती है जांच
गरीब बच्चों को प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने के लिए प्रेरित करने व शिक्षित करने के लिए चलायी जा रही केन्द्र सरकार की मिड डे मील (एमडीएम) योजना कुछ संस्थाओं के लिए मात्र जेबें भरने का साधन बन गयी हैं। एनजीओ की लापरवाही से न केवल स्कूली बच्चों को घटिया खाना परोसने बल्कि ‘‘मेन्यू’ बदलकर बच्चों को खाना खिलाने वाली राजधानी की चार संस्थाओं पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
आरोप है कि एमडीएम की निगरानी के लिए लगाये गये अधिकारी न केवल इन संस्थाओं पर उदार हैं बल्कि वे महत्वपूर्ण मामलों में स्पष्टीकरण मांगकर ही काम चलाते हैं और लाखों रुपये का भुगतान कर दे रहे हैं।
नगरीय क्षेत्रों में खाना बांट रहीं संस्थाओं का हाल सर्वाधिक बुरा है। शहर व ग्रामीण क्षेत्र के कुछ इलाकों के करीब 45,000 बच्चों को खाना परोस रहीं इन संस्थाओं के पास न तो अत्याधुनिक मशीने हैं और न ही कहीं और काम करने का अनुभव। कागजों पर चाक-चौबन्द व्यवस्था दिखाने वाली इन संस्थाओं को नगरीय क्षेत्रों में खाना परोसने का काम सौंप दिया गया। इन संस्थाओं ने भी अपनी मनमानी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संस्थाओं के ठेकेदार शासन द्वारा दिये गये ‘‘मेन्यू’ को ही बदल दे रहे हैं तो वहीं बच्चों की संख्या में भी खासा गड़बड़ी कर भुगतान ले रहे हैं।
पिछले वर्ष 15 जुलाई से नया मेन्यू जारी करते हुए मध्यान्ह भोजन प्राधिकरण ने भले ही सोमवार व बृहस्पतिवार को रोटी व सब्जी का प्राविधान किया हो, लेकिन राजधानी में करीब पांच हजार बच्चों को खाना बांट रही संस्था उन्मेष, फेयरडील ग्रामोद्योग, शाश्वत सेवा संस्थान व अवध ग्राम सेवा संस्थान ने जुलाई, अगस्त, सितम्बर व अक्टूबर के महीनों में दलिया बांटकर लाखों रुपये जेब में रखे। मजेदार बात यह है कि स्कूलों के रजिस्टर में भी वही दर्ज किया गया है, इसके बाद भी वे पूरा भुगतान लेने में सफल रहे हैं। लाखों रुपये के इन बिलों को इसी 31 मार्च 2016 को को भुगतान कर दिया गया है।
वहीं डीएम राजशेखर के आदेश पर खाने में कीड़ा पाये जाने पर छत्तीसगढ़ सामाजिक सेवा संस्थान को काली सूची में डाल दिया गया है। इस बाबत बीएसए प्रवीण मणि त्रिपाठी ने बताया कि इस संस्था की भी अभी तक जांच रिपोर्ट नहीं आ पायी है, लेकिन पिछला भुगतान कर दिया गया है।
आरोप है कि एमडीएम की निगरानी के लिए लगाये गये अधिकारी न केवल इन संस्थाओं पर उदार हैं बल्कि वे महत्वपूर्ण मामलों में स्पष्टीकरण मांगकर ही काम चलाते हैं और लाखों रुपये का भुगतान कर दे रहे हैं।
नगरीय क्षेत्रों में खाना बांट रहीं संस्थाओं का हाल सर्वाधिक बुरा है। शहर व ग्रामीण क्षेत्र के कुछ इलाकों के करीब 45,000 बच्चों को खाना परोस रहीं इन संस्थाओं के पास न तो अत्याधुनिक मशीने हैं और न ही कहीं और काम करने का अनुभव। कागजों पर चाक-चौबन्द व्यवस्था दिखाने वाली इन संस्थाओं को नगरीय क्षेत्रों में खाना परोसने का काम सौंप दिया गया। इन संस्थाओं ने भी अपनी मनमानी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संस्थाओं के ठेकेदार शासन द्वारा दिये गये ‘‘मेन्यू’ को ही बदल दे रहे हैं तो वहीं बच्चों की संख्या में भी खासा गड़बड़ी कर भुगतान ले रहे हैं।
पिछले वर्ष 15 जुलाई से नया मेन्यू जारी करते हुए मध्यान्ह भोजन प्राधिकरण ने भले ही सोमवार व बृहस्पतिवार को रोटी व सब्जी का प्राविधान किया हो, लेकिन राजधानी में करीब पांच हजार बच्चों को खाना बांट रही संस्था उन्मेष, फेयरडील ग्रामोद्योग, शाश्वत सेवा संस्थान व अवध ग्राम सेवा संस्थान ने जुलाई, अगस्त, सितम्बर व अक्टूबर के महीनों में दलिया बांटकर लाखों रुपये जेब में रखे। मजेदार बात यह है कि स्कूलों के रजिस्टर में भी वही दर्ज किया गया है, इसके बाद भी वे पूरा भुगतान लेने में सफल रहे हैं। लाखों रुपये के इन बिलों को इसी 31 मार्च 2016 को को भुगतान कर दिया गया है।
वहीं डीएम राजशेखर के आदेश पर खाने में कीड़ा पाये जाने पर छत्तीसगढ़ सामाजिक सेवा संस्थान को काली सूची में डाल दिया गया है। इस बाबत बीएसए प्रवीण मणि त्रिपाठी ने बताया कि इस संस्था की भी अभी तक जांच रिपोर्ट नहीं आ पायी है, लेकिन पिछला भुगतान कर दिया गया है।
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- चेतावनी देकर छोड़ा गया है संस्थाओं को : प्रवीण मणि
‘मेन्यू’ बदलकर एमडीएम संस्थाएं भर रहीं जेबें, जांच के बावजूद हो गया दागी संस्थाओं का भुगतान
Reviewed by Brijesh Shrivastava
on
6:30 AM
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