दूध पिलाने का खर्च कैसे पूरा करेगी प्रदेश सरकार, हाइकोर्ट ने पूछा : याचिका पर अगली सुनवाई छह अगस्त को



हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से पूछा है कि जूनियर हाईस्कूलों व प्राथमिक विद्यालयों में बुधवार के दिन बच्चों को दूध पिलाने में आने वाली लागत किस तरह पूरा करेगी। कोर्ट ने इसके ंिलए प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा से जवाबी हलफनामा मांगा है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. डीवाई चंद्रचूड एवं न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने दिया है।

कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में दूध की कीमत 48 रुपए प्रति लीटर है। ऐसे में प्रदेशभर के प्राइमरी व जूनियर हाई स्कूलों में प्रत्येक बुधवार हरेक बच्चे को 200 मिली दूध पिलाने पर आने वाला खर्च भोजन की लागत से काफी अधिक हो रहा है। ऐसे में कनवजर्न कास्ट में बढ़ोतरी किए बगैर यह योजना कैसे सफल हो सकती है। कानपुर के विनय कुमार ओझा की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने प्रदेश के प्राइमरी व जूनियर हाईस्कूलों में प्रत्येक बुधवार को बच्चों को भोजन की ही लागत में दूध पिलाने की योजना लागू की है। इस पर भोजन से कहीं ज्यादा लागत आएगी लेकिन सरकार से कनवजर्न कास्ट में बढ़ोतरी नही की है। कोर्ट इस याचिका पर अब चार अगस्त को सुनवाई करेगी। 

‘हिन्दुस्तान’ इस मुद्दे को खबरों के जरिए प्रमुखता से उठा चुका है।्र शाहजहांपुर के गुरुनानक पाठशाला कन्या जूनियर हाईस्कूल की ओर से दाखिल याचिका पर एकल पीठ प्राथमिक व जूनियर हाईस्कूलों के बच्चों को बुधवार को दूध पिलाने की योजना की जानकारी मांग चुका है। कोर्ट ने उस याचिका में यह सवाल उठाया है कि एक दिन में लाखों बच्चों को पिलाने के लिए इतना दूध कहां से आएगा। 

साभार : हिंदुस्तान 
इलाहाबाद (ब्यूरो)। प्राथमिक और जूनियर हाईस्कूल के बच्चों को सप्ताह के प्रत्येक बुधवार को दूध पिलाने की योजना को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिका में प्रदेश सरकार की इस योजना में तमाम खामियां गिनाई गईं हैं। दूध पिलाने पर आने वाली लागत पर भी सवाल उठाए गए हैं। जनहित याचिका की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायमूर्ति डा. डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने सचिव बेसिक शिक्षा से पूछा है कि योजना को लागू करने के लिए बजट का सरकार के पास क्या प्रबंध है। किस प्रकार से इतनी बड़ी संख्या में बच्चों को सुरक्षित और शुद्ध दूध पिलाया जा सकेगा। इस पर आने वाले खर्च का प्रबंध कहां से और कैसे होगा।
खंडपीठ ने सरकार से जानना चाहा है कि 48 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से दूध है और एक बच्चे को 200 एमएल दूध पिलाने पर होने वाला खर्च मिड डे मील की कन्वर्जन कास्ट से अधिक है। ऐसे में बिना बजट बढ़ाए सरकार इस योजना को कैसे पूरा कर पाएगी। याचिका कानपुर के विनय कुमार ओझा ने दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि दूध पिलाने पर होने वाला खर्च भोजन से अधिक आ रहा है, जबकि सरकार ने कन्वर्जन कास्ट नहीं बढ़ाई है। इस स्थिति में बच्चों को दूध पिलाने की योजना खटाई में पड़ सकती है। याचिका पर अगली सुनवाई छह अगस्त को होगी।


