प्राथमिक शिक्षा कि दुर्दशा के लिए केवल अध्यापक ही दोषी नहीं ~ प्रेम लोधी
'शिक्षकों के विचार' की आज की कड़ी में प्रस्तुत हैं जिला फतेहपुर में शिक्षक प्रेम लोधी जी के विचार ........ आशा है की यह कालम आपको पसंद भी आयेगा और आपके विचारों को भविष्य में और परिमार्जित करने में मदद करेगा? विचारों का क्रम भले ही उतना स्पष्ट ना हो पर मेरा मानना है की अपनी बात को स्पष्ट करने में वह सफल रहे हैं ........ आशा है कि सम्बंधित माननीयों को उनके द्वारा उठाये गए मुद्दे संबोधित करने में सफल रहेंगे? ~ (ब्लॉग एडमिन)
आजकल हमारे जनपद फतेहपुर में अधिकारियों और मीडिया द्वारा प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने के लिए को चलाये जा रहे सघन अभियान में प्राथमिक शिक्षा में व्याप्त कमियों का जो ठीकरा केवल प्राथमिक शिक्षकों के सिर फोड़ा जा रहा है , वह पूरी तरह से एकतरफा है और सारे शिक्षकों की गलत तस्बीर पेश कर रहा है जिससे अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान अध्यापकों में बड़ा क्षोभ है!
यह बात सही है कि आज पूरे देश कि शिक्षा , चाहे वह प्राथमिक हो या माध्यमिक या उच्च शिक्षा हो , पूरी तरह से पटरी से उतरी हुई है , लेकिन यहाँ हम केवल प्राथमिक शिक्षा कि बात करें तो उसकी स्थिति बड़ी ही दयनीय है ! लेकिन इसके लिए सिर्फ शिक्षकों को ही पूरी तरह से दोषी ठहराना नितांत गलत एवं दुर्भावना पूर्ण है!
दरअसल शिक्षा एक बहुकोणीय व्यवस्था है जिसका एक कोण शिक्षक है ! अन्य कोण शैक्षिक व्यवस्था , अभिवावक .बच्चे , किताबे , पाठ्यक्रम ... आदि आते हैं ! इसलिए शिक्षा की गुणवत्ता के लिए अकेले शिक्षक को ही पूर्णरूपेण जिम्मेदार मानना सरासर नाइंसाफी है!
शिक्षा कि गुणवत्ता में ये गिरावट एक दिन में नहीं आ गयी है इसके लिए हमारी पूरी शैक्षिक व्यवस्था , अभिभावक , बच्चे एवं अध्यापक बराबर के दोषी हैं ! प्राइमरी स्कूलों की अव्यवस्थाओं से सभी परिचित हैं ! अध्यापकों की कमी , संशाधनो का अभाव , अध्यापकों को शिक्षणेत्तर कार्यों में लगाना , अभिभावकों का असहयोग , बच्चों का नियमित रूप से विद्यालय न आना , शैक्षिक अधिकारियों के नियमित निरीक्षण न होना आदि .... आदि कमियों के चलते ही आज प्राथमिक शिक्षा रसातल में पहुँच चुकी है लेकिन इसके लिए केवल अध्यापक को दोषी ठहराने और उसको ही बलि का बकरा बनाने से इसका उद्धार नहीं होने वाला है!
अधिकारी यदि वास्तव में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारना चाहते हैं तो उन्हें इसके सारे कोणों में सामंजस्यपूर्ण माहौल तैयार करना होगा और सभी की बराबर की जवाबदेही तय करनी होगी , तभी प्राथमिक शिक्षा को पटरी पर लाया जा सकता है!
एक और बात - पहली बार अधिकारी और मीडिया , दोनों प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता की बात कर रहे हैं ,यह प्राथमिक शिक्षा के लिए एक शुभ संकेत है, नहीं तो अभी तक मीडिया और आधिकारियों द्वारा सिर्फ मिड डे मील की कमियाँ , शिक्षकों का स्कूल न जाना , वजीफा और ड्रेस बितरण की कमियाँ , भवन निर्माण की खामियों की ही उजागर किया जाता था ! यह पहली बार है की इनके द्वारा शैक्षिक गुणवत्ता की बात की जा रही है , लेकिन यह काम पूरी तरह से एकपक्षीय किया जा रहा है, जिसमे न तो शिक्षकों की बात सुनी जा रही है और न ही उनको इसमें शामिल किया जा रहा है! खासकर मीडिया इसमें बिलकुल ही नकारात्मक भूमिका निभा रहा है और शिक्षा में आई गिरावट के लिए पूरी तरह से शिक्षकों को ही कटघरे में खड़ा करने शिक्षकों की गरिमा को तार-तार करने का काम कर रहा है!
मीडिया और अधिकारियों को यह बात समझनी चाहिए कि प्राथमिक शिक्षा में आई इस गिरावट में शिक्षक , अभिवावक , बच्चे , शैक्षिक अधिकारी , शैक्षिक व्यवस्था, आदि सभी बराबर के भागीदार हैं , केवल शिक्षकों के सिर इसका ठीकरा फोडना बिलकुल भी ठीक नहीं है!
