विफलता का ढोल पीटा जा रहा है तो सफलता की शहनाई क्यों नहीं? आलोचना की थाप है तो प्रोत्साहन की स्वर लहरी क्यों नहीं? : फोटो व ब्लॉग रिपोर्ट
शिक्षक
समाज की उपस्थिति में हम फतेहपुरी साथी शिक्षक द्वारा एक संक्षिप्त चर्चा
की गयी। इस अतिमहत्वपूर्ण और सामयिक चर्चा का शीर्षक था -'सम्पूर्ण
व्यवस्था की खामियों का ठीकरा शिक्षकों के मत्थे' - कितना प्रासंगिक? कितना
प्रमाणिक?
मीडिया
और समाज की नज़र में पिछले कुछ समय से शिक्षकों की छवि बिगाड़ी जा रही है।
शिक्षा का अधिकार कानून -2009 आने के बाद से वास्तव में हमारा शिक्षा जगत
कई आमूल-चूल परिवर्तनों का गवाह बना है। इस बीच कई ऐसी उपलब्धियाँ भी हासिल
की गयी है जिसे नजरंदाज़ नहीं किया जा सकता पर हुआ क्या है? किसे याद है ये
सब? हम सब ने मिल कर इन्ही की पड़ताल की उन कारणों को जांचा / चिन्हित
किया। और इसके अतिरिक्त और भी मुद्दों के लिए हमेशा की तरह हम सब ने मिलकर
इन्हें चुना, बुना और निर्धारित किया।
सवाल जो उभरे वह जो चुभते हैं .....कुछ निष्कर्ष
- विफलता का ढोल पीटा जा रहा है तो सफलता की शहनाई क्यों नहीं?
- आलोचना की थाप है तो प्रोत्साहन की स्वर लहरी क्यों नहीं?
- गिरावट सभी जगह है तो शिक्षक सबसे आसान और सबसे शिकार क्यूं?
- विज्ञापनों का माल खाये बैठे मीडिया को शिक्षक ही क्यों नजर आ रहे हैं .... कहीं यहाँ से माल खा ना पाने की टीस तो नहीं ?
- जिस स्तर और वातावरण पर हम कार्य करते हैं ...... उनका जिक्र करने में हिचक क्यों?
- कभी प्रशासन और शैक्षिक नीतियों की भी समीक्षा की है ?
- विद्यालयों में गुणवत्ता यदि केवल शिक्षक के मत्थे ही है तो ऐसी कोरी समझ वालों को लोकतंत्र का चौथा खम्भा समझे जाने में चाहे जिसे गर्व हो मुझे तो शर्म आती है!
- शासन/प्रशासन और मीडिया की ऐसी तथ्यविहीन कोशिशें केवल एक ऐसी कार को दिमाग में लाती है
- जिसमे केवल शिक्षक रूपी पहिये को ही फुलाने की कोशिश की जा रही है ...... यह उस कार की चाल को और भी उलटा-पुल्टा करने के अलावा और कुछ नहीं ! ध्यान दीजियेगा कि कहीं पहिया पंचर हो गया तो गाडी वहीं की वहीं ना खडी रह जाए?
- ध्यान दीजिये जिस व्यवस्था में ४५% विद्यालय में दो शिक्षक, ३०% से अधिक एकल विद्यालय हो और १५% शिक्षक विहीन विद्यालय हों उस व्यवस्था से गुणवत्ता की आस लगाना ओस को चाट प्यास बुझाने जैसी कोशिश तो नहीं?
- मीडिया जो स्वयं पेड न्यूज की बीमारी से ग्रस्त है ..... कहीं वह हम आप से भी तो अपनी तिजोरी भरने की कोशिश तो नहीं कर रहा है ?
- हम मानते हैं कि समस्याएं हैं कभी सार्थक कोशिश हुई हैं उन समस्यायों के मूल में जाने की ?
- हम शिक्षकों को कभी शैक्षिक नीतियों को बनाने में साझी किया गया है ? कभी हमसे इस व्यवस्था के बारे में फीडबैक लिया गया है?
- अक्सर यह कहा जाता है कि हमारे शिक्षक अपने ही बच्चे को बेसिक शिक्षा के स्कूलों में क्यूं नहीं पढ़ाते हैं? कभी यह सवाल इन्ही स्कूलों के लिए शैक्षिक नीतियाँ बनाने वाले नेताओं /सांसदों/विधायकों/ नौकरशाहों और शैक्षिक अधिकारियों से पूछा गया है?
- जाहिर सी बात है यदि हमें निर्धारण का अधिकार नहीं है तो यह जवाबदेही सबकी है केवल शिक्षक की ही नहीं?
- समाज से अलग शिक्षकों से यह आशा क्यूं कि हम शिक्षक समाज के गिरावट के दुष्प्रभावों से मुक्त रहें ?
विफलता का ढोल पीटा जा रहा है तो सफलता की शहनाई क्यों नहीं? आलोचना की थाप है तो प्रोत्साहन की स्वर लहरी क्यों नहीं? : फोटो व ब्लॉग रिपोर्ट
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
8:01 AM
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