खबर साभार : अमर उजाला

दूध पिलाने की लागत कैसे पूरा करेगी सरकार

मिड-डे-मील पर हाईकोर्ट ने सचिव से पूछे सवाल

इलाहाबाद (वि.सं.)। प्रदेश के जूनियर हाईस्कूलों व प्राथमिक विद्यालयों में बुधवार के दिन भोजन की जगह बच्चों को 200 मिलीग्राम दूध देने की सरकारी अधिसूचना को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। इस अधिसूचना के खिलाफ सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश डॉ. डी.वाई. चन्द्रचूड़ व न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा से पूछा है कि वह बताये कि सरकार दूध देने की इस योजना में आने वाली लागत को किस तरह से पूरा करेगी। न्यायालय का कहना था कि दूध की कीमत प्रदेश में 48 रुपया लीटर है ऐसे में दो सौ मिलीग्राम प्रत्येक बुधवार को बच्चों को स्कूल में दूध पिलाने पर आने वाला व्यय भोजन की लागत से अधिक हो रहा है। कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि वह बताये कि कन्वर्जन कास्ट में बढ़ोतरी किये बगैर बच्चों को दूध पिलाने की यह सरकारी नीति कैसे सफल हो सकती है। जनहित याचिका कानपुर के विनय कुमार ओझा ने दायर की है। इनका कहना है कि सरकार ने भोजन की ही लागत में दूध पिलाने की नई योजना लागू की है, जबकि इस पर आने वाली लागत में बढ़ोतरी नहीं की गई है। कोर्ट इस याचिका पर चार अगस्त को सुनवाई करेगी।
खबर साभार : डेली न्यूज एक्टिविस्ट


आखिर कैसे मिलेगा बच्चों को दूध
इलाहाबाद : प्राथमिक व जूनियर हाईस्कूलों में बुधवार को भोजन की जगह बच्चों को 200 मिलीग्राम दूध देने की सरकारी अधिसूचना को एक जनहित याचिका में चुनौती दी गई है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर बेसिक शिक्षा के प्रमुख सचिव से पूछा है कि वह बताएं कि सरकार दूध देने की इस योजना में आने वाली लागत को किस तरह से पूरा करेगी। मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने इस जनहित याचिका पर सुनवाई की। न्यायालय का कहना था कि दूध की कीमत प्रदेश में 48 रुपया लीटर है। ऐसे में प्रत्येक बुधवार 200 मिलीग्राम दूध पिलाने पर आने वाला व्यय भोजन की लागत से अधिक हो रहा है। कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि वह बताए कि कन्वर्जन कॉस्ट में बढ़ोत्तरी किए बगैर बच्चों को दूध पिलाने की यह सरकारी नीति कैसे सफल हो सकती है। जनहित याचिका कानपुर के विनय ओझा ने दायर की है।

खबर साभार : दैनिक जागरण
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा से पूछा है कि सरकार स्कूलों में दूध पिलाने में आने वाली लागत कैसे पूरी करेगी। चीफ जस्टिस डॉ डीवीई चंद्रचूड और जस्टिस यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने कहा है कि प्रदेश में दूध की कीमत 48 रुपये प्रति लीटर है। सरकार ने हर बच्चे को बुधवार को 200 एमएल दूध देने का फैसला किया है, लेकिन इसपर होने वाला खर्च मिड-डे मील की लागत से अधिक हो रहा है। कोर्ट ने पूछा है कि कन्वर्जन कास्ट बढ़ाए बिना बच्चों को दूध पिलाने की नीति कैसे सफल हो सकती है।

प्रदेश सरकार ने जूनियर हाईस्कूल और प्राथमिक विद्यालयों में बुधवार को बच्चों को 200 मिली दूध देने की सरकारी अधिसूचना जारी की थी। इस दूध पिलाने की योजना पर हाई कोर्ट ने प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा से पूछा कि दूध की लागत कैसे पूरा करेगी सरकार?

योजना पर कानपुर के विनय कुमार ओझा ने एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि सरकार ने मिड-डे मील की ही लागत में दूध पिलाने की नई योजना लागू की है, जबकि इस पर आने वाली लागत में बढ़ोतरी नहीं की गई है। कोर्ट इस याचिका पर 4 अगस्त को सुनवाई करेगी।




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दूध पिलाने का खर्च कैसे पूरा करेगी प्रदेश सरकार, हाइकोर्ट ने पूछा : याचिका पर अगली सुनवाई छह अगस्त को Reviewed by Brijesh Shrivastava on 8:20 AM Rating: 5

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