आशा है , प्राथमिक शिक्षा के उन्नयन के लिए इससे जुड़े हुए सभी लोग , एक दूसरे कि टांग खींचने के बजाय कंधे से कंधा मिलाकर प्रयास करेंगे और मीडिया भी इसमें हमारा सहयोग करेगा और प्राथमिक शिक्षा एक बार फिर से अपना खोया हुआ गौरव हासिल करेगी! ~प्रेम लोधी
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प्रेम लोधी |
यह बात सही है कि आज पूरे देश कि शिक्षा , चाहे वह प्राथमिक हो या माध्यमिक या उच्च शिक्षा हो , पूरी तरह से पटरी से उतरी हुई है , लेकिन यहाँ हम केवल प्राथमिक शिक्षा कि बात करें तो उसकी स्थिति बड़ी ही दयनीय है ! लेकिन इसके लिए सिर्फ शिक्षकों को ही पूरी तरह से दोषी ठहराना नितांत गलत एवं दुर्भावना पूर्ण है!
दरअसल शिक्षा एक बहुकोणीय व्यवस्था है जिसका एक कोण शिक्षक है ! अन्य कोण शैक्षिक व्यवस्था , अभिवावक .बच्चे , किताबे , पाठ्यक्रम ... आदि आते हैं ! इसलिए शिक्षा की गुणवत्ता के लिए अकेले शिक्षक को ही पूर्णरूपेण जिम्मेदार मानना सरासर नाइंसाफी है!
शिक्षा कि गुणवत्ता में ये गिरावट एक दिन में नहीं आ गयी है इसके लिए हमारी पूरी शैक्षिक व्यवस्था , अभिभावक , बच्चे एवं अध्यापक बराबर के दोषी हैं ! प्राइमरी स्कूलों की अव्यवस्थाओं से सभी परिचित हैं ! अध्यापकों की कमी , संशाधनो का अभाव , अध्यापकों को शिक्षणेत्तर कार्यों में लगाना , अभिभावकों का असहयोग , बच्चों का नियमित रूप से विद्यालय न आना , शैक्षिक अधिकारियों के नियमित निरीक्षण न होना आदि .... आदि कमियों के चलते ही आज प्राथमिक शिक्षा रसातल में पहुँच चुकी है लेकिन इसके लिए केवल अध्यापक को दोषी ठहराने और उसको ही बलि का बकरा बनाने से इसका उद्धार नहीं होने वाला है!
अधिकारी यदि वास्तव में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारना चाहते हैं तो उन्हें इसके सारे कोणों में सामंजस्यपूर्ण माहौल तैयार करना होगा और सभी की बराबर की जवाबदेही तय करनी होगी , तभी प्राथमिक शिक्षा को पटरी पर लाया जा सकता है!
एक और बात - पहली बार अधिकारी और मीडिया , दोनों प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता की बात कर रहे हैं ,यह प्राथमिक शिक्षा के लिए एक शुभ संकेत है, नहीं तो अभी तक मीडिया और आधिकारियों द्वारा सिर्फ मिड डे मील की कमियाँ , शिक्षकों का स्कूल न जाना , वजीफा और ड्रेस बितरण की कमियाँ , भवन निर्माण की खामियों की ही उजागर किया जाता था ! यह पहली बार है की इनके द्वारा शैक्षिक गुणवत्ता की बात की जा रही है , लेकिन यह काम पूरी तरह से एकपक्षीय किया जा रहा है, जिसमे न तो शिक्षकों की बात सुनी जा रही है और न ही उनको इसमें शामिल किया जा रहा है! खासकर मीडिया इसमें बिलकुल ही नकारात्मक भूमिका निभा रहा है और शिक्षा में आई गिरावट के लिए पूरी तरह से शिक्षकों को ही कटघरे में खड़ा करने शिक्षकों की गरिमा को तार-तार करने का काम कर रहा है!
मीडिया और अधिकारियों को यह बात समझनी चाहिए कि प्राथमिक शिक्षा में आई इस गिरावट में शिक्षक , अभिवावक , बच्चे , शैक्षिक अधिकारी , शैक्षिक व्यवस्था, आदि सभी बराबर के भागीदार हैं , केवल शिक्षकों के सिर इसका ठीकरा फोडना बिलकुल भी ठीक नहीं है!
आशा है , प्राथमिक शिक्षा के उन्नयन के लिए इससे जुड़े हुए सभी लोग , एक दूसरे कि टांग खींचने के बजाय कंधे से कंधा मिलाकर प्रयास करेंगे और मीडिया भी इसमें हमारा सहयोग करेगा और प्राथमिक शिक्षा एक बार फिर से अपना खोया हुआ गौरव हासिल करेगी! ~प्रेम लोधी
प्राथमिक शिक्षा कि दुर्दशा के लिए केवल अध्यापक ही दोषी नहीं ~ प्रेम लोधी
Reviewed by प्रवीण त्रिवेदी
on
11:09 PM